Kanwar Yatra 2022: कांवड़ मेला यात्रा धर्म, आस्था, श्रद्धा, विश्वास, भक्ति संग आध्यात्मिक शक्ति के मिलन का पर्व है। श्रावण मास में दो सप्ताह चलने वाली यात्रा में शिव भक्त धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप कांवड़ में गंगा जल भरकर अपने गंतव्य तक जाते हैं। इसी क्रम में जहां बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहना पसंद नहीं करते, उन्हे बोझ समझकर वृद्धा आश्रमों में छोड़ आते हैं। वहीं एक ऐसा भी बेटा है जो अपने माता-पिता को कंधे पर उठाकर कावड़ यात्रा कर रहा है। गाजियाबाद के रहने वाले विकास गहलोत को कलयुग का श्रवण कुमार कहा जा रहा है।
आज के दौर में कई बच्चे माता-पिता को बोझ समझकर वृद्धा आश्रमों में छोड़ आते हैं। ऐसे बच्चों के लिए गाजियाबाद का विकास गहलोत नजीर है। कांवड़ मेले में श्रवण कुमार बनकर विकास अपने माता-पिता को गंगा स्नान करवाकर हरिद्वार से रवाना हो गया। विकास के कंधे पर बहंगिया (पालकी) में उसके माता-पिता को बैठा देखकर हर कोई हैरान है। विकास ने माता-पिता की आंखों पर पट्टी बांधी है, ताकि वह बेटे के कंधों का दर्द का अहसास उसके चेहरे पर न देख सकें। विकास गहलोत अपने माता-पिता को कांवड़ पर बैठकार यात्रा कराने निकले हैं। विकास इसी तहर सैकड़ों किमी का सफर पैदल तय कर रहे हैं।
चिलचिलाती धूप और सैकड़ों किमी के सफर की परवाह किए बगैर माता-पिता को कांवड़ पर बैठाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करने निकले विकास की हर कोई तारीफ कर रहा है। यात्रा में माता पिता उनका दर्द देखकर विचलित न हो इसके लिए विकास ने अपने माता-पिता की आंखों पर कपड़ा बाधा है। विकास गहलोत का कहना है कि उनके माता-पिता की कावड़ यात्रा करने की इच्छा थी, लेकिन उनकी उम्र उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी। इसलिए विकास के मन में काफी पहले से अपने माता-पिता को कावड़ यात्रा कराने की इच्छा थी। कोरोनाकाल के दो वर्ष बाद इस बार वह अपनी और माता-पिता की इच्छा पूरा करने निकले।
उमस भरी इस गर्मी में तपती सड़क पर विकास अपने माता-पिता को लेकर हरिद्वार से सैकड़ों किलोमीटर का पैदल सफर तय कर गाजियाबाद अपने घर जाएगा। रास्ते में जिस किसी ने विकास को देखा वो हैरान रह गया। उसके कंधों पर पालकी बांस की जगह लोहे के मजबूत चादर की बनी है। एक तरफ मां तो दूसरी तरफ पिता को बैठाया है। पिता के साथ 20 लीटर गंगाजल का कैन भी है। बीच बीच में पालकी को सहारा देने के लिए उसके साथ अन्य दो साथी भी चल रहे हैं। विकास का कहना है कि उसके लिए माता-पिता ही उसके भगवान हैं। पालकी से कंधों का दर्द उसके चेहरे पर माता-पिता देख न सकें। माता-पिता किसी तरह से भावुक न हो सकें। माता-पिता के भावुक होने पर वह यात्रा पूरी नहीं कर पाएगा।