उपनल प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का कड़ा फैसला | Uttarakhand News | CM Dhami | UPNL Workers

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जी हां दोस्तो एक संविदाकर्मियों की सरकार को दो टूक, अब सरकार के सामने रख दी नई मांग तो दूसरी तरफ उपनल के मामले में उत्तराखंड सरकार को लग गई फटकार। उपनल मामले में सुप्रिम कोर्ट ने अपने बड़े फैसले के जरिए दिया राज्य सरकार को तगड़ा झटका। Supreme Court’s decision in the UPNL case खारिज कर दी याचिका क्या कहा सुप्रिम कोर्ट ने, कितना पड़ेगा फर्क, क्या संविदाकर्मियों का संघर्ष होगा खत्म। दगड़ियो उत्तराखंड सरकार को उपनल मामलों में  सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। दरअसल उपनल कर्मचारियों से संबंधित राज्य सरकार द्वारा दायर की गई सभी समीक्षा याचिकाएँ (Review Petitions) सर्वोच्च न्यायालय ने एक साथ सुनवाई करते हुए पूरी तरह खारिज कर दीं। ये याचिकाएँ कुंदन सिंह बनाम राज्य उत्तराखंड केस और उससे जुड़े अन्य कई मामलों से संबंधित थीं, जिनमें सरकार लंबे समय से राहत पाने की कोशिश कर रही थी। दोस्तो इस संबंध में एक साथ सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने अपने आदेश में साफ कहा कि 15 अक्टूबर 2024 को दिया गया निर्णय बिल्कुल सही व स्पष्ट था।

अदालत ने स्पष्ट तौर पर यह भी कहा कि पूर्व में पारित आदेश बिल्कुल स्पष्ट है और आदेश में किसी भी तरह की स्पष्ट त्रुटि नहीं है, इसलिए पुनर्विचार (Review) का कोई औचित्य नहीं बनता। यहां दोस्तो आपको बता दूं कि राज्य सरकार ने 2019 से 2021 के बीच दायर विभिन्न SLP और सिविल अपीलों पर दोबारा विचार करने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने विलंब क्षमा करने के बावजूद ये मान लिया कि याचिकाएँ मेरिट पर खड़ी ही नहीं उतरतीं। इसी के साथ अदालत ने इन मामलों से जुड़े सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया। दोस्तो उपनल कर्मचारियों का मुद्दा वर्षों से विवादों में रहा है। इस मामले में उच्च न्यायालय पहले ही कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय दे चुका था और राज्य सरकार उस फैसले को बार-बार चुनौती देती रही। अब सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अपने पुराने आदेश को ही अंतिम माना है, जिससे स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश जैसे के तैसे लागू होंगे और उपनल कर्मचारियों से जुड़े हजारों मामलों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ ही दोस्तो उपनल कर्मचारियों द्वारा लंबे समय से की जा रही समान कार्य समान वेतन एवं नियमितिकरण की मांग पर अब राज्य सरकार की आगे की कानूनी राह भी पूरी तरह बंद हो गई है। अब राज्य सरकार न्यायालय के आदेश को मानने हेतु बाध्य है हालांकि सरकार द्वारा विधानसभा के माध्यम से इसका तोड़ निकालने की कोशिश हो सकती है परंतु इससे सरकार को उपनल कर्मचारियों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ सकता है।

दोस्तो उत्तराखंड में नियमितीकरण की मांग को लेकर संविदाकर्मी पिछले कई दिनों से देहरादून के परेड ग्राउंड में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर डटे हुए हैं। हालांकि, बुधवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कैबिनेट बैठक में ये मुद्दा उठा, जिसके बाद एक उपसमिति गठित करने का निर्णय लिया गया, जो दो महीने में रिपोर्ट देगी, लेकिन संविदाकर्मियों ने इस फैसले को अस्वीकार करते हुए कहा है कि जब तक सरकार की ओर से लिखित आश्वासन नहीं मिलता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। दोस्तो राजधानी देहरादून की कड़कड़ाती ठंड के बावजूद विभिन्न जिलों से आए हजारों संविदाकर्मी दिन-रात मैदान में डटे हुए हैं। उनका कहना है कि 10 से 15 हजार रुपये के मामूली वेतन में घर चलाना नामुमकिन हो गया है किराया, बच्चों की फीस और बुजुर्ग माता-पिता की दवाइयों का खर्च पूरा करना मुश्किल है। कई कर्मचारी 10 से 15 साल से एक ही मानदेय पर काम कर रहे हैं, लेकिन वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। इतना ही नहीं दोस्तो संविदाकर्मी सरकार पर ‘कमेटी-कमेटी’ खेलने का आरोप लगा रहे हैं। प्रदेश के कई जिलों से अब संविदाकर्मि इस आंदोलन का हिस्सा बनने लगे हैं। कई करमि बताते हैं कि वो पिछले 12 साल से तैनात हैं और परिवार की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर है, लेकिन इतनी कम तनख्वाह में गुज़ारा नहीं हो पाता। वहीं, कुछ ये कहना है कि उत्तरकाशी से रुद्रप्रयाग में नौकरी कर रहे हैं, उन्हें अपने घर से 250 किलोमीटर दूर रहकर किराया और बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना पड़ता है। दोस्तो संविदाकर्मी तो यहां तक कहते दिखाई दे रहे हैं कि अगर होटल में काम करते तो 30-35 हजार कमा लेते, यहां 15-18 हजार में गुजर-बसर करना भारी पड़ रहा है।