पेपर लीक में पहला बड़ा विकेट गिरा ! | UKSSSC | Uttarakhand News | Paper Leak

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पेपर लीक मामले में शासन की पहली बड़ी कार्रवाई, सेक्टर मजिस्ट्रेट के. एन. तिवारी निलंबित किया लापरवाही के चलते गिरी गाज या फिर कुछ है मामला। UKSSSC Paper Leak News उत्तराखंड में पेपर लीक मामले ने एक बार फिर प्रदेश की चयन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं और अब इसी मामले में सरकार की पहली बड़ी कार्रवाई सामने आई है। सेक्टर मजिस्ट्रेट के. एन. तिवारी को निलंबित कर दिया गया है। लेकिन सवाल ये है — क्या सिर्फ तिवारी की लापरवाही से हुआ इतना बड़ा पेपर कांड? या पर्दे के पीछे कोई और बड़ी साजिश छिपी है? आज मै आपको बताउंगा कि कैसे एक इम्तिहान की नींव हिला गई भर्ती व्यवस्था की साख, और क्यों अब जांच एजेंसियों की नजरें तमाम जिम्मेदारों पर टिक गई हैं। दोस्तो उत्तराखंड में पिछले कुछ समय से एक संवेदनशील मुद्दा राज्य की प्रशासनिक और शिक्षा व्यवस्था में चर्चा का विषय बना हुआ है। वह है उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) द्वारा आयोजित स्नातक स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा 2025 में पेपर लीक की गंभीर समस्या। इस मामले ने न केवल परीक्षार्थियों के सपनों को तोड़ा है, बल्कि पूरे चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। दोस्तो उत्तराखंड में पेपर लीक के मामले को लेकर जहां एक तरफ युवाओं का आक्रोश लगातार बना हुआ है तो दूसरी तरफ सरकार ने भी मामले में सख्ती दिखानी शुरू कर दी है।

इसी कड़ी में अब सरकार ने ग्रामीण विकास अभिकरण के परियोजना निदेशक को निलंबित करने का आदेश जारी किया है। दो्स्तो उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा स्नातक स्तरीय परीक्षा आयोजित कराये जाने के दौरान पेपर लीक का मामला सुर्खियों में है। मामले में लगातार जहां एक तरफ पेपर लीक से जुड़े लोगों की खोजबीन जारी है तो वहीं इस मामले में लापरवाही करने वालों पर भी कार्रवाई शुरू कर दी गई है। इसी कड़ी में सरकार ने अब जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के परियोजना निदेशक केएन तिवारी को निलंबित करने का आदेश जारी किया है.वित्त सचिव दिलीप जावलकर ने इस संदर्भ में निलंबन से जुड़ा आदेश जारी किया है.उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा सरकार को हरिद्वार के परीक्षा केंद्र में लापरवाही को लेकर कार्रवाई के लिए लिखा था। जिसमें यह कहा गया था कि परियोजना निदेशक के एन तिवारी को परीक्षा में सुचिता बनाए रखने के लिए जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन जिस तरह से प्रश्न पत्र के तीन पेज केंद्र से बाहर भेजे गए उस हिसाब है कि परीक्षा केंद्र में लापरवाही की गई है। ऐसे में उक्त अधिकारी पर कार्रवाई की जाये। आदेश में यह स्पष्ट किया गया है कि जिस तरह से पेपर परीक्षा केंद्र से बाहर गया उससे साफ है कि परियोजना निदेशक अपनी जिम्मेदारी निभाने में कामयाब नहीं रहे। उनकी संवेदनशीलता इसमें नहीं दिखाई दी।

ऐसे में पेपर लीक मामले में उनकी प्रथम दृष्टया लापरवाही दिखाई देती है। जिसके चलते उन्हें निलंबित किया जाता है। उत्तराखंड में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 21 सितंबर को स्नातक स्तरीय विभिन्न रिक्त पदों के लिए परीक्षा आहूत की थी। जिसमें परीक्षा केंद्र से पेपर शुरू होने के आधे घंटे में ही प्रश्न पत्र के तीन पेज केंद्र से बाहर आ गए थे। इस मामले में सरकार ने SIT का भी गठन कर दिया है। परीक्षा केंद्र से इन तीन पेज को बाहर भेजने वाले खालिद की भी गिरफ्तारी की जा चुकी है। इस मामले का खुलासा तब हुआ जब परीक्षाओं के दौरान और बाद में सोशल मीडिया पर पेपर की तस्वीरें वायरल होने लगीं। पूरे राज्य में यह मामला सुर्खियों में आ गया और समाज में गहरी नाराजगी फैल गई। सरकार और आयोग के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और तत्काल जांच की मांग की। इस विवाद ने कई सवाल खड़े किए कि आखिर कैसे लाखों की संख्या में अभ्यर्थी सम्मिलित होने वाली परीक्षा में इतनी बड़ी चूक हो सकती है? क्या परीक्षा केंद्रों पर लगे जैमर पूरी तरह से काम नहीं कर रहे थे? क्या इस पूरी साजिश के पीछे बड़े पैमाने पर कोई संगठन या गुट है?हालांकि जांच जारी थी, लेकिन अब राज्य सरकार ने अपनी पहली ठोस कार्रवाई करते हुए परियोजना निदेशक ग्राम्य विकास और सेक्टर मजिस्ट्रेट के. एन. तिवारी को निलंबित कर दिया है।

यह कार्रवाई UKSSSC के पत्र के बाद कार्मिक विभाग ने की है। तिवारी पर आरोप है कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी में लापरवाही बरती, जिससे पेपर लीक की घटना को अंजाम मिलने में मदद मिली। यह कदम एक तरह से सरकार की ओर से कठोर संदेश भी माना जा रहा है कि दोषी अधिकारियों को बख्शा नहीं जाएगा। हालांकि, सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या केवल एक अधिकारी को निलंबित करना पर्याप्त होगा, या फिर इसके पीछे और बड़े लोग, जो इस पूरे खेल के मास्टरमाइंड हैं, उन्हें भी बाहर लाना होगा। इधर दोस्तो तिवारी के निलंबन ने एक नई बहस को जन्म दिया है। एक तरफ सरकार और पुलिस जांच में जुटी है, वहीं दूसरी ओर समाज में यह चर्चा हो रही है कि क्या यह केवल लापरवाही का मामला है, या फिर यह कहीं बड़ी साजिश का हिस्सा तो नहीं?ऐसे समय में जब तकनीक का इस्तेमाल परीक्षा केंद्रों की सुरक्षा के लिए किया जाता है, जैमर लगाए जाते हैं, तब भी पेपर कैसे लीक हो सकता है? तकनीकी पहलुओं की जांच चल रही है, लेकिन अभी तक इस बात का कोई ठोस जवाब नहीं मिल पाया है।विशेषज्ञ भी इस बात पर सहमत हैं कि पेपर लीक जैसी घटनाएं केवल कमजोर सुरक्षा व्यवस्था के कारण ही नहीं, बल्कि कहीं न कहीं, परीक्षा प्रक्रिया में शामिल कुछ लोगों की मिलीभगत के कारण भी होती हैं। वहीं दोस्तो यह मामला आयोग और सरकार दोनों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। छात्रों और अभ्यर्थियों की नाराजगी बढ़ रही है, जो सही भी है क्योंकि उनकी मेहनत पर चोट लगी है। कई अभ्यर्थी तो अपनी नौकरी के सपनों को लेकर ही इस परीक्षा में बैठे थे, जो इस घटना से ध्वस्त हो गए।सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह न केवल दोषियों को सजा दे, बल्कि आगे ऐसी कोई घटना न हो इसके लिए सख्त कदम उठाए। इसके लिए आयोग को अपनी परीक्षाओं की प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करना होगा।