Supreme Court का फैसाल, शिक्षकों की जाएगी नौकरी! | Uttarakhand News | Harish Rawat | CM Dhami

Share

SC के फैसले से उत्तराखंड के शिक्षकों में मच गया हड़कंप, 15 हजार नौकरियों पर मंडराया संकट। कांग्रेस ने सरकार को घेरा, बदलाव की उठ गई मांग। दगड़ियो सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला जिसने प्रदेश भर के शिक्षकों की टेंशन को बढ़ा दिया है, उसे बताने के लिए आया हूं। Teachers are in a state of panic due to SC’s decision सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में हलचल मचा दी है। इस फैसले के बाद प्रदेश के 15 हजार से ज्यादा शिक्षकों की नौकरियां खतरे में पड़ गई हैं। प्रभावित शिक्षकों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है और राजनीतिक गलियारों में भी इस मुद्दे को लेकर बयानबाज़ी तेज हो गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस पर सरकार को घेरते हुए तत्काल समाधान की मांग की है।साथ ही काग्रेस के नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यंत्री हरीश रावत ने कैसे सरकार को घेरा है। जी हां दगड़ियो सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से उत्तराखंड में 15 हजार से ज्यादा शिक्षकों की नौकरी दांव पर है… ऐसे में शिक्षक संघ ने केंद्र की सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए आंदोलन करने का मन बनाया है। शिक्षकों के इस आंदोलन को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का भी समर्थन मिला है। दरअसल,दगड़ियो प्रदेश में 2011 से पहले नियुक्त हुए लगभग 15 हजार से अधिक शिक्षकों के लिए टीईटी परीक्षा यानी शिक्षक पात्रता परीक्षा अनिवार्य कर दी गयी है, जिससे उत्तराखंड में हड़कंप मचा हुआ है। वहीं शिक्षक संघ भी आंदोलन की राह पर हैं। इधर शिक्षक संघ ने इस फैसले के लिए केंद्र की सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।

वहीं इस मामले पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने टीईटी की अनिवार्यता का विरोध करते हुए शिक्षकों की मांगों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार शिक्षकों के लिए टीईटी टेस्ट अनिवार्य कर दिया है। इस आदेश के तहत यह कहा गया है कि 2011 से पहले वाले शिक्षकों के लिए टीचर्स पात्रता टेस्ट पास करना जरूरी है, लेकिन इतने वर्षों बाद शिक्षकों के लिए इस टेस्ट को पास करना कठिन हो गया है। दोस्तो सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद हजारों शिक्षकों के सामने नौकरी की तलवार लटक गई है। इन परिस्थितियों में राज्य सरकार को चाहिए कि केंद्र सरकार से मदद लेकर सुप्रीम कोर्ट मे 2011 से पहले वाले शिक्षकों के हितों की पैरवी करें, हरीश रावत का कहना है कि पहले से ही सभी अर्हता पूरी कर चुके शिक्षकों के लिए अब टीईटी की परीक्षा उत्तीर्ण करना कठिन काम हो गया है। इस स्थिति में राज्य सरकार को अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखना चाहिए. हरीश रावत ने कहा कि हाल फिलहाल जो नए शिक्षकों के बैच आये हैं, वही एलिजिबिलिटी टेस्ट पास कर सकते हैं लेकिन जिनको शिक्षण कार्य करते हुए 15 साल से अधिक समय हो गया है, उनके लिए टीईटी परीक्षा पास करना अब असंभव हो गया है। इस फैसले से हजारों शिक्षकों की आजीविका पर तलवार लटक गई है। ऐसे में राज्य सरकारों को चाहिए कि ठीक तरीके से राज्य सरकारें अपना केस रखें, जिससे आने वाले समय के लिए एलेबलिटीज टेस्ट लागू हो, साथ दोस्तो उन्होंने तर्क दिया कि बीते दो-चार सालों में आये शिक्षकों के नए बैच इस परीक्षा को पास कर सकते हैं, लेकिन जिन शिक्षकों को शैक्षणिक सेवाएं देते हुए 15 से 20 साल का वक्त बीत गया है, उनके लिए इस परीक्षा को पास करना अब कठिन हो गया है। इससे हजारों शिक्षकों की आजीविका पर असर पड़ रहा है।

राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के सामने सारे तथ्य रखने चाहिए। हरीश रावत उदाहरण देते हुए कहा कि जब वह दो बार चुनाव हार गए, तब मैंने अतिथि शिक्षक के तौर पर बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया और अपने सहयोगियों से इंटर की पुस्तकें मंगवाई, लेकिन जब कुछ समझ नहीं आया तब मैंने हाई स्कूल की किताबें मंगवाई. उसके बाद भी जब कुछ समझ नहीं आई तो ये पता चला कि हम मिडिल क्लास लायक भी नहीं रह गए हैं.इस मामले में उत्तराखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि 4 से 5 साल पहले 2017-18 में एनसीटी में एक नॉर्म्स लागू किया गया था कि जिन्होंने उत्तराखंड से विशिष्ट बीटीसी परीक्षा पास की है, उन्हें दोबारा परीक्षा देनी पड़ेगी, लेकिन उत्तराखंड की राजनीति से जुड़े नेताओं ने कोई सहायता शिक्षकों की उस समय नहीं की। जब शिक्षकों ने तत्कालीन एचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर के समक्ष अपना दुखड़ा रोया, तो उन्होंने भी माना कि यह बहुत गलत हुआ है उसके बाद प्रकाश जावड़ेकर राज्यसभा और लोकसभा में संशोधन लाए तब जाकर शिक्षकों को राहत मिली कि उन्हें कोई परीक्षा देने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बयान पर कहा कि साल 2010 और 11 में जितनी भी भर्तियां शिक्षकों की हो रही हैं, वह सभी भर्तियां TET-2 के हिसाब से हो रही हैं, लेकिन 55 से 60 साल की आयु वाले शिक्षकों के लिए टीईटी की परीक्षा पास करना बिल्कुल असंभव है। यह मामला न केवल हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी से जुड़ा है, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था की स्थिरता पर भी सवाल खड़े करता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सम्मान करते हुए भी सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि योग्य और कार्यरत शिक्षक न्याय से वंचित न हों। अगर समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो यह मसला एक बड़े जन आंदोलन का रूप ले सकता है।