देहरादून: विधानसभा सचिवालय में हुई बैक डोर भर्ती मामले में नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब उत्तराखंड राज्य में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल को हटाए जाने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है। मामले में कांग्रेस भाजपा को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हुए कार्यवाही करने की बात कह रही है। वहीं, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता खुद ही इस बात को कह रहे हैं कि अगर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष की संलिप्तता मामले में रही है तो उन पर कार्रवाई होनी चाहिए।
कोर्ट के फैसले के बाद अब धामी सरकार के वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल जो तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष थे वो फिर से चर्चाओं में हैं। प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा में भर्ती प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए बैकडोर में भर्ती कर अपने व अपनी पार्टी के नेताओं के रिश्तेदारों को एक प्रार्थना पत्र के आधार पर नौकरियां देने का काम किया। ऐसे में कार्यवाही सिर्फ नौकरी पाने वालों पर हुई, जबकि नियोक्ता अभी भी सरकार में मंत्री बने हुए हैं। अब सबाल उठ रहा है कि क्या प्रेमचन्द्र अग्रवाल को नैतिकता के आधार पर अपना इस्तीफा नहीं देना चाहिए?
राजनीतिक गलियारों में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे को लेकर चर्चाएं जोरों शोरों पर उठने लगी हैं। नैतिकता की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी को अपने मंत्री पर कार्यवाही करते हुए उसे मंत्री पद से नही हटाना चाहिए या नहीं, यह सवाल अभी भी बरकरार है। इस मुद्दे पर बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता सुनीता विद्यार्थी ने कहा कि हमारी पार्टी नैतिकता के मूल्यों को मानने वाली पार्टी है। अगर किसी कार्यप्रणाली को प्रभावित करने में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष की संलिप्तता रही है तो निश्चित तौर पर सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए।