उत्तराखंड में स्कूल मुखिया पर सांसद बनाम सरकार ? शिक्षकों के साथ खड़े हैं BJP सांसद। प्रधानाचार्य सीधी भर्ती विवाद में गरमाया माहौल, अब सलाल प्रधानाचार्य की सीधी भर्ती मामले का नहीं बल्कि सांसद बनाम सरकार की सियासी खींचतान का भी है, क्योंकि बीजेपी के ही सांसद ने शिक्षक संघ की जुबान में प्रदेश के मुख्यमंत्री को लिख डाला है एक पत्र, क्या लिखा है इसमें। क्या है ये पूरी खबर बताने के लिए आया हूं दोस्तो। जी हां दोस्तो अपने उत्तराखंड में शिक्षकों की नियुक्ति का मुद्दा अब नया मोड़ ले चुका है। जैसा मेने शुरुआता में कहा अब सवाल सिर्फ प्रधानाचार्य की सीधी भर्ती का नहीं, बल्कि सांसद बनाम सरकार की सियासी खींचतान का भी होता दिखाई दे रहा है। बीजेपी सांसद ने अजय भट्ट ने शिक्षकों के सुर में सुर मिलाते हुए जो पत्र सीएम धामी को लिखा है उसका क्या मतलब है। क्या उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था पर अब सरकार के भीतर ही मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं? या फिर यह शिक्षकों के हक की लड़ाई में एक बड़ा राजनीतिक दांव है? दोस्तो उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था इस वक्त एक गंभीर मोड़ पर खड़ी है। प्रदेश के स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई के लिए जरूरी नेतृत्व—यानी प्रधानाचार्य—की भारी कमी है। क्यों हमारे नौनिहालाों के साथ धोखा किया जा रहा है, ये तो आप उस वीडियो में देख सकते हैं, लेकिन बता दूं कि राज्य के करीब 90% स्कूल इस वक्त मुखियाविहीन हैं, और इन हालातों में सरकार की सीधी भर्ती की योजना पर बवाल मचना लाज़मी है।
दोस्तो लेकिन अब ये बवाल सिर्फ शिक्षा विभाग या शिक्षक संघ तक सीमित नहीं रहा—अब यह मुद्दा सीधा सत्ता के गलियारों में पहुंच चुका है। बीजेपी के ही वरिष्ठ सांसद अजय भट्ट ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सीधी भर्ती पर आपत्ति जताई है, और इसके बाद दगड़ियो सवाल उठने लगे हैं—क्या वाकई बीजेपी में सबकुछ ठीक है? या फिर शिक्षा व्यवस्था के नाम पर कहीं अंदरूनी खींचतान चल रही है? ये तो बीजेपी वाले जाने लेकिन बात आज प्रधानाचार्य की सीधी भर्ती के खिलाफ शिक्षक एक तरफ आंदोलन करते दिखाई दिए। हाल में एक बड़ा प्रदर्शन देहरादून में भी देखने को मिला और अब शिक्षकों के साथ खड़े हो गए हैं बीजेपी सांसद अजय भट्ट, लेकिन दोस्तो सरकार का तर्क है कि खाली पदों को भरने के लिए ये जरूरी है, लेकिन शिक्षक संघ का कहना है कि इससे शिक्षकों की पदोन्नति (प्रमोशन) का अधिकार छिन जाएगा। प्रदेश में इस वक्त करीब 1300 प्रधानाचार्य के पद खाली हैं, जिनमें से 650 पदों पर सीधी भर्ती की योजना बनाई गई है। शिक्षक संघ का कहना है कि ये पद अनुभवी शिक्षकों को प्रमोशन के ज़रिए दिए जाने चाहिए, ताकि वे अपने वर्षों के अनुभव से स्कूलों को बेहतर दिशा दे सकें। इसी मांग को लेकर राजकीय शिक्षक संघ पिछले कई महीनों से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। 16 सितंबर को संघ ने मुख्यमंत्री आवास कूच तक कर डाला, अब सियासी माहौल में गरमाहट अजय भट्ट के हालिया तेवरों से आ रही है।
बीजेपी सांसद अजय भट्ट, जो कि केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं, उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सीधे पत्र लिखकर शिक्षक संघ की मांगों को जायज़ बताया है। उन्होंने कहा है कि ये भर्ती प्रक्रिया शिक्षक हित में नहीं है, और इससे पदोन्नति की राहें बंद हो जाएंगी। भट्ट ने सीधी भर्ती की नियमावली को निरस्त कर, पूर्व की भांति 100% पद प्रमोशन के ज़रिए भरने की मांग की है। समझ रहे हैं ना ये पत्र में लिखी बातें सुझाव, मांग या अपील नहीं लगती ये सिर्फ एक पत्र नहीं है—ये सत्ताधारी दल के भीतर उभरते मतभेद का संकेत जैसा दिखाई देता है। इस पूरे विवाद की सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रदेश के अधिकतर स्कूल बिना प्रधानाचार्य के चल रहे हैं। 90 प्रतिशत से अधिक माध्यमिक विद्यालयों में नेतृत्व का अभाव है। एक प्रधानाचार्य न केवल स्कूल का प्रशासन संभालता है, बल्कि शिक्षक-छात्र के बीच एक पुल की भूमिका भी निभाता है। बिना मुखिया के स्कूल, सिर्फ “शिक्षा” नहीं बल्कि दिशाहीनता की ओर बढ़ते हैं। दोस्तो बीजेपी सांसद अजय भट्ट का पत्र केवल शिक्षक हित की बात नहीं कर रहा, बल्कि मुख्यमंत्री के फैसलों पर सीधा सवाल भी खड़ा कर रहा है। सवाल ये भी है—क्या अजय भट्ट सरकार की नीतियों से असहमति जता रहे हैं?या फिर यह 2027 की राजनीति की पृष्ठभूमि में चल रहा आत्म-प्रस्तुतीकरण है? क्या पार्टी के भीतर संवादहीनता है, जो पत्रों के ज़रिए बाहर आ रही है?
दोस्तो ये पहली बार नहीं है जब राज्य सरकार के किसी फैसले पर पार्टी के भीतर से ही विरोध हुआ हो, लेकिन जब मामला शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों के अधिकारों से जुड़ा हो, तब इस विरोध की गूंज और गहरी हैं..दोस्तो इस विवाद की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि सियासत और प्रशासन की खींचतान के बीच बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। शिक्षक संघ लगातार आंदोलनरत है, स्कूलों में शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है, और छात्रों की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ रहा है। यहां मेरे कुछ सवाल हैं क्या सरकार शिक्षा को राजनीतिक मसले से ऊपर उठाकर नहीं देख सकती? क्या शिक्षक संघ और सरकार के बीच संवाद से रास्ता नहीं निकल सकता?और सबसे अहम—क्या बीजेपी को भीतर से एकजुट होकर फैसला नहीं लेना चाहिए, ताकि जनता को भ्रम न हो कि कौन सही है और कौन ग़लत? दोस्तो एक ओर हैं वे शिक्षक, जिन्होंने सालों मेहनत कर प्रमोशन की आस लगाई है, दूसरी ओर है सरकार, जो खाली पदों को भरकर स्कूलों को सक्षम बनाना चाहती है और अब इस खींचतान में बीजेपी के भीतर से उठी आवाजें यह संकेत दे रही हैं कि शायद सब कुछ वैसा नहीं है, जैसा दिखता है। इस लड़ाई का अंत क्या होगा? क्या शिक्षक अपनी बात मनवा पाएंगे? उत्तराखंड प्रधानाचार्य सीधी भर्ती का विरोध संबंधी मामला शिक्षक संघ से आगे बढ़ अब राजनेताओं के पास भी पहुंच गया है। अभी तक प्रधानाचार्य सीधी भर्ती का विरोध उत्तराखंड राजकीय शिक्षक संघ ही कर रहा था। जबकि अब उत्तराखंड के सांसद और अन्य नेता भी शिक्षक संघ की मांग को समर्थन देते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिख रहे हैं।