जी हां दोस्तो उत्तराखंड में राशन कार्ड की e-KYC प्रक्रिया चल रही है, लेकिन ये शहरी क्षेत्रों में तो ठीक, लेकिन ग्रामीण इलाकों में लोगों और कर्मचारियों के बड़ी मुसीबत खड़ी हो रही है। केवाईसी करना किसी बड़ी जोखिम से कम नहीं लगती, ऐसा में क्यों कह रहा हूं वो बताउँगा आपको। जी हां दोस्तो उत्तराखंड में राशन कार्ड की e-KYC प्रक्रिया अभी भी लोगों के लिए आसान नहीं हुई है। कई ग्रामीण नेटवर्क सिग्नल की तलाश में पहाड़ चढ़ते और जोखिम उठाते नजर आ रहे हैं। जब डिजिटलीकरण का उद्देश्य सुविधा होना चाहिए, ऐसे में ये चुनौती लोगों के लिए किसी संघर्ष से कम नहीं है। दोस्तो सबसे पहले मै आपको कुछ तस्वीरें दिखाना चाहता हूं। दोस्तो यहां आपको क्या लगता है क्या चल रहा होगा, कोर्ट पार्टी, कोई अहम चर्चा, तस्वीर में देखा जा सकता है कि कुछ लोग जंगल के बीच, बड़े-बड़े पत्थरों में बैठे हैं। कुछ आपस में बाते कर रहे हैं कुछ अपनी बारी का इंतजार करते दिखाई दे रहे हैं। कुछ लोग एक मसीन नुमा डब्बे को घेरे हुए हैं, दोस्तो ये तस्वरें बहुत कुछ कहती हैं, बताती हैं।
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट क्षेत्र में स्थित ग्रामसभा रातीरकेटी इस समय एक अनोखी चुनौती का सामना कर रही है। राशन कार्ड की e-KYC प्रक्रिया के दौरान गांव के लोग और सरकारी कर्मचारी दोनों ही बड़े संघर्ष में हैं। मोबाइल नेटवर्क की कमी के कारण सरकारी कर्मचारी ऊंचाई पर जाकर किसी तरह सिग्नल पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि ग्रामीण अपने दैनिक कामकाज छोड़कर जान जोखिम में डालते हुए वहां पहुंच रहे हैं और फिंगरप्रिंट देकर KYC प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं। दोस्तो ये स्थिति देखने के बाद एक बड़ा सवाल उठता है, क्या डिजिटल भारत और विकास की बातें केवल शहरों या चुनिंदा क्षेत्रों तक ही सीमित रह गई हैं? क्या दूरदराज के पर्वतीय गांवों के निवासियों को बुनियादी सुविधाएं जैसे नेटवर्क कनेक्टिविटी भी नसीब नहीं होंगी? ये विडंबना है कि जिस डिजिटल इंडिया का सपना हमारे सामने रखा गया है, वही ग्रामीण ऐसे जोखिम भरे रास्तों पर अपने फिंगरप्रिंट जमा करने के लिए मजबूर है। दोस्तो डिजिटलीकरण का मूल उद्देश्य लोगों की सुविधा बढ़ाना और सरकारी प्रक्रियाओं को सरल बनाना होना चाहिए। लेकिन यहां स्थिति कुछ उल्टी नजर आ रही है। जब आधार कार्ड पहले ही बायोमेट्रिक सत्यापन और फिंगरप्रिंट के साथ जारी किया जाता है, तो राशन कार्ड के लिए बार-बार e-KYC की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है? यदि सरकार को आधार के डेटा पर भरोसा नहीं है, तो फिर इस पहचान पत्र का औचित्य ही सवालों के घेरे में आ जाता है।
ग्रामीणों को ये प्रक्रिया पूरी करने के लिए न केवल लंबा रास्ता तय करना पड़ रहा है, बल्कि वे पहाड़ों पर चढ़कर जान जोखिम में डाल रहे हैं, कई बार तो मोबाइल नेटवर्क तक नहीं पहुंच पाने के कारण सरकारी कर्मचारी भी मुश्किलों में फंस जाते हैं। इस तरह की परिस्थितियां डिजिटल इंडिया के दावों और वास्तविकता के बीच एक बड़ा अंतर दिखाती हैं। दोस्तो सिर्फ यही नहीं, ये प्रक्रिया ग्रामीणों के समय और संसाधनों की भी बर्बादी कर रही है। लोग अपने खेत, घर और दैनिक कामकाज छोड़कर घंटों-घंटों यात्रा करते हैं, जबकि उनकी मेहनत केवल ये सुनिश्चित करने के लिए की जा रही है कि सरकार की डिजिटल प्रक्रिया पूरी हो। ये स्थिति ये भी दिखाती है कि तकनीकी क्रांति तब तक वास्तविक अर्थ नहीं रखती जब तक कि उसकी बुनियादी सुविधाएं और पहुंच सुनिश्चित नहीं की जाती। इसके अलावा, दोस्तो बार-बार e-KYC की शर्त लगाना प्रशासनिक खामियों को भी उजागर करता है। एक तरफ सरकार डिजिटल प्रक्रिया का जोर दे रही है, दूसरी तरफ ग्रामीणों को जीवन जोखिम में डालने और संसाधनों की बर्बादी करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। ये केवल तकनीकी मुद्दा नहीं है, बल्कि नीति और योजना में भी गंभीर दोषों की तरफ इशारा करता है।
दोस्तो यहां तो लोग कह रहे हैं कि डिजिटल इंडिया का सपना तभी सफल होगा जब इसकी योजनाएं सभी लोगों तक सरल और सुलभ हों। ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं जैसे नेटवर्क, बिजली और इंटरनेट की कमी को दूर किए बिना, बार-बार सत्यापन की शर्तें लगाना केवल जनता की परेशानियों में इजाफा करेगा। वास्तविक डिजिटलीकरण का अर्थ यही होना चाहिए कि सरकारी सेवाएं जनता के दरवाजे तक पहुंचें और उनकी जीवन शैली में सुधार करें, न कि उन्हें जोखिम उठाने पर मजबूर करें। दोस्तो गांव रातीरकेटी की ये तस्वीर एक चेतावनी भी है। यह दिखाती है कि तकनीकी प्रगति केवल शहरों तक सीमित रह जाए, तो ग्रामीण जनता उसके लाभ से वंचित रह जाएगी। इसके साथ ही ये सवाल भी उठता है कि जब आधार जैसी पहचान प्रणाली पहले ही मौजूद है और विश्वसनीय मानी जाती है, तो फिर नई प्रक्रियाओं को लागू करने की आवश्यकता क्यों महसूस की जाती है? और अंत डिजिटल इंडिया का लक्ष्य सिर्फ तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि जनता के जीवन में सुधार होना चाहिए। बिना नेटवर्क जैसी बुनियादी सुविधाएं दिए बार-बार सत्यापन की शर्तें लगाना न केवल व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है, बल्कि इसे ग्रामीणों के लिए भारी बोझ भी बना देता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या डिजिटल इंडिया केवल नाम के लिए ही है, या वास्तव में जनता की सहूलियत और विकास को प्राथमिकता देता है। दोस्तो राशन कार्ड की e-KYC प्रक्रिया के दौरान ग्रामीणों की इस मजबूरी और जोखिमभरे संघर्ष ने हमें यह याद दिलाया है कि तकनीकी क्रांति तभी सार्थक है जब यह सभी के लिए सुलभ और सरल हो। उत्तराखंड के पर्वतीय गांवों में यह अनुभव हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि असली डिजिटल इंडिया वही होगा, जहां गांव-शहर के सभी लोग समान रूप से लाभान्वित हों और बुनियादी सुविधाओं के बिना डिजिटल प्रक्रिया जनता के लिए बोझ न बने।