उत्तराखंड में सियासी हलचल तेज!सत्ता के गलियारों में बढ़ी बेचैनी जल्द हो सकता है बड़ा फैसला, वैसे फैसले दो हो सकते हैं एक एक कर बात करूंगा दो फैसलों पर। दगड़ियो उत्तराखंड की सियासत में कुछ बड़ा होने वाला है, संकेत मिल चुके हैं। खास कर सरकार और बीजेपी की तरफ से कोई बड़ी तस्वीर हम सब के सामने आ सकती है। उत्तराखंड की राजनीति इन दिनों नए मोड़ पर खड़ी है। राज्य में एक ओर जहां प्राकृतिक आपदाओं और पंचायत चुनावों को लेकर सरकार चौतरफा दबाव में है, वहीं दूसरी ओर सियासी हलचलों ने माहौल और भी गर्मा दिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की दिल्ली में हुई बैठक, कुछ बड़े चेहरों की उपस्थिति और अनुपस्थिति, सोशल मीडिया पर अफवाहों की गर्म हवा—इन सभी ने राजनीतिक तापमान को और भी बढ़ा दिया है। इस बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के हालिया दिल्ली दौरे और उनके बयानों ने कैबिनेट विस्तार की अटकलों को और बल दे दिया है, तो दगड़ियों में आगे राजनीतिक परिदृश्य और हलचल की पीछे की कई परतों को आपके सामने रखने जा रहा हूं। आप से गुजारिश ये कि आप अंत तक मेरे साथ बने रहे हैं तो बेहतर बताउंगा।
दगड़ियो उत्तराखंड में मौजूदा सियासी हलचल कोई एक कारण की देन नहीं है। हाल में राज्य में आई आपदाओं ने प्रशासन की तैयारियों पर सवाल खड़े किए। पंचायत चुनावों में धांधली के आरोपों ने जन असंतोष को जन्म दिया। नैनीताल में कानून व्यवस्था की स्थिति और विधानसभा सत्र में विपक्ष खासकर कांग्रेस का आक्रामक रवैया, सरकार को बैकफुट पर ले गया। Uttarakhand Cabinet Expansion ऐसे में दगड़ियो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की दिल्ली में हुई बैठक और उसमें गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी की गैरमौजूदगी और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की संक्षिप्त उपस्थिति को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। हालांकि अगली ही सुबह इन दोनों नेताओं की प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम के साथ तस्वीरें सामने आ गईं, जिससे स्थिति थोड़ी संतुलित हुई। अब अचानक दिल्ली क्यों पहुंचे होंगे बल धामी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दिल्ली से लौटते हुए मीडिया से बातचीत में कहा कि “दिल्ली में सब ठीक है।” लेकिन जब उनसे कैबिनेट विस्तार को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने जो जवाब दिया, उसने नए संकेत दे दिए। उन्होंने कहा कि पार्टी लोकतांत्रिक तरीके से काम करती है और सभी की राय लेकर ही कोई निर्णय लेती है। यानी कैबिनेट विस्तार को लेकर भीतरखाने तैयारी चल रही है। वैसे दोस्तो ऐसा लगता है कि मंत्रमंडल विस्तार वक्त की जरूरत है, वर्तमान में उत्तराखंड में मंत्रिमंडल के दो पद खाली हैं। एक, कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास के निधन के बाद, दूसरा, प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद। इन दोनों नेताओं के पास इंडस्ट्री, वित्त और हाउसिंग जैसे महत्वपूर्ण विभाग थे, जो अब मुख्यमंत्री के पास हैं।
धामी अकेले 40 से अधिक विभागों का जिम्मा संभाल रहे हैं। यह न केवल प्रशासनिक बोझ बढ़ाता है, बल्कि विभागीय कार्यों में भी देरी और असंतुलन पैदा करता है। राजनीतिक संतुलन और संगठनात्मक मजबूती का मौका इसको लेकर भी कहा जा सकता है कि ये वक्त ठीक ठाक है। भाजपा के लिए यह कैबिनेट विस्तार सिर्फ प्रशासनिक जरूरत नहीं है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम है। कई विधायक लंबे समय से मंत्री बनने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधने का यह मौका संगठन के लिए अहम हो सकता है। चुनावी दृष्टिकोण से भी पार्टी को कार्यकर्ताओं और विधायकों को संतुष्ट करना होगा। दगड़ियों यहां धामी सरकार के सामने अब दो बड़ी चुनौती हैं। प्रभावी प्रशासन सुनिश्चित करना – जिससे जनता का विश्वास बना रहे। दूसरा है राजनीतिक संतुलन साधना – जिससे पार्टी के भीतर असंतोष न फैले, इन दोनों मोर्चों पर सफल रहने के लिए कैबिनेट विस्तार एक अहम हथियार बन सकता है, बशर्ते इसका प्रयोग सही समय और सही लोगों के साथ किया जाए। दगडड़ियों उत्तराखंड की राजनीति एक निर्णायक मोड़ पर है। कैबिनेट विस्तार की सुगबुगाहट और सियासी हलचलें केवल सत्ता के भीतर की उठापटक नहीं हैं, बल्कि यह तय करेंगी कि आने वाले समय में धामी सरकार की दिशा और दशा क्या होगी। अगर भाजपा इस अवसर को सही ढंग से साध लेती है, तो यह एक सियासी मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है। वरना, भीतर से उठती नाराजगी और बाहर से बढ़ता दबाव पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है। ये तो एक खबर हो गई।