उत्तराखंड की एक मां का सपना, एक बेटे की मेहनत अब पूरा देश कर रहा सलाम, पौड़ी में फिर गूंजा जय हिन्दुस्तान। दोस्तो कभी आपने सोचा है कि पहाड़ की तंग पगड़ंडियो में वो कठिन रास्तों और सीमित संसाधनों में से निकलकर कोई युवा सीधे भारतीय सेना की वर्दी तक कैसे पहुंच जाता है? जवाब है संकल्प, संघर्ष और समर्पण। Lieutenant Paras Singh Bisht आज फिर बताने आया हूं आपको एक लाल की खबर कहो या कहानी। पौड़ी गढ़वाल के बाड़ा गांव के लाल, लेफ्टिनेंट पारस सिंह बिष्ट। जब मां-बाप की आंखों में छलक आए गर्व के आंसू। दगड़ियो बिहार के गया में स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) की पासिंग आउट परेड का दृश्य ही कुछ अलग था। अनुशासन, सम्मान और देशभक्ति से लबरेज़ उस मैदान में जब उत्तराखंड के एक नौजवान ने लेफ्टिनेंट की वर्दी पहनी, तो दूर खड़े मां-बाप की आंखें भर आईं। वो सिर्फ उनके बेटे की नहीं, बल्कि पौड़ी की मिट्टी की जीत थी। एक छोटे से गांव बाड़ा की जीत और हर उस परिवार की जीत, जो सपना देखने की हिम्मत रखता है। दोस्तो क्यों खास है पारस की ये उपलब्धि? ये बताने जा रहा हूं दगड़ियो बस आपसे गुजारिस ये है कि आप अंत तक मेरे साथ जरूर बने रहें इस वीडियो में।
पारस कोई अमीर या राजनीतिक परिवार से नहीं आते उनके पिता नेत्र सिंह बिष्ट दिल्ली के राष्ट्रीय बाल भवन में कर्मचारी हैं। मां नीमा देवी एक सामान्य गृहिणी हैं पारस तीन बहनों के इकलौते भाई हैं। सीमित साधनों में पढ़ाई की, संघर्ष किया और बड़ा सपना देखा — सेना में अफसर बनने का। आज जब वही पारस IMA की पासिंग आउट परेड में गर्व से सीना ताने खड़े थे, तो सिर्फ एक इंसान नहीं, एक विचार खड़ा था — कि अगर हौसला हो, तो पहाड़ की चोटी भी छोटी लगती है। दिल्ली की गलियों से निकला एक लड़का सेना की परेड तक कैसे पहुंच गया बल। दोस्तो पारस की शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के आंध्रा एजुकेशन सोसायटी स्कूल से हुई, फिर उन्होंने आईपी यूनिवर्सिटी से बी.टेक (आईटी) की डिग्री हासिल की..तकनीकी करियर का रास्ता उनके सामने था, लेकिन दिल में कुछ और ही था — वर्दी का सपना। दोस्तो पारस ने एसएससी टेक एंट्री के माध्यम से सेना में अफसर बनने का फैसला किया। कठिन परीक्षाएं, इंटरव्यू, मेडिकल टेस्ट — सब एक-एक कर पार किया और आज परिणाम सबके सामने है।
दगड़ियो पारस की कहानी सिर्फ एक चयन नहीं, प्रेरणा है, आज जब देश के कई युवा दिशाहीन हो रहे हैं, शॉर्टकट ढूंढ रहे हैं, पारस की कहानी बताती है कि डिग्री से नहीं, सोच से फर्क पड़ता है। पौड़ी के लाल ने तकनीकी शिक्षा लेकर भी वर्दी को चुना क्योंकि उनके लिए नौकरी नहीं, सेवा प्राथमिकता थी। मां भारती के लिए कुछ करने का जुनून ही उन्हें लेफ्टिनेंट की वर्दी तक लाया। दोस्तो पारस की यह उपलब्धि सिर्फ उनके परिवार की नहीं है। दहअसल ये पौड़ी जिले की परंपरा का हिस्सा है — एक परंपरा जो देश को जनरल बिपिन रावत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जैसे रत्न दे चुकी है। जी हां दोस्तो ये वहीं पौड़ी है, अब उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं पारस बिष्ट उनकी यह यात्रा हर उस युवा को संदेश देती है जो छोटे गांवों से हैं, सीमित संसाधनों से हैं, लेकिन बड़े सपने देखते हैं। पारस ने अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार को दिया और कहा यह उपलब्धि मेरे परिवार के सहयोग, आशीर्वाद और प्रेरणा से संभव हुई है। मैं संकल्प लेता हूं कि मैं पूरे समर्पण और निष्ठा के साथ मां भारती की सेवा करूंगा।
दगड़ियो पारस के दादा-दादी आज भी गांव में रहते हैं नाना-नानी रुद्रप्रयाग के नवासू गांव से हैं। पूरे इलाके में खुशी की लहर है। दोस्तो पारस की ये कहानी इस बात का सबूत है कि उत्तराखंड की वीरभूमि आज भी सपूतों की खान है जहाँ जमीनें कम होंगी, लेकिन हौसले आसमान जितने बड़े हैं। जहाँ बच्चों के सपनों की उड़ान ऊंचाइयों को छूती है, जहाँ हर घर से कोई ‘फौजी बेटा’ निकलने की उम्मीद होती है। लेफ्टिनेंट पारस बिष्ट — एक नाम नहीं, एक उम्मीद का प्रतीक बन चुका है, क्योंकि वीरभूमि पौड़ी गढ़वाल का एक और लाल भारतीय सेना का अभिन्न हिस्सा बन गया चुका है। पौड़ी पहले भी देश को विपिन रावत जैसे पहले सीडीएस बिपिन रावत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जैसे रत्न दे चुका है। अब पारस की ये उपलब्धि एक बार फिर से पौड़ी को गौरवान्वित कर रही है।