उत्तराखंड में बीच मतदान गोली कांड का हो गया भंडाफोड, कोर्ट ने ले लिया सख्त एक्शन। बताउंगा आपको कैसे मामले पर कोर्ट रूम में गिडगिडाने लगे सरकारी वकील। ये खबर बेहद अहम है बेहद संवेदनशील है। बीते दिनों पंचायत चुनाव में ब्लोक प्रमुख चुनाव में नैनीताल से द्वाराहाट तक जो कुछ भी हूआ उसने मुझे आपको परेशान किया होगा। Uttarakhand District Panchayat Election आज नैनीताल कोर्ट में मतदान के बीच गोलीकांड पर सुनवाई हुई तो कोर्ट ने जो रगडा है ना पूछो मत पहले खबर बताता हूं फिर आगे विशलेषण टाइप करने की कोशिश करूंगा। दगडियों उत्तराखंड की राजनीति इन दिनों केवल सियासी बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रही ये हम सब जानते हैं। अब बात अदालत की दहलीज़ तक पहुँच चुकी है। नैनीताल ज़िले में जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जो घटनाक्रम सामने आया, उसने प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दि। हाईकोर्ट ने एसएसपी नैनीताल पी. एस. मीणा को लेकर बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए उनके तत्काल ट्रांसफर तक की सिफारिश कर दी है। कोर्ट की टिप्पणी की बात करता हूं। दोस्तो हाईकोर्ट ने यह सवाल सीधा खड़ा किया कि जब नैनीताल में चुनाव को लेकर इतनी संवेदनशीलता थी, तो आखिर कैसे हिस्ट्रीशीटर हथियारों के साथ खुलेआम घूम रहे थे? कोर्ट का यह सवाल न केवल कानून व्यवस्था पर चोट है, बल्कि यह दर्शाता है कि क्या प्रशासन सचमुच लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा में गंभीर है या नहीं। अब ये कहा तो पुलिस के लिए था लेकिन सीधा सवाल सरका से भी है।
धामी की साफ छबी को धुमिल कौन बीजेपी वाले करना चाहते हैं। क्योकि दोस्तो जैसा धामी सरकार को लेकर एक अलग तरफ की धारणा दिखाई देती है कि वो और मुख्ममंत्रियों की तरह नहीं हैं वो अलग हैं लेकिन वो अलग हैं ये कैसे बता चलेगा। जब ये सब कांड हुआ वाहां पर उस तरफ की परिपक्वता नहीं दिखाई दी है। सरकार वाले कहें जो कहें लेकिन अब आपके राज में चुनाव हिंसात्मक होती राजनीति और चुनाव। खैर कोर्ट ने पुलिस पर सख्ती कह दिया गिया कि आपने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन ठीक से नहीं किया लेकिन पुलिस को अमेरिका से ट्रंप या जिनपिंग थोडा होल्ड करती है। सवाल सीधे सरकार से भी है आगे आपको बताउंग दोस्तो कैसे सरकार के वकील कोर्ट में गिडगिडते दिखाई दिये क्यों गिडगिडा रहे थे एडवोकेट जनरल “हमें एसएसपी मीणा पर अब कोई विश्वास नहीं रहा।” यहां वकील की बिट लगा देना आधी। अब दोस्तो यह बयान अपने आप में प्रशासनिक जवाबदेही का आईना है। हाईकोर्ट ने नैनीताल के DM और SSP को निर्देश दिया कि वे अब तक इस मामले में हुई सभी कार्यवाहियों का विवरण एक शपथपत्र (एफिडेविट) के रूप में कोर्ट में प्रस्तुत करें। इसके साथ ही SSP ने कोर्ट में वादा किया कि सभी आरोपियों की गिरफ्तारी 24 घंटे के भीतर की जाएगी अब क्यो होगा बता नहीं इससे पहले तो आपका वादा झूठा साबित हुआ। अब गिर्फ्तरी कर रहे हो तो पहले क्यो होगया था कोई दबाव था क्या खैर ये तो क्रोट देख लेगा साथ ही दस्तो एक और खबर आज हाईकोर्ट आई। जहां कोर्ट ने जिला पंचायत के उन पांचों सदस्यों की बात सुनने से साफ इनकार कर दिया जिनके अपहरण का आरोप लगा है।
कोर्ट ने कहा कि ये सदस्य पहले ही कोर्ट को गुमराह कर चुके हैं, इसलिए उनकी व्यक्तिगत दलीलें नहीं सुनी जाएंगी। एक सवाल आप सब के मन में था आप लोग कमेंट भी कर रहे ते कि चुनाव क्या होगा। दोस्तो दोबारा चुनाव की याचिका पर फिलहाल नहीं होगी सुनवाई। हाईकोर्ट ने फिलहाल री-पोल (दुबारा चुनाव) को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई से भी इंकार कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह इस समय केवल चुनाव के दिन हुई घटनाओं से जुड़े मुद्दों पर ही सुनवाई कर रही है और इसी बिंदु पर स्वतः संज्ञान लिया गया है। उधर बीजेपी के लिए खतरे की गंटी बज रह है ऐसा लगता है। हाईकोर्ट की सख्ती के बाद अब आरोपी बीजेपी नेताओं और कथित अपहरणकर्ताओं पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। SSP नैनीताल ने खुद कोर्ट में 24 घंटे के भीतर सभी आरोपियों को पकड़ने का आश्वासन दिया है। साथ ही दोस्तो एक मौका कोर्ट में एसा भी आया कि एडवोकेट जनरल यानी कि सरकारी वकील ने अपनी गलती को माना। कि साहब हिंसा होगी। पुलिस प्रशासन सरकार कुछ नहीं कर पाई। दरअसल दगडियो हाईकोर्ट की सख्ती का असर इतना था कि एडवोकेट जनरल ने स्वयं माना कि नैनीताल पुलिस से गंभीर चूक हुई है। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि एसएसपी को एक अवसर और दिया जाए, लेकिन कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पुलिस अधीक्षक की कार्यप्रणाली ने भरोसा तोड़ दिया है।
अब आगे क्या होगा ये देखना होगा..इस पूरे मामले ने देश और दुनिया में अपने उत्तराखंड की थू..थू कराई कि यहां सा कैसे हो गया बल लेकिन यहां उस घटनाक्ररम का जिक्र होना चाहिए की हुआ क्या अपडेट तो मेने आपको बता दी। दोस्तो थोडा पीछे लिए चल रह हूं। 14 अगस्त को नैनीताल में जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पदों के चुनाव के दौरान हाई वोल्टेज सियासी ड्रामा देखने को मिला। कांग्रेस प्रत्याशी और हल्द्वानी विधायक सुमित इदयेश ने आरोप लगाया कि कांग्रेस समर्थित पांच जिला पंचायत सदस्यों का अपहरण किया गया हालांकि अब इस पूरे मामले में कांग्रेस खुद फंसती हुई दिखआई दे रह है। इस मामले को हाईकोर्ट तक ले जाया गया..कांग्रेस लेकर पहुंची। कोर्ट ने पुलिस और प्रशासन को आदेश दिया कि अपहृत बताए जा रहे सदस्यों को तलाश कर वोटिंग कराई जाए.कोर्ट की सख्ती के बावजूद, जिस तरह से हथियारबंद हिस्ट्रीशीटर नैनीताल में देखे गए, उसने पूरे मामले को और भी गंभीर बना दिया। अब सवालों की बारी आने वाली ठहरी ..वो भी मेरे सवाल सरकार से सिस्टम से पलिस से आयोग से प्रशासनिक लापरवाही या सुनियोजित चूक? ये सा सवाल है दोस्तो जिसका जवाब देना होगा। सबको पूछना भी चाहिए आप भी कमेंट कर पूछ सकते हैं क्योंकि सरकार है किसकी पुलिस है किसके लिए आपके लिए दोस्तो। हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर अविश्वास की घोषणा है। दगडियों एसएसपी मीणा को लेकर कोर्ट की नाराजगी सीधे इस बात को दर्शाती है कि पुलिस ने या तो आंखें मूंद ली थीं, या जानबूझकर कुछ अनदेखा किया सवाल ये भी उठता है कि जब जिला पंचायत जैसे संवैधानिक पद का चुनाव हो रहा हो, तब प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्था क्यों नाकाम रही?
कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया है कि डीएम और एसएसपी दोनों एफिडेविट दाखिल करें और अपनी स्थिति स्पष्ट करें। यह भी दर्शाता है कि अदालत इस मुद्दे को सिर्फ सुनवाई तक सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि जवाबदेही तय करने के मूड में है। दोस्तो आप लोग कमेट कर पूछते कि रौतेला जी आगे क्या होगा बल। ये भी बता देते दोस्तो जहां कुछ पता होता है वहां बता ही देता हूं अब जो मुझे ही पता नहीं उसके बारे में कैसे मै आपको गलत जानकारी दे सकता हूं दगडियो लेकिन हां मामले की अगली सुनवाई कल होगी एसएसपी मीणा का ट्रांसफर होगा या उन्हें कोर्ट से राहत मिलेगी — यह अगली सुनवाई में साफ होगमै उस खबर को भी आप तक लेकर आऊंगा। लेकिन इतना तय है कि यह मामला उत्तराखंड प्रशासनिक इतिहास में एक संवेदनशील मिसाल के तौर पर दर्ज हो रहा है यह घटना केवल पुलिस या एक अफसर की लापरवाही का मामला नहीं है। यह उत्तराखंड में लोकतंत्र की बुनियाद — यानी स्थानीय निकायों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़ा करता है। किसी भी लोकतांत्रिक ढांचे में चुनाव एक पवित्र प्रक्रिया है। यदि उसमें बल, भय या प्रभाव का हस्तक्षेप होने लगे, तो ये न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि जनमत के साथ विश्वासघात भी है।अब देखना यह है कि कल की सुनवाई में कोर्ट प्रशासनिक तंत्र पर और कितनी सख्ती दिखाता है। क्या एसएसपी मीणा पर कार्रवाई होती है या उन्हें एक और मौका दिया जाएगा — यह सिर्फ एक अफसर का मामला नहीं, बल्कि यह तय करेगा कि उत्तराखंड में लोकतंत्र की रीढ़ कितनी मजबूत है।