बिहार के नतीजे, लेकिन झटका लगा उत्तराखंड में जी हाँ, सूबे की राजनीति में अचानक भूचाल—कांग्रेस दफ्तरों में हलचल, नेताओं में बेचैनी और हाईकमान तक पहुँच चुकी है रिपोर्ट। आखिर ऐसा क्या हुआ कि उत्तराखंड कांग्रेस ने तुरंत समय मांगा? कौन-सी अंदरूनी खींचतान खुलकर सामने आने वाली है? ऐसे ना जाने कई सवाल हैं। Bihar Election Results 2025 दोस्तो बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन की धमाकेदार जीत से उत्तराखंड में भी राजनीतिक सरगर्मियां तेज होती दिखाई दी हैं। बिहार में NDA की बंपर जीत और प्रधानमंत्री मोदी की सुनामी लहर ने जहां उत्तराखंड में 2027 में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर सत्ताधारी बीजेपी में नई ऊर्जा का संचार किया है जिससे पार्टी खासा उत्साहित नजर आ रही है वहीं कांग्रेस पार्टी में खलबली मची हुई है बल। जी हां बिहार चुनाव परिणामों का असर उत्तराखण्ड कांग्रेस के भीतर भी साफ दिखने को मिल रहा है। दरअसल प्रदेश कांग्रेस में पहले से चल रही संगठनात्मक खींचतान और असंतोष, बिहार के नतीजों के बाद और गहरा गया है, हालात ये हैं और खबर ये आ रही है कि उत्तराखंड कांग्रेस के करीब 12 बड़े नेता पार्टी इस संबंध में विस्तृत चर्चा और आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मिलने के लिए समय मांग चुके हैं।
दोस्तो गौर करने वाली बात तो ये भी है कि कांग्रेस हाईकमान ने हाल ही में जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी की थी। उम्मीद की गई थी कि ये बदलाव 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए संगठन को मजबूत करेगा, लेकिन कई जिलों में इसका विरोध खुलकर सामने आ चुका है। उधमसिंह नगर जिले में तो कई पाषर्दों ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा तक दे दिया है। दोस्तो नेताओं का मानना है कि इस फेरबदल को लेकर जमीन पर कार्यकर्ताओं में भ्रम है और इसका असर भविष्य की चुनावी तैयारियों पर पड़ सकता है। बिहार में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद कांग्रेस के भीतर ये चिंता बढ़ गई है कि अगर उत्तराखंड में अभी से रणनीति को न सुधारा गया, तो 2027 में पार्टी को एक और बड़ा झटका लग सकता है। पिछले कई सालों से लोकसभा और विधानसभा दोनों में लगातार हार झेल रही कांग्रेस अब इन नतीजों को चेतावनी के रूप में देख रही है। दोस्तो कांग्रेस के कई नेताओं की माने तो बिहार के नतीजों के बाद प्रदेश में नेताओं की बेचैनी स्वाभाविक है। पार्टी को स्पष्ट दिशा, ठोस रणनीति और एकजुट तैयारी की जरूरत है। कई वरिष्ठ नेता इसलिए दिल्ली जाकर हाईकमान से सीधे बात करना चाहते हैं, ताकि संगठनात्मक मुद्दों पर सपष्टता हों और 2027 की तैयारियों में इसका प्रभाव ना पड़ पाए। दोस्तो के कांग्रेस के अनदुरुनी तबके निकल रही खबरों के बीच ये कि जिन नेताओं ने पार्टी नेतृत्व से मुलाकात का समय मांगा है, उनमें कांग्रेस के कई बड़े और अनुभवी चेहरे शामिल हैं।
जिनमें पूर्व सांसद महेंद्र सिंह पाल, पूर्व सांसद ईसम सिंह, एआईसीसी सदस्य व पूर्व मंत्री ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी, विधायक तिलकराज बेहड़, विधायक मदन बिष्ट, पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी, प्रदेश कांग्रेस महामंत्री व पूर्व राज्य मंत्री मकबूल अहमद, अल्पसंख्यक विभाग के पूर्व अध्यक्ष हाजी सलीम खान, ओबीसी विभाग के पूर्व अध्यक्ष आशीष सैनी, प्रवक्ता सूरज नेगी, प्रदेश कांग्रेस सचिव हाजी राव मुन्ना भी सम्मिलित हैं। दोस्तो इन सभी नेताओं की चिंता एक ही है, बिहार जैसे नतीजे अगर उत्तराखंड में दोहराए गए, तो पार्टी को काफी नुकसान झेलना पड़ सकता है। उधर पूर्वी मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीस रावत का नाम भी बताया जा रहा है। दोस्तो प्रदेश कांग्रेस की हाईकमान से मिलने की कवायद इस बात का सीधा संकेत है कि पार्टी भीतर से बदलाव के दौर में है और आने वाले समय में संगठन में और फेरबदल देखने को मिल सकते हैं, तो दोस्तो बिहार में एनडीए की सुनामी ने सिर्फ पटना की राजनीति ही नहीं बदली, इसकी गूँज दूर-दूर पहाड़ों तक सुनाई दे रही है। उत्तराखंड में बीजेपी जश्न मना रही है, लेकिन कांग्रेस के भीतर उथल-पुथल—नेताओं का दिल्ली कूच, संगठन में बेचैनी और 2027 की तैयारी को लेकर बढ़ती चिंता ये सब साफ संकेत दे रहे हैं कि आने वाले महीने उत्तराखंड की सियासत में बेहद अहम साबित होने वाले हैं।