Story of Khupi village in Nainital | Uttarakhand News | Nainital Landslide Khupi Village | Joshimath

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क्या आपने कभी खौफ में अपना दिन और रात बिताई है। क्या कभी आपने ही आगन को खिसकते देखा है, क्या कभी जड़ जमीन, घर को उजड़ते देखा है। अगर नहीं तो आगे में आपको एक ऐसे ही उत्तराखंड के एक गांव की खबर दिखाने जा रहा हूं। Nainital Landslide Khupi Village उत्तरांखड को दर्द में जीने की मानो आदद से हो गई। कोई ना कोई मुसीबत सर अक्सर खड़ी रहती है। मै पहाड़ की बात कर रहा हूं, मैदान तब आपको बेहतर हालात दिखाई देंगे, लेकिन पहाड़ पर बसा जोशिमठ वाली खबर तो आपने देखी ही होगी। जहां जमीम खिसक रही थी, मकानों पर दरारे डरा रही हैं। अब एक और गांव मानो जो एक अपने अस्त्व ही खो देगा। उस गांव की तकलीफ आपको बताने जा रहा हूं, तो आप मेरे साथ अंत तक बने रहिए। क्योंकि में आपको दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें, टूटे रास्ते और उजड़ता गांव दिखाने और इसके बारे बताने जा रहा हूं, और इस गांव को नैनीताल का जोशिमठ कहा जा रहा है। तो आपको आगे बताने जा रहा हूं। नैनीताल के खूपी गांव की कहानी, जो गांव का दर्द बेहद तखलीफ देने वाला है। देवभूमि उत्तराखंड आपदा की नजर से बेहद संवेदनशील राज्य है। बारिश के मौसम में यहां कई तरह की आपदाएं और भूस्खलन आम बात है। इससे पहले उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव के कारण लोगों के घरों में दरार और भूस्खलन की दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आई थीं। जिससे जोशीमठ के अस्तित्व में खतरा मंडराने लगा है। जो आज भी बरकरार है।

स्थानीय प्रशासन लगातार भू-धंसाव रोकने के लिए काम कर रहा है। दोस्तो जोशिमठ के अलावा एक और गांव जो आज कुछ जोशिमठ की तरह की परेशानी झेल रहा है। उत्तराखंड के नैनीताल से भी ठीक ऐसी ही तस्वीरें बीतें कुछ सालों से सामने आ रही है..दोस्तो ये तस्वीर भी डरा रही है। जिला मुख्यालय से करीब 8 किमी की दूरी पर स्थित खूपी गांव बीते कई सालों से भू-धंसाव और भूस्खलन से प्रभावित है। इस गांव में लगातार बड़ी-बड़ी दरारें पड़ रही है, जिससे गांव का अस्तित्व खतरे में है। गांव में सालों से हो रहे भूस्खलन से हालात इतने बदहाल हो चले हैं कि घरों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं. रास्ते टूट चुके हैं, और फर्श धरती मै समां चुका है, स्थानीय निवासी बताते हैं कि लगातार गांव में हो रहे भूस्खलन से गांव को बेहद खतरा है। गांव में हो रहे भूस्खलन से अधिकांश घरों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ने लगी है। जिस वजह से करीब आधा दर्जन से अधिक परिवार गांव छोड़ चुके हैं। गांव में जमीन धंसने के कारण उनका मकान खतरे की जद में है। घर में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं। ऐसे में हर समय उनके परिवार पर खतरा मंडरा रहा है। सरकार उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रही है। अधिकारी सिर्फ बारिश के समय उनके गांव में आते हैं और आश्वाशन देकर चले जाते हैं लेकिन आज तक भूस्खलन का कोई स्थाई समाधान नहीं निकल पाया है। अब दगड़ियो इस बिंडबना ही कहेंगे। पहाड़ी राज्य में पहाड़ी ही परेशान है, और अधिकारी सिर्फ खानापूर्ती करते हैं, और कुछ नहीं लेकिन सच ये है एक गांव उज़ड़ रहा है। कुछ इतिहासकार और पर्यावरणविद की चिंता इससे भी बहुत बड़ी है।

दरअसल वो मानते हैं कि खूपी में हो रहा भूस्खलन बेहद चिंता का विषय है, यदि समय रहते इसका कोई स्थाई उपचार नहीं किया गया तो हालात जोशीमठ जैसे हो सकते हैं। यहां चिंता की बात ये भी कि इस गांव से होकर मेन बाउंड्री गुजरती है जो लघु और शिवालिक हिमालय रेंज को जोड़ती है। इन भूविज्ञान की हिमालय में उपस्थिति के कारण भूस्खलन की घटनाएं देखी जाती है। ये बाउंड्री हिमालय को कंप्रेस करती है जिस वजह से जमीन उठने लगती है और दरारें, भूस्खलन होते हैं, लेकिन दोस्तो कही न कहीं हम भी भूधसाव। इन दरारों इन मुसीबतों के लिए जिम्मेदार हैं। इस इलाके में पेड़ों की संख्या बेहद कम होना भी अहम कारण है, कि यहां जमीन खिसक रही है। साथ ही यहां से पहाड़ को हल्द्वानी से जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग भी गुजरता है। जिसमें भारी भरकम वाहन भी चलते हैं जिनका लोड और वाइब्रेशन भी जमीन पर पड़ता है इस वजह से भूस्खलन की घटनाएं होती है, ये जानकार कहते है। खूपी गांव की तलहटी में बहने वाला पाइंस नाले की वजह से भी भूमि का कटाव होता है। वहीं नैनीताल की तलहटी में स्थित होने के कारण यहां हो रहा भू कटाव का खतरा है, क्योंकि यहां गांव नैनीताल की नींव है। दोस्तो अब यहां इस गांव के लोगो के लिए यहां पलायन ही एक मात्र विकल्प है, या फिर कुछ और हो सकता है..क्योंकि क्योंकि प्रशासनिक अधिकारी गांव वोलों को विकल्प सुझाने की बात करता है, लेकिन उसमें क्या है…कई ग्रामीण विस्थापन के लिए तैयार हैं, उनके लिए भूमि चिन्हित की जा रही है, वहीं कुछ परिवार गांव से विस्थापित होना नहीं चाहते। जिसके लिए एक लॉन्ग टर्म प्रोटेक्शन प्लान सिंचाई विभाग गांव में सर्वे करवाकर तैयार कर रहा है। लेकिन दोस्तो ये भी सच है कि नैनीताल के आसपास की ज्यादातर पहाड़ियां भूस्खलन के कारण लगातार कमजोर हो रही हैं।

भूस्खलन से नैनीताल का खूपी गांव पिछले कई दशकों से प्रभावित है। खुपी गांव की तलहटी में हो रहे भू कटाव से कई घरों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं। ये तो हम सभी जानतेहैं मॉनसून का दौर आते ही पहाड़ों से तबाही की तस्वीरें आने लगती हैं। कहीं पानी सब कुछ बहाता नजर आता है। तो कहीं लैंडस्लाइड की वजह से पहाड़ टूटते दिखाई पड़ते हैं। ये सिर्फ एक मौसम के वक्त की तस्वीरें होती हैं, लेकिन कुदरत की ये मार और पहाड़ों के साथ इंसान का अत्याचार गांवों और शहर के लिए खतरा बनता जा रहा है। जोशीमठ के दरकने की तस्वीरें हम सब देख चुके हैं। अब नैनीताल टूट रहा है और एक गांव से नैनीताल की तबाही की शुरुआत हो चुकी है। पहाड़ों की रानी नैनीताल, अपनी खूबसूरती और दिलकश मौसम के लिए नैनीताल दुनिया में फेवरेट है। लेकिन अब यही नैनीताल टूट रहा है। उत्तराखंड के नैनीताल से 8 किमी दूर बसे खूपी गांव में चीड़ के सुंदर पेड़ों और सीढ़ीदार खेत के नजारे पर्यटकों को अपनी ओर खींच ले आते हैं, लेकिन गांव के नजदीक आने पर इस गांव का दर्द सामने आता है। गांव के ज्यादातर घरों में दरारें पड़ी हुई हैं। घरों तक पहुंचने वाली सड़कें टूटकर खाई में समा रही हैं। मिट्टी धंस रही है और कई जगहों पर तो पुल और सड़कों में गड्ढे पड़ चुके हैं। अब सबके मन में एक सवाल ये भी होगा कि कि आखिर नैनीताल की पहाड़ियां कमजोर क्यों हो रही है। आगे आपको विस्तार से बताउंगा। दोस्तो नैनीताल के आसपास की ज्यादातर पहाड़ियां भूस्खलन के कारण लगातार कमजोर हो रही हैं। भूस्खलन से नैनीताल का खूपी गांव पिछले कई दशकों से प्रभावित है। खुपी गांव की तलहटी में हो रहे भू कटाव से कई घरों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं। गांव के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो रहा है। लोग बड़े खतरे के साए में जीने को मजबूर हैं।

हिमालय बेल्ट पर मौजूद ज्यादातर इलाकों में हालात चिंताजनक हैं। कुदरती वजहों पर गौर करें तो भूकंप के झटके, भारी बारिश और हिमालय की हलचल की बर्बादी की जिम्मेदार है। दूसरी तरफ इंसानी वजहों की बात करें तो तेज विकास, पहाड़ों पर निर्माण और पर्यटन भी इस बर्बादी और खतरे के लिए कसूरवार ठहराया जा सकता है। खुपी गांव के नीचे बहने वाले पाइंस नाले का बरसात में बहाव बहुत तेज हो जाता है। इससे गांव के नीचे से भू कटाव के हालात बन जाते हैं। भू कटाव से गांव का पहाड़ धीरे धीरे नीचे की तरफ खिसक रहा है, जिससे घरों के साथ साथ सड़कों और दूसरी जगहों में दरारें बढ़ती जा रही हैं। मकानों के फर्श भी टूटकर अलग हो गए हैं। नैनीताल के इस गांव को बचाने के लिए प्रशासन ने भी तैयारियां भी की हैं। साथ ही लोगों को उन घरों को खाली करने के लिए कहा गया है जिनमें दरारें पड़ गई हैं। सिंचाई विभाग के अधिकारियों को भी डीपीआर बनाने के निर्देश दिए गए। जिससे भूस्खलन प्रभावित इलाकों में काम शुरू किया जा सके। वैसे खुपी ही नहीं बल्कि पूरा नैनीताल शहर ही खतरे में हैं। कुछ दिन पहले ही नैनीताल के सबसे बड़े पर्यटन स्थलों में एक टिफिन टॉप भूस्खलन से गिर गया। नैना पीक पहाड़ भी टूट रहा है, चार्टन लॉज और इसके ऊपर का पूरा पहाड़ भूस्खलन की जद में है, लेकिन तमाम चेतावनियों और आपदाओं के बाद भी लोग मानने को तैयार नहीं हैं। हकीकत यही है कि अगर विनाश से बचना है तो जमीन पर कुदरत से खिलवाड़ को रोकना होगा, और विकास की गति को साधना होगा। वरना हर बार कुदरत अपना बदला लेगी और उसका ये बदला हर बार और ज्यादा भयानक होगा।