सुशीला बलूनी ये नाम याद है क्या… याद नहीं है याद कीजिए जरूर
उत्तराखंड की वो ‘नायिका’ जो अब नहीं रही… उनके सम्मान में गमगीन तो होना जरूर चाहिए
वो याद आएंगी… उत्तराखंड के निर्माण में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता
वो आंदोलनकारी थी… जीते जी आंदोलन किया… देवभूमि के लोगों के लिए… उनके सम्मान के लिए… सिर्फ औऱ सिर्फ उत्तराखंड के लिए वो जीती रही है… अब चली गई… इस दुनिया को छोड़कर… उन्हें दिल से याद करना जरूरी है… वो वहीं है… जिन्होंने उत्तराखंड के लिए अपनी जान बाजी पर लगाई… उस वक्त में मर्दानी बनी… जिस वक्त सरकार ने तांडव दिखाया था… सुशील बलूनी फाइटर रही… जबतक रही इस जहां में तबतक लड़ती रही है… कभी सरकार से लोहा लिया… कभी अपनी शरीर की कमजोरियों को छकाया… आज नहीं हैं तो याद करना जरूरी है… उत्तराखंड की वो नायिका अब नहीं रही तो उनके सम्मान में गमगीन होना तो जरूरी है… सुशीला बलूनी आप याद आएंगी…
वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी सुशीला बलूनी भले ही अब हमारे बीच ना हो, लेकिन उत्तराखंड निर्माण के लिए उनका योगदान सदियों तक याद रहेगा… वो उत्तराखंड की पहली महिला थीं, जो राज्य निर्माण के लिए भूख हड़ताल पर बैठीं… उन्होंने महिलाओं को जोड़ा, राज्य आंदोलन की आग को प्रचंड रूप देने में अहम भूमिका निभाई… कई बार गिरफ्तार हुईं, जेल भी गईं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी… बलूनी ने गांव-गांव से लोगों को जोड़ा…दिल्ली उत्तरप्रदेश में आंदोलन में उनकी अहम भूमिका रही है…सुशीला इंद्रमणि बडोनी की अगुवाई वाली उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के केंद्रीय संयोजक मंडल की सदस्य भी रही है… इसके बाद वो उत्तराखंड आंदोलन में महिलाओं की केंद्रीय संघर्ष समिति की संयोजक बनी… अनेक बार जेल यात्राएं करने के अलावा वो लाठीचार्ज में घायल हुईं….रामपुर तिराहा कांड के आंदोलन की कमान उन्होंने संभाली… कई दलों में भी भूमिका निभाई थी… आज उत्तराखंड में स्वंय के अस्तित्व के साथ चमक रहा है… देश को बता रहा है… देवभूमि भी है… जहां वीरो का वास है…
वीरता तो सुशीला बलूनी अपने शरीर की कमजोरियों को भी दिखाया… उसे सीखाया… जीवन लड़ने का नाम है… जीवन चलते रहने का नाम है… एक वक्त ऐसा आया… जब एक लाइलाज बीमारी ने उनके शरीर में वास कर लिया था… उसने उसको ठिकाना बना लिया था… उसने वक्त से पहले वीरांगना सुशीला बलूनी को अपनी जद में लेने का प्रयास किया… लेकिन वो तो संघर्ष करने की आदी रही है… इतनी आसानी से हार कहा मानने वाली थी… वो लड़ी… जीभरकर लड़ी… मर्दानी बनकर लड़ी… चार साल से लीवर की समस्या से जूझती रही…बलूनी ताई तो जिंदादिली से जिंदा थी… बीमारी को वो कई बार मात दे चुकी थी… लेकिन आखिरकार मृत्युलोक में जिंदगी पर मृत्यु की जीत हो गई… बलूनी इस दुनिया में अब नहीं है… लेकिन वो याद हमेशा आएंगी… बलूनी के तीन बेटे और एक बेटी है… बड़े बेटे विनय बलूनी वैज्ञानिक, दूसरे बेटे संजय बलूनी वकील, तीसरे बेटे विजय नौकरीपेशा है…बहरहाल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वरिष्ठ आंदोलनकारी और उत्तराखंड महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुशीला बलूनी के निधन पर दुख जताया है… उन्होंने श्रद्धांजलि दी… सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता उन्हें दिल से याद कर रहे हैं… क्योंकि सुशीला ताई थी ही ऐसी…