Sawan 2023: सावन शुरू होते ही भगवान भोले नाथ के मंदिरों में भक्त दर्शन के लिए पहुंचने लगे हैं। सावन भोले का सबसे प्रिय महीना माना जाता है। ऐसे में सावन के दौरान भगवान शिव के पांच केदार के दर्शन का खास पौराणिक महत्व है। पंच केदार उत्तराखंड में स्थित हैं। जो कि भगवान शिव के पांच मंदिरों का समूह है। पौराणिक मान्यता है कि पंच केदार का निर्माण पांडव व उनके वंशजों ने करवाया था। पंच केदार में सबसे पहले आता है केदारनाथ धाम। जो कि 12 ज्योर्तिलिंग के साथ ही चारों धाम में से एक है। इसके बाद द्वितीय केदार मध्यमेश्वर तृतीय केदार तुंगनाथ व चतुर्थ केदार रुद्रनाथ और पंचम केदार कल्पेश्वर हैं। इनमें से चार केदार शीतकाल में बंद रहते हैं जबकि पंचम केदार कल्पेश्वर वर्षभर खुले रहते हैं। पौराणिक मान्यता है कि केदारनाथ में भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति. पिंड के रूप में पूजे जाते हैं। मध्यमेश्वर में भगवान की नाभि, तुंगनाथ में भुजा, रुद्रनाथ में मुख और कल्पेश्वर में जटा दर्शन होते हैं। पंच केदार रुद्रप्रयाग और चमोली जिले में स्थित है।
केदारनाथ रुद्रप्रयाग जिले में है। बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल केदारनाथ धाम में भगवान शिव के बैल रूप में पृष्ठ भाग के दर्शन होते हैं। केदारनाथ मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों के वंशज जन्मेजय ने कराया थाए जबकि आदि शंकराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
मध्यमेश्वर रुद्रप्रयाग जिले में चौखंभा शिखर की तलहटी में स्थित है। जहां बैल रूप में भगवान शिव के मध्य भाग के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि यहां के जल की कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं।
तुंगनाथ धाम रुद्रप्रयाग जिले में स्थित दुनिया का सबसे ऊंचे शिव मंदिर माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण कराया। शीतकाल में यहां भी छह माह के लिए कपाट बंद रहते हैं। तुंगनाथ में भगवान शिवजी की भुजाओं की पूजा होती है।
रुद्रनाथ धाम भगवान रुद्रनाथ चमोली जिले में एक गुफा में स्थित है। बुग्याल के बीच गुफा में भगवान शिव के मुख दर्शन में होते हैं। भारत में यह अकेला स्थान है, जहां भगवान शिव के मुख की पूजा होती है। रुद्रनाथ धाम के लिए 18 किलोमीटर का पैदल मार्ग है। शीतकाल में कपाट बंद होने पर गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर में भगवान रुद्रनाथ की पूजा होती है।
कल्पेश्वर धाम कल्पेश्वर धाम चमोली जिले में है। यहां वर्षभर शिव के जटा रूप में दर्शन होते हैं। कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तप किया था। हेलांग नामक स्थान से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसमें लगभग 3 किलोमीटर का पैदल मार्ग है।