अब मंडरा रहा ये बड़ा खतरा? | Uttarakhand News | Heavy Rain | Breaking News | CM Dhami

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आपदा से उबरा नहीं उत्तराखंड, अब एक नई मुसीबत लोगों को डराने लगी है, जलभराव बना बड़ी चिंता। उत्तराखंड में महामारी के डर ने सरकार से लेकर सिस्टम को हिलाया अब मंडरा रहा ये बड़ा खतरा? दगडड़ियो अपने उत्तराखंड की ज़मीन पर आपदाओं का साया नया नहीं है, लेकिन  साल  2025 की प्राकृतिक त्रासदी ने राज्य को हर स्तर पर झकझोर कर रख दिया है। अप्रैल से अगस्त तक की भीषण बारिश, भूस्खलन और बाढ़ ने न सिर्फ मानव जीवन और संपत्ति को तबाह किया, बल्कि अब इस तबाही के बीच बीमारियों और महामारी के खतरे ने एक और संकट खड़ा कर दिया है। दगड़ियो आपदा अभी पूरी तरह से थमी भी नहीं है, लेकिन जलभराव, गंदगी और मलबे ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। खासकर मैदानी और अर्ध-पर्वतीय क्षेत्रों में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि वहां टाइफाइड, हैजा (कालरा), पीलिया और अन्य संक्रमण फैलने की आशंका तेज़ हो गई है। इसका आभास सरकार को भी है स्वास्थ्य विभाग को भी है। दोस्तो उत्तराखंड में अगस्त 2025 में मूसलधार बारिश ने कई ज़िलों में तबाही मचाई। उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी गढ़वाल और टिहरी जैसे पर्वतीय ज़िलों के अलावा हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून जैसे मैदानी इलाके भी बुरी तरह प्रभावित हुए। जहां पहाड़ों में भूस्खलन और मकान गिरने की घटनाएं हुईं, वहीं मैदानी क्षेत्रों में भयंकर जलभराव के कारण सड़कें, घर और खेत जलमग्न हो गए।

उत्तराखंड राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के मुताबिक, 1 अप्रैल से अब तक 80 लोगों की मौत, 114 घायल और 95 लोग लापता हैं। वहीं, 88 बड़े पशु और 1481 छोटे पशु मारे जा चुके हैं। मकानों की बात करें तो अब तक 229 मकान पूरी तरह ध्वस्त, 71 मकान आधे से ज़्यादा टूट चुके, और 1828 मकानों को आंशिक नुकसान हुआ है। दगड़ियो लेकिन इन आँकड़ों के बीच सबसे डरावना सच है — बीमारी का फैलना। आपदाएं अपने साथ सिर्फ मलबा नहीं, बीमारियों के बीज भी छोड़ जाती हैं। यही हाल अब उत्तराखंड के कई हिस्सों में देखने को मिल रहा है। जलभराव और टूटी-फूटी ड्रेनेज लाइनों की वजह से जगह-जगह गंदा पानी घरों तक घुस आया है, खाद्य सामग्री सड़ रही है, जानवरों के शव अब भी कई जगहों पर दबे पड़े हैं और पीने का पानी दूषित हो गया है। दगड़ियो डॉक्टरस के अनुसार आपदाग्रस्त क्षेत्रों में टाइफाइड, कालरा, पीलिया जैसी बीमारियां तेजी से फैल सकती हैं। उन्होंने चेताया कि ऐसी स्थिति में साफ पानी, स्वच्छ खाना और व्यक्तिगत स्वच्छता को लेकर लोगों को सतर्क रहना होगा।उत्तराखंड सरकार ने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि जलभराव और गंदगी के चलते बीमारियां फैलने की संभावना काफी अधिक है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि सरकार पूरी तरह सतर्क है और सभी संबंधित विभागों को स्वास्थ्य सुरक्षा के विशेष निर्देश दिए गए हैं। आपदा को लेकर लगातार समीक्षा की जा रही है। जिन क्षेत्रों में महामारी फैलने की आशंका है, वहां स्वास्थ्य विभाग और प्रशासनिक इकाइयाँ पहले से ही अलर्ट पर हैं। उधर स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने जानकारी दी है कि आपदा प्रभावित 78 ग्राम सभाओं में से 65 में स्वास्थ्य शिविर लगाए जा चुके हैं, और शेष में अगले एक सप्ताह में शिविर लगा दिए जाएंगे।

स्वास्थ्य विभाग का प्रयास है कि ‘स्वास्थ्य आपके द्वार’ अभियान के तहत हर प्रभावित व्यक्ति तक चिकित्सा सुविधा पहुँचे। दोस्तो विशेषज्ञों और डॉक्टरों के अनुसार, मानसून सीजन में बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसके पीछे दो प्रमुख कारण होते हैं — जलभराव और दूषित खाद्य व पेय सामग्री। जब आसपास का पानी सड़ता है, नालियों का पानी पीने के पानी से मिल जाता है, और घरों के पास कचरा जमा होता है, तो यह बीमारियों की जन्मभूमि बन जाता है। डॉक्टरों की सलाह है कि इस समय घर का ही पानी उबालकर पिएं  बाहर की चीजें खाने से बचें  छोटे बच्चों को बाहर गंदगी में न जाने दें  हाथ धोना और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें  बासी खाना न खाएं  दोस्तो सरकार दावा कर रही है कि हर गांव, हर प्रभावित इलाके में टीमें तैनात की जा रही हैं। दवाइयां, ORS, क्लोरीन टैबलेट्स और मेडिकल किट बांटी जा रही हैं। लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि कई गांवों तक अभी भी सड़कें टूटी हुई हैं, बिजली-पानी की आपूर्ति बहाल नहीं हुई है और मेडिकल टीमों तक पहुंच बनाना कठिन हो रहा है।78 में से सिर्फ 65 गांवों में शिविर लग पाना, इस बात का संकेत है कि सरकार के प्रयासों और वास्तविक ज़रूरतों के बीच एक वास्तविक फासला अभी भी बना हुआ है। उत्तराखंड के सामने यह वक्त सिर्फ पुनर्निर्माण का नहीं, संक्रमण रोकने और जनस्वास्थ्य को बचाने का भी है। यदि समय रहते सफाई, चिकित्सा और जागरूकता का दायरा नहीं बढ़ाया गया, तो इस आपदा के घाव और भी गहरे हो सकते हैं। जहाँ लोग अभी मलबे से अपने घर खोज रहे हैं, वहीं अगर बीमारी फैल गई तो अस्पतालों तक पहुंचाना एक और आपदा जैसा होगा। यही वजह है कि राज्य को अब सिर्फ राहत शिविर नहीं, बल्कि संक्रमण-रोधी रणनीति और लंबी अवधि की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति की ज़रूरत है।अभी भी वक्त है — सरकार और समाज अगर मिलकर चेत जाएं, तो उत्तराखंड को एक और संकट से बचाया जा सकता है। वरना, मलबे के नीचे दबे घरों की गूंज के साथ, बीमारियों की चुपचाप फैलती परछाइयाँ आने वाले समय को और भी भयावह बना सकती हैं।