मंच से उठी आवाज़ रामलीला में ‘पेपर चोरपुर का राजा’ ने खोली भर्ती व्यवस्था की पोल”नवरात्र के रंगों और भक्ति की गूंज के बीच अचानक रामलीला के मंच से उठी एक ऐसी आवाज़, जिसने ना सिर्फ दर्शकों को चौंका दिया बल्कि पूरे उत्तराखंड में हलचल मचा दी। UKSSSC Paper Leak Case जब रावण की लंका के बजाय ‘पेपर चोरपुर’ का नाम गूंजा, और मंच पर अभिनेता ने खुलकर पेपर लीक का जिक्र किया — तो साफ हो गया कि अब आवाज़ सिर्फ मंदिरों से नहीं, मंचों से भी उठेगी। क्या यह रामलीला थी? या व्यवस्था के खिलाफ जन-संघर्ष की शुरुआत? क्या अब संस्कृति बन चुकी है सिस्टम पर सीधा वार करने का हथियार? दोस्तो पेपर लीक को लेकर एक तरफ देहरादून के परेढ मैदान में बेरोजगार संघ का धरना प्रदर्शन चल रहा है, तो वहीं दूसरी ओर कोर्ट ने आयोग को तंजिया लहजे में चेतावनी दी। बल्की नैनीताल हाई कोर्ट के माननीय न्यायाधीश राकेश थपलियाल ने न केवल uksssc की धुलाई की बल्कि ढीट कार्यप्रणाली को लेकर जलील भी किया। एक और तस्वीर प्रदेश में होते पेपर लीक रामलीला में देखने को मिल रही है, जी हां वो कल वाला वीडियो नहीं।
मै आपको दिखाएंगे कैसे अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ की रामलीलाओं ने भ्रष्टाचार की पोल खोली, और बताया कि ‘पेपर चोरपुर’ की कहानी सिर्फ हास्य नहीं, हकीकत है। नवरात्रा की पावन बेला में रामलीला हर उम्र के दर्शकों को जोड़ती है — यह केवल धार्मिक कथानक नहीं, बल्कि समाज की नब्ज़ को भी छूती है। आज, उत्तराखंड की अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ की रामलीला मंचों पर एक ऐसा विषय उठा रही है, जो परीक्षा हॉलों और राजनीति गलियारों में रोज़ सुना जाता है: पेपर लीक..लेकिन अब यह लड़ाई क्लासरूम से उठकर मंच की दुहाई बन गई है। जब “पेपर चोरपुर का राजा” हाकम सिंह मंच से जनता को सचेत करता है, तो यह केवल नाटक नहीं रह जाता — यह जन-प्रहर है। अल्मोड़ा के द्वाराहाट की रामलीला ने श्रोताओं की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठा दिए। मंच पर, हाकम सिंह ने दावा किया कि “मंत्री से लेकर संत्री तक” पेपर लीक में शामिल हैं, और परीक्षा सवाल “पाँच-पाँच लाख में बिक रही है। तुमुल ले सुण रछो तुमुल ले सुण रछो के नाम छू पेपर चोरी मेरो काम, हाकम मेरो नाम, राज हो या मंत्री सबबब। मै तो पेपर चोरपुर का राजा, नान-नान पेपर 5 लाख में ठुल-ठुल पेपर 15 लाख। दोस्तो ये कोई सामान्य संवाद नहीं था — यह एक चैलेंज था, दर्शकों के बीच जोश था, हल्की दहशत थी — लेकिन सबसे बड़ी बात: मंच ने जनता को यह दिखाया कि भ्रष्टाचार सिर्फ खबरों में नहीं, हमारी रोज़मर्रा की वास्तविकता है।
इससे पहले मैने आपको पिथौरागढ़ की रामलीला भी दिखाई थी एक वीडियो में लेकिन दर्शकों के चेहरों पर हँसी लायी, पर दिल में आग भी लगा दी। उन्होंने पटवारी भर्ती पेपर लीक का ज़िक्र किया और कोर्ट, आयोग, राजनीतिक हिस्सेदारों की चुप्पी पर कटाक्ष किया। रामलीला अब सिर्फ धर्म कथा से आगे है — यह जन चेतना का मंच बन चुकी है। जब नाटककार बोलने लगें। पेपर लीक का राजा मंत्री और संत्री की मिली भगत। पांच लाख में प्रश्नपत्र”तो यह न केवल नाटक का संवाद है, बल्कि समय की पुकार है। कल तक छात्र कॉलेज की दीवारों पर नारे लिखते थे, आज मंच उन्हें सजीव संवाद दे रहा है दोस्तो ये लड़ाई केवल भ्रष्ट परीक्षा व्यवस्था की नहीं — यह लड़ाई शिक्षा की गरिमा, न्याय की पहुँच और संस्कृति की सजीवता की लड़ाई है। जब परीक्षा की विश्वसनीयता ही संदिग्ध हो, तो शिक्षा का मूल्य कैसे बचेगा? न्यायालय, आयोग और सरकारों को सवाल करना तो चाहिए ही — पर सुनवाई और कार्रवाई करना ज़रूरी है।है कि संस्कृति ही समाज की संवेदनशीलता का आईना है। जब ये संवाद मंच से गूंजे, तो ना सिर्फ सुविचारित लोग सोच में डूबे, बल्कि आम लोग भी भागीदारी करने लगे। बच्चे, बुजुर्ग, शिक्षक — सबने इस तरह की अभिव्यक्ति को सामाजिक सीमाओं से बाहर होते देखा। यह एक संकेत था कि जनता अब केवल सुनने की स्थिति में नहीं, भाग लेने की स्थिति में है।
मीडिया ने इसे तेजी से पकड़ा, सोशल मीडिया पर क्लिप वायरल हुई, और सरकारी स्तर पर यह विषय चर्चा में आ गया। नाटक बनाम आंदोलन: क्या यह सिर्फ नाटक तक सीमित रह जाएगा, या जनता की आवाज बनेगा? मंच से हाकम सिंह का किरदार करने वाला शख्स मंच से मंत्री से लेकर संत्री तक को पेपर लीक के मामले में शामिल होने और पांच-पांच लाख रुपये में पेपर बिकने की बात कर रहा है। कैसे उत्तराखंड की रामलीलाओं ने इस बार सिर्फ धार्मिक नहीं, सामाजिक भूमिका भी निभाई। जब कलाकारों ने ‘पेपर चोरपुर’ और लीक सिस्टम पर तंज कसे, तो सिर्फ दर्शक नहीं, पूरा प्रदेश सोचने पर मजबूर हो गया। रामलीला के मंच से उठती ऐसी आवाज़ें अब हमें बताती हैं कि जनता सिर्फ दर्शक नहीं रही वो अब मंच पर भी है, और मुद्दों पर भी। जिस व्यवस्था ने युवाओं का भविष्य दांव पर लगाया, अब उसी के खिलाफ आवाज़ गाँव-गाँव, मंच-मंच से उठ रही है। शायद यही है नयी पीढ़ी का सच — जहाँ रामलीला भी अब सिर्फ लंका दहन की नहीं, भ्रष्टाचार दहन की कहानी बन गई है। सवाल मंच से उठे हैं, अब जवाब देने की बारी सिस्टम की है।