दोस्तो क्या आपको अपने नेता और विधायक और मंत्री से मुलाकात करनी है किसी मामले पर मिलना है तो आप कहां मिलेंगे। कहां मुलाकात हो सकती है, जाहिर ज्यादा तर लोगों का जवाब ये होगा कि ये कैसे सवाल है मंत्री विधियाक सचिवालय और विधानसभा में मिलेंगे और कहां। अगर मै कहूं आपके नेता जी यहां पर बैठते ही नहीं तब आप क्या कहेंगे, तब कहां ढूंढेगे अपने नेता को ये मै क्यों कह रहा हूं। तो मेरा सीधा सा सवाल है दोस्तो जनता कहां ढूंढे अपने नेता को, दगड़ियो न मंत्री न विधायक और विधानसभा में लटके हैं ताले! जी हाँ, उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में आज कुछ ऐसा हुआ जिसने सत्ता के गलियारों की चुप्पी को सवालों में बदल दिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जब अचानक विधानसभा भवन पहुँचे, तो नज़ारा हैरान करने वाला था — मंत्री और विधायक नदारद थे, और उनके कक्षों पर ताले लटक रहे थे। जनता के दरबार समझे जाने वाले इस भवन में जब खुद मुख्यमंत्री को ही नेता नहीं मिले, तो सवाल उठता है — आख़िर जनता अपने प्रतिनिधियों को कहाँ ढूंढे? आज मै बात करूंगा इस औचक निरीक्षण की, मुख्यमंत्री के तीखे संदेश की, और उस गुमशुदा जिम्मेदारी की जो शायद अब कुर्सियों से गायब होती जा रही है। तो आप मेरे साथ बने रहिएगा अंत तक, दोस्तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का आज देहरादून विधानसभा में किया गया औचक निरीक्षण न केवल चौंकाने वाला रहा, बल्कि उत्तराखंड की सरकारी कार्यसंस्कृति पर भी कई सवाल खड़े करता है।
जब मुख्यमंत्री स्वयं विधानसभा पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि अधिकांश मंत्री और विधायक न केवल मौजूद नहीं थे, बल्कि उनके कार्यालयों में ताले लटक रहे थे। यह दृश्य देख कर मुख्यमंत्री ने जो टिप्पणी की, वह सीधे-सीधे मंत्रियों और विधायकों की जवाबदेही पर सवाल है। दोस्तो मंगलवार को जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बिना पूर्व सूचना के देहरादून विधानसभा भवन पहुंचे, तो उन्हें आशा थी कि शायद विधानसभा में मंत्री, विधायक या संबंधित अधिकारी जनता की समस्याओं को सुनने में व्यस्त होंगे। लेकिन विधानसभा परिसर में लगभग वीरानी पसरी थी, अधिकांश कक्ष बंद थे, और कई कमरों के बाहर साफ-साफ ‘ताले’ लटक रहे थे। इस दृश्य को देखकर मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से बात करते हुए स्पष्ट कहा —सचिवालय और विधानसभा, दोनों ही स्थान जनता से संवाद के लिए हैं। इन स्थानों पर मंत्रियों और विधायकों की उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिएसुनिए क्या कहते हैं। मुख्यमंत्री का यह बयान केवल एक निरीक्षण के परिणाम नहीं, बल्कि एक बड़ी प्रशासनिक चिंता की अभिव्यक्ति है। उन्होंने सीधे सवाल उठाया कि —जब मंत्री न सचिवालय में मिलते हैं, न विधानसभा में, तो जनता अपने नेता को कहां खोजे?यह सवाल न केवल वर्तमान विधायकों पर, बल्कि समूची शासन व्यवस्था पर गंभीर टिप्पणी है। एक ओर जहाँ मुख्यमंत्री स्वयं क्षेत्रीय दौरे कर रहे हैं, जनता से संवाद कर रहे हैं, वहीं मंत्रियों की यह निष्क्रियता एक विरोधाभास के रूप में सामने आ रही है।
दगड़ियो अक्सर देखा गया है कि जब जनता की शिकायतें होती हैं, तो सबसे पहले निशाने पर होते हैं निचले स्तर के अधिकारी — बाबू, क्लर्क या जूनियर इंजीनियर। लेकिन आज मुख्यमंत्री ने खुद अपने मंत्रीमंडल के सदस्यों को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा —बैठकें करना, योजनाएं बनाना जरूरी है, लेकिन उससे भी ज़्यादा जरूरी है कि जनता की आवाज़ सीधे सुनी जाए। अगर नेता जनता से दूरी बना लेंगे, तो लोकतंत्र की आत्मा खत्म हो जाएगी। दगड़ियो ये बात सत है कि विधानसभा या सचिवालय केवल कानून बनाने, योजनाओं की फाइलें पास करने का स्थल नहीं है, यह उस राज्य की नब्ज है, जहाँ जनता की हर धड़कन सुनी जानी चाहिए। मुख्यमंत्री ने इसी बात को दोहराया कि विधायकों को चाहिए कि सप्ताह में कम से कम कुछ दिन विधानसभा भवन में बैठें, जनता से मिलें, और सीधे शिकायतों का समाधान करें। यह एक सकारात्मक संदेश भी है कि मुख्यमंत्री चाहते हैं कि शासन-प्रशासन का चेहरा जनता के और करीब आए। दोस्तो धामी का यह दौरा केवल प्रशासकीय नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी था। 2022 की भारी बहुमत वाली जीत के बाद भी यदि सरकार के मंत्री गैरहाजिर रहते हैं, तो इसका सीधा असर जनता के विश्वास पर पड़ता है। धामी शायद यह जताना चाहते हैं कि उनकी प्राथमिकता “सरकार चलाना” नहीं, बल्कि “जनता की सरकार को जमीन पर उतारना” है। पिछले कुछ महीनों में धामी सरकार ने पेपर लीक घोटाले से लेकर भर्ती अनियमितताओं पर सख्त रुख अपनाया है। सीबीआई जांच की घोषणा हो या फर्जीवाड़ा करने वालों पर कार्रवाई — हर बार मुख्यमंत्री ने कड़ा संदेश दिया है। इस घटना को भी उसी कड़ी में देखा जा रहा है — कि अब मंत्रियों, विधायकों और अधिकारियों को मौजूदगी और जवाबदेही दोनों निभानी होगी।
दोस्तो आज जनता यह देख रही है कि सत्ता में बैठा कोई व्यक्ति उनकी बात सुन रहा है या नहीं। यदि मुख्यमंत्री स्वयं औचक निरीक्षण कर रहे हैं, तो यह जनता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। लेकिन इस जिम्मेदारी को एक व्यक्ति नहीं, पूरी शासन प्रणाली को निभाना होगा। विधानसभा में ताले लटकते रहेंगे और जनता दर-दर भटकेगी — तो फिर लोकतंत्र का उद्देश्य अधूरा रह जाएगा। दोस्तो मुख्यमंत्री धामी का औचक निरीक्षण एक प्रतीक है — यह उस व्यवस्था को झकझोरने की कोशिश है जो शायद पदॉ को सेवा समझना भूल गई है। अब यह देखना होगा कि क्या मंत्रियों और विधायकों की कार्यसंस्कृति में कोई वास्तविक परिवर्तन आता है या यह सिर्फ एक दिन की खबर बनकर रह जाएगा, जो भी हो, जनता ने एक सच्चाई जरूर देखी — और यह सवाल अब हर कोने से उठ रहा है माननीय नेता जी, आप आखिर मिलते कहां हैं?