देहरादून में दिखा तमसा नदी का कहर, डूब गया टपकेश्वर महादेव मंदिर। सैलाब देख दंग रह जाएंगे आप, जब डूब गया देहादून का टपकेश्वर महादेव मंदिर, दोस्तो देहरादून की शांत वादियों में बसा टपकेश्वर महादेव मंदिर, जहां हर रोज़ शिवभक्तों की गूंज सुनाई देती थी, वह अब तमसा नदी की उग्र गर्जना से कांप रहा है। Tamsa River In Spate मानसून की कहर बरसाती रात ने न सिर्फ़ मंदिर की पवित्रता को डुबोया, बल्कि लोगों के दिलों में डर और सवाल भी छोड़ दिए। क्या प्रकृति हमें चेतावनी दे रही है? और क्या हम अब भी तैयार हैं? अंदाजा लगाया जा सकता है कि तमसा नदी कितने गुस्से में है, अपने रौद्र रूप में है। दोस्तो देहरादून का प्रसिद्ध टपकेश्वर महादेव मंदिर सोमवार‑रात की भीषण बारिश व बादल फटने की घटना के बाद तमसा नदी की उफान का शिकार हो गया। इस घटना ने शहरवासियों और श्रद्धालुओं में भय और चिंताएँ बढ़ा दी हैं। नीचे पूरी घटना, उसके कारण, और उससे सबक का विवेचन है। दोस्तो भारी वर्षा और बादल फटने की घटना देहरादून में रात में हुई थी, जिसने तमसा नदी का जलस्तर तीव्रता से बढ़ा दिया।
दोस्तो नदी ने अपने तटों को छोड़ते हुए मंदिर परिसर के आँगन और बाहरी हिस्सों को पानी में डुबो दिया। मंदिर की प्रतिमाएँ, सीढ़ियाँ और बाहरी मार्ग प्रभावित हुए, मंदिर के अंदर‑गर्भगृह तक तो पानी नहीं पहुँचा, पर बाहरी संरचनाओं को भारी नुकसान हुआ है। एक लोहे का पुल, जो संतोषी माता मंदिर की ओर जाता था, पानी के तेज बहाव से बह गया। दोस्तो मौसम विभाग ने इस क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा की चेतावनी जारी की थी, ‘रेड अलर्ट’ स्तर की। बादल फटने की घटना, जिसमे पहाड़ियों से अचानक भारी पानी निचले इलाकों की ओर धकेलता है, इस तरह के स्थानों पर अचानक बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करती है। दोस्तो यहां बता दूं कि तमसा नदी टपकेश्वर मंदिर के ठीक नीचे बहती है, यानी कि मंदिर और नदी के बीच कोई बहुत बड़ी दूरी नहीं है। यह स्थान चयन दृष्टिकोण से जोखिम‑पूर्ण है जब नदी उफान पर हो। आसपास की ढलानों से मलबा और धूल से नदी अपने जल प्रवाह को तेजी से भर लेती है। पहाड़ों से गिरने वाला पानी वहां के जल प्रवाह को बढ़ाता है। यह एक सामान्य घटना है मानसून के दौरान, वहीं दोस्तो एक और पहलू मानवीय और इंफ्रास्ट्रक्चरल का भी है। अधिकतर संरचनाएँ पारंपरिक निर्माण सामग्री और तरीके से बनी हैं, जिनमें आधुनिक जलप्रवाह नियंत्रण व्यवस्था कम है। जब पहाड़ियों पर जंगल कटते हैं, प्राकृतिक जल अवरोध कम होते हैं, पानी तेजी से नीचे आता है।
दोस्तो ये भी बता दूं कि टपकेश्वर महादेव मंदिर एक प्राचीन व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। वहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है, खास कर शिव‑पूजा और अन्य पर्वों पर इस तरह की आपदा से लोगों की आस्था पर संकट आता है। कई श्रद्धालु भयभीत हैं कि सुरक्षित स्थिति नहीं है, भविष्य में ऐसी घटनाएँ हो सकती हैं। मंदिर के आस‑पास के निवासी, दुकानदार और पर्यटक प्रभावित हुए। पानी मार्गों को रोके, सड़कें जलमग्न हुईं। लोगों को नदी किनारों से दूर रहने की चेतावनी दी गई। मंदिर प्रशासन ने कुछ मार्ग बंद किए, सुरक्षा उपायों की शुरुआत की। मौसम विभाग लगातार अपडेट दे रहा है। भविष्य के लिए अगले कुछ दिनों में और बारिश की संभावना जताई गई है। दोस्तो उन मंदिरों, पुलों और सार्वजनिक स्थानों की संरचनात्मक मजबूती में सुधार करना होगा जो नदी किनारे हैं। नदी तट की दीवारें, सीढ़ियों, बहाव‑रोकने वाली संरचनाएँ आदि को मजबूत किया जाना चाहिए। टपकेश्वर महादेव मंदिर की यह घटना केवल एक धार्मिक स्थल के लिए नहीं बल्कि पूरे देहरादून शहर के लिए चेतावनी है कि प्रकृति की शक्ति के सामने हम कितने नाज़ुक हैं। जब नदियाँ उफान पर हों, बारिश असाधारण हो, तो हमारी तैयारियाँ, संरचनाएँ और जागरूकता कितनी महत्वपूर्ण होती है, यह इस घटना ने स्पष्ट कर दिया। भविष्य में ऐसी विपत्तियों से बचने के लिए सिर्फ् आपदा प्रबंधन और प्रशासन नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिक की सतर्कता और सहयोग भी अनिवार्य है। मंदिर जैसी सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखना हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है।