हल्द्वानी: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर जगह तिरंगे की धूम है। वहीं स्वतंत्रता दिवस पर सियाचीन से एक बड़ी खबर सामने आई है। सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन में दबकर शहीद हुए लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद मिला है। पार्थिव शरीर मिलने की सूचना से परिजनों के जख्म एक बार फिर हरे हो गए।
मूल रूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत तहसील अंतर्गत बिन्ता हाथीखुर गांव निवासी लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला 1971 में कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। मई 1984 को बटालियन लीडर लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर के नेतृत्व में 19 जवानों का दल ऑपरेशन मेघदूत के लिए निकला था। 29 मई को भारी हिमस्खलन से पूरी बटालियन दब गई थी, जिसके बाद उन्हें शहीद घोषित कर दिया गया था। उस समय लांसनायक चंद्रशेखर की उम्र 28 साल थी।
शहीद की पत्नी शांति देवी को फोन से जानकारी मिली कि शहीद लांसनायक चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर ग्लेशियर से बरामद हुआ है। परिजनों ने चंद्रशेखर का अंतिम संस्कार पहाड़ के रीति रिवाज के हिसाब से किया था, लेकिन अब 38 साल बाद उनका पार्थिव शरीर सियाचीन में खोजा गया है, जो बर्फ के अंदर दबा हुआ था। जिसके बाद अब उनके पार्थिव शरीर को 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के दिन उनके घर पहुंचेगा।
चंद्रशेखर हरबोला की पत्नी शांति देवी के आंखों के आंसू अब सुख चुके हैं। क्योंकि उनको पता है कि उनके पति अब इस दुनिया में नहीं है। गम उनको सिर्फ इस बात का था की आखिरी समय में उनका चेहरा नहीं देख सकी। वही, उनकी बेटी कविता पांडे ने कहा पिता की मौत के समय वह बहुत छोटी थी। ऐसे में उनको अपने पिता का चेहरा याद नहीं है। अब जब उनका पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचेगा। तभी जाकर उनका चेहरा देख सकेंगे।