उत्तराखंड में टेंडर घोटाला? | Nainital High Court | Uttarakhand News | Chakrata Ghotala News

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उत्तराखंड के टेंडर घोटाला? अब हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, पर्दे के पीछे क्या चल रहा है खेल?दगड़ियो बिना विज्ञप्ति बाँटे गए टेंडर, हाईकोर्ट ने तलब किया रिकॉर्ड — क्या सत्ता के करीबी हैं शामिल? सब बताने के लिए आया हूं। Tender scam in Uttarakhand जी हां दोस्तो चहेतों को ठेके, बाकी को धोखा’ चकराता टेंडर पर हाईकोर्ट की पैनी नजर, जांच में खुलेंगे कितने राज़?सब बताउंगा आपको आप से बस गुजारिश इतनी है कि आप अंत तक मेरे साथ वीडियो में बने रहें ताकि कोई भी जानकारी छूटे नहीं। दोस्तो उत्तराखंड की शांत वादियों में बसा देहरादून का चकराता क्षेत्र अब सुर्खियों में है बल लेकिन इस बार वजह उसकी खूबसूरती नहीं, बल्कि सियासी व्यवस्था की बदसूरत परछाईं है। नैनीताल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से वो सवाल पूछे हैं, जो आज आम जनता के दिल में तैर रहे हैं: किस नियम के तहत बिना विज्ञप्ति टेंडर बांटे दिए गए। अब इस मामले में कोर्ट का कड़ा रुख ये कि रिकॉर्ड दो हफ्ते में पेश करो, क्या होगा बल रिपोर्ट पेश होगी या नहीं आगे बात होगी पहले खबर समझिए। दगड़ियो बिना विज्ञप्ति जारी किए चहेतों को टेंडर आबंटित करने का आरोप है।

दरअसल, देहरादून निवासी आर्मी के रिटायर्ड यशपाल सिंह समेत अन्य लोगों ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिसमें उन्होंने कहा है कि देहरादून के चकराता में राज्य सरकार की ओर से बिना टेंडर की विज्ञप्ति जारी किए अपने चहेतों को टेंडर आबंटित कर दिए गए हैं। समझिएगा खेल क्या चल रहा है दोस्तो इस याचिका में ये भी कहा गया है कि राज्य सरकार ने साल 2023-24 में इस क्षेत्र के लिए 59 टेंडरों में से कुल 5 टेंडरों की विज्ञप्ति जारी की जबकि, 55 टेंडर अपने चहेतों को आबंटित कर दिए गए। इतना ही नहीं दगड़ियो जब एक टेंडर कर्ता को टेंडर नहीं मिला तो उसने इसकी शिकायत की। उसकी शिकायत के आधार पर उसे भी टेंडर दे दिया गया, वो भी बिना विज्ञप्ति जारी किए, तो क्या कोई बड़ा घपला हो गया कोई घोटाला हो गया। क्योंकि मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने राज्य सरकार से सख्त लहजे में पूछा कि आखिर कैसे 2023-24 में 59 में से सिर्फ 5 टेंडरों की विज्ञप्ति जारी की गई और बाकी 55 टेंडर सीधे-सीधे ‘चहेतों’ को दे दिए गए? कोर्ट ने दो सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। दोस्तो ये सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, ये लोकतंत्र के उस स्तंभ पर प्रहार है, जिसमें पारदर्शिता सबसे पहली शर्त होती है।

अब दोस्तो इसे ऐसे भी समझिए टेंडर में बिड्स लगाने से राज्य सरकार को राजस्व मिलता है। याचिका में ये भी कहा गया कि विज्ञप्ति जारी करने पर उस टेंडर में बिड्स लगाने वाले कई ठेकेदार होते हैं। निर्धारित बिड्स से ज्यादा की बोली लगने और उस कार्य को करने वालों से राज्य सरकार को आय प्राप्त होती है। यहां कोई विज्ञप्ति जारी नहीं होने के कारण सरकार को राजस्व की हानि होती है। इसमें कोई मोल भाव नहीं होता है, तो दगड़ियो जब टेंडर की खुली विज्ञप्ति होती है, तब कई ठेकेदार बिडिंग करते हैं। इससे सरकार को ज्यादा बोली मिलने पर अतिरिक्त राजस्व मिलता है, वो नहीं मिला बल लेकिन जब टेंडर गुपचुप तरीके से बांटे जाएं, तो सरकार को होने वाली आमदनी पर ‘निजी फायदे’ का ताला लग जाता है तो सवाल ये है — क्या जनता के हिस्से की कमाई किसी और की जेब में जा रही है, इसमें मेने आपको पहले बताया था और सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि याचिका में कहा गया है: एक ठेकेदार ने जब शिकायत की कि उसे टेंडर क्यों नहीं मिला, तो उसे भी बिना विज्ञप्ति ही टेंडर दे दिया गया। गजब हो रहा है ना अपने प्रदेश में देहरादून प्रदेश की राजधानी के चकराता में क्या यह पूरी व्यवस्था को ही एक मज़ाक में तब्दील कर दिया गया है।

दगड़ियो अब सरकार की जवाबदेह है, अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी। क्या होगा मै बताउंगा आपको लेकिन  हाईकोर्ट ने सरकार को दो टूक शब्दों में कहा है — पूरी टेंडर प्रक्रिया की रिपोर्ट और दस्तावेज़ अदालत में पेश करो। ये आदेश सिर्फ एक प्रशासनिक निर्देश नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है कि अब जनता की नज़रें इस घोटाले पर हैं। सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ चकराता तक सीमित है या पूरे राज्य में ऐसा हो रहा है?  क्या टेंडर देने की आड़ में राजनीतिक कृपा बांटी जा रही हैं और सबसे अहम — जनता का पैसा अगर चुपचाप चहेतों को बांटा जा रहा है, तो क्या ये लूट नहीं है?दगड़ियो यॉे मामला सिर्फ एक टेंडर प्रक्रिया का नहीं, बल्कि सिस्टम की पारदर्शिता और जवाबदेही की परीक्षा है। हाईकोर्ट की सख्ती एक सकारात्मक शुरुआत हो सकती है — बशर्ते सरकार अब सिर्फ कागज़ी जवाब नहीं, बल्कि ईमानदार नीयत के साथ सामने आए। वरना आने वाले समय में चकराता की ये गूंज पूरे उत्तराखंड में सुनाई देगी — कब तक चुप रहेगा सिस्टम, और कब तक बंटते रहेंगे टेंडर चुपचाप।