जब इंसाफ भी हार जाए, तो जनता सड़क पर उतरती है, पिथौरागढ़ की मासूम से दरिंदगी के आरोपी को सुप्रीम कोर्ट से राहत — और फिर टूट पड़ा जनसैलाब, सवाल अब कानून से है, सिस्टम से है और उस पैरवी से है जिसने इंसाफ की लड़ाई को अधूरा छोड़ दिया। क्या एक मासूम की लाश भी अब गवाही नहीं मानी जाती? Pithoragarh Minor Girl Gangrape पूरी खबर लेकर आया हूं दोस्तो। सात साल की मासूम एक शादी समारोह में आई थी, खुशियों में शामिल होने लेकिन लौट कर आई एक लाश और अब 11 साल बाद, उसकी चीखें भी मानो अदालतों की दीवारों से टकराकर दम तोड़ चुकी हैं। पिथौरागढ़ की मासूम से गैंगरेप और हत्या मामले में आरोपी सुप्रीम कोर्ट से बरी हो गया — और इसके साथ ही टूट गया एक परिवार का वो आखिरी भरोसा, जिसे वो “न्याय” कहते थे। एंबिएंस के साथ, दोस्तो जब जनता का आक्रोश बन गया जनसैलाब। 14 सितंबर को पिथौरागढ़ की सड़कों पर वो मंजर था, जिसने ये जता दिया कि न्याय के नाम पर अगर राजनीति की गई, तो जनता अब चुप नहीं बैठेगी। रामलीला मैदान में उमड़ा हुजूम सिर्फ प्रदर्शन नहीं था, वो एक चेतावनी थी — मासूम को न्याय दो वरना हर गली आवाज़ बन जाएगी। दोस्तो सवाल ये है कि दोषी कौन? मासूम को न्याय दो! जैसे नारे सिर्फ विरोध नहीं थे, वे उस व्यवस्था पर सवाल थे जो एक बच्ची के गुनहगार को 11 साल बाद भी सजा नहीं दिला सकी। दगडि़यो परिजनों का दर्द हमें तो पता ही नहीं चला कि फैसला आ गया। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कब हुई, फैसला कब आया – हमें बताया ही नहीं गया। हमारी कोई पैरवी नहीं की गई। यानी, ना सिर्फ इंसाफ छीना गया, बल्कि इंसाफ की उम्मीद को भी मार दिया गया। परिजनों ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ठीक से पैरवी ही नहीं की, न ही समय रहते उन्हें जानकारी दी गई।
दगड़ियो पीड़ित परिवार ने तीखा सवाल उठाया, जब सबूत थे, जब दोष सिद्ध हुआ था हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट में, तो सुप्रीम कोर्ट में आरोपी कैसे बरी हो गया?और सबसे चुभती बात –बेटी बचाओ” का नारा अब खोखला लगता है। परिवार ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से रिव्यू पिटीशन दायर करने की मांग की है, साथ ही दोषियों को फांसी की सजा दिलाने की मांग दोहराई है। दोस्तो पीड़ित परिवार के साथ तमाम संगठन भी साथ आ रह हैं, अब ये सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं, ये पूरे उत्तराखंड की आवाज है, ये नारा लगाया जा रहा है। दोस्तो 2014 की उस काली रात की कहानी भी आपको बताता हूं कि हुआ क्या था। BUMPR 20 नवंबर 2014 पिथौरागढ़ की 7 साल की बच्ची हल्द्वानी के शीशमहल में शादी समारोह के दौरान लापता हो गई। BUMPER 6 दिन बाद: उसका शव गौला नदी से बरामद हुआ। BUM- पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट। बच्ची के साथ गैंगरेप हुआ था और फिर उसकी हत्या कर दी गई थी और उसके बाद BUMB- जन आक्रोश पूरे उत्तराखंड में उबाल था। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का काफिला भी विरोध की आग में घिरा था। अब सवाल ये नहीं कि BUM- न्याय क्यों नहीं मिला। क्या हमारे सिस्टम में अब मासूमों के लिए कोई जगह बची भी है या नहीं? क्या एक बच्ची के साथ हुई दरिंदगी के बाद भी इंसाफ “फॉर्मेलिटी” बनकर रह गया है?क्या सुप्रीम कोर्ट तक मामला ले जाने वाली सरकार ने जानबूझकर कमज़ोर पैरवी की? दोस्तो अगर अब भी नहीं जागे तो कल कोई और मासूम चुपचाप मिटा दी जाएगी। पिथौरागढ़ की बेटी अब लौट कर नहीं आएग लेकिन जो सवाल उसने छोड़ दिए हैं, वो हर उस नेता, अफसर और वकील का पीछा करते रहेंगे जिन्होंने इंसाफ को अधूरा छोड़ दिया। अब सिर्फ एक ही रास्ता बचा है — सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका, फास्ट-ट्रैक सुनवाई और दोषियों को फांसी वरना ‘बेटी बचाओ’ जैसे नारे इतिहास के सबसे बड़े झूठ बन जाएंगे।