The incomplete picture of Uttarakhand’s independence | PM Modi | Uttarakhand News| Independence Day

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उत्तराखंड में आज़ादी से पहले फहराया गया तिरंगा, वहीं 1947 में क्यों नहीं चढ़ा तिरंगा? दोस्तो आज़ादी आई, पर मसूरी में तिरंगा क्यों नहीं लहराया? आज इस कहानी को बताने आया हूं। ऐसा क्या हो गया होगा कि आजादी के जश्न में उत्तराखंड का मसूरी शामिल नहीं हुआ। The incomplete picture of Uttarakhand’s independence दगडियो 15 अगस्त 1947 वो दिन जब भारत ने सदियों की गुलामी की ज़ंजीरों को तोड़ आज़ादी की सांस ली। देश के हर कोने में जश्न था, खुशियाँ थीं, लोगों की आँखों में सपने थे और हाथों में तिरंगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसी जगह भी थी, जहां तिरंगे को लहराने से रोक दिया गया? जी हां दोस्तो मैं बात कर रहा हूं हिल क्वीन मसूरी की — जहां आज़ादी से पहले भी तिरंगा लहराया जा चुका था, लेकिन 15 अगस्त 1947 को नहीं सवाल ये है कि क्यों? आज मै आपको उस इतिहास के पन्ने पर ले जा रहा हूं, जिसे शायद बहुतों ने आज तक ना पढ़ा, ना सुना होगा। दोस्तो मसूरी — उत्तराखंड का एक बेहद खूबसूरत शहर पहाड़ों की गोद में बसा, अंग्रेज़ी राज के समय से ही एक प्रमुख हिल स्टेशन रहा। ब्रिटिश अफसरों की छुट्टियों की पसंदीदा जगह और यहीं, आज़ादी से भी पहले, कुछ जांबाज़ स्वतंत्रता सेनानियों ने पहली बार मसूरी की फिज़ाओं में तिरंगा फहराया था।

दगडियो वो दौर था जब हर कोई अंग्रेज़ी हुकूमत से डरा हुआ था, लेकिन यहां वीरों ने झंडा फहराकर साफ कर दिया कि भारत अब जाग चुका है, पर जब आज़ादी सच में आई, तिरंगा क्यों नहीं लहराया? ये सवाल वो सावाल है जिस पर विवाद भी खूब होता रहा है, और इसकी सच्चाई को जानने के लिए लोग आज भी उतसुक दिखाई देते हैं। दोस्तो कहा जाता है कि 15 अगस्त 1947 को मसूरी के कई लोगों ने तिरंगा फहराने की कोशिश की। लेकिन उस समय वहां मौजूद ब्रिटिश-समर्थक प्रशासन ने ऐसा करने से रोक दिया था। तब भी मसूरी में कई जगहों पर अंग्रेज़ अफसरों का कब्ज़ा था। उनके होटल, क्लब, और सामाजिक केंद्र अब भी चल रहे थे — और उनमें से कई आज़ादी के इस जश्न से असहमत थे। दोस्तो लोकल प्रशासन और कुछ प्रभावशाली लोगों के दबाव में, ध्वजारोहण को स्थगित कर दिया गया। कुछ जगहों पर गुप्त रूप से तिरंगा फहराया गया, लेकिन खुले रूप में मसूरी जैसे महत्वपूर्ण हिल स्टेशन पर झंडा न लहरान आज भी इतिहास के एक चुप कोने में खड़ा सवाल है। वैसे दोस्तो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई में देश के कोने-कोने से लोग शामिल हुए थे।

उत्तराखंड भी इस आंदोलन से अछूता नहीं रहा। यहां के वीर स्वतंत्रता सेनानी जैसे कालू माहरा, बद्रीदत्त पांडे, हरगोविंद पंत, गोविंद बल्लभ पंत, बिशनी देवी और चंद्र सिंह गढ़वाली इन लोगों ने देश की आजादी की कहानी में अहम भूमिका निभाई। दगडियों हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारतीयों की शान और मान तिरंगा झंडा नीले-नीले अम्बर तले लहराता हुआ दिखाई देता है, जिससे मन में अलग सी खुशी होती है। भारत के आजाद होने से पांच साल पहले भी झंडा फहराया गया था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले यह झंडा कहां फहराया गया था?  इसका जवाब मैं लेकर आया हूं कहां पहली बार तिरंगा लहलाराय गया था। वो भी आजादी  से ५ साल पहले। देहरादून में दोस्तो तिरंगा आजादी से पांच साल पहले हराया गया था। दोस्तो देश में ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए दो प्रकार के दल सक्रिय थे। पहला था ‘गरम दल’, जो अपनी जान की परवाह किए बिना देश को आजाद करना चाहता था। दूसरा था अहिंसावादी दल, जो सत्याग्रह और असहयोग के मार्ग पर चलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विरोध प्रकट करता था। इसके बारे में आने कई बार सुना होगा लेकिन ये आपको किसी ने नहीं बताया होगा कि आजादी से पांच साल पहले ही देहरादून में झंडा लहरा दिया गया था और मसूरी में आजादी के बाद भी क्यों झंडा रोहण नहीं हुआ दोस्तो जरा सोचिए।

जब पूरा देश आज़ादी के रंग में रंगा था, तब मसूरी की हवा में वो रंग क्यों नहीं था? जब दिल्ली के लाल किले से तिरंगा फहराया गया, तो मसूरी की ऊंची पहाड़ियों पर वो गर्व क्यों नहीं दिखा? शायद इसलिए कि आज़ादी सिर्फ कागजों में नहीं होती, उसे महसूस करना पड़ता है, लड़ना पड़ता है, और हर जगह तक पहुंचाना पड़ता है। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि हमारी आज़ादी की लड़ाई सिर्फ 1947 में खत्म नहीं हुई, बल्कि कई जगहों पर उसके बाद भी लोग अपने हक़ और सम्मान के लिए संघर्ष करते रहे। यहां कुछ लोकल हीरोज़ की बातें बाते भी होनी चाहिए…दोस्तो मसूरी के कुछ वीर लोगों ने इस चुप्पी को तोड़ा स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों ने तिरंगा फहराने की कोशिश की, कई गिरफ्तार हुए, कुछ पर केस चले, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनका कहना था – “अगर तिरंगा आज खुले में नहीं लहराया, तो कल ज़रूर लहराएगा लेकिन झुकेगा कभी नहीं। दोस्तो आज मसूरी में हर साल 15 अगस्त को ध्वजारोहण होता है, गर्व के साथ, पूरे सम्मान के साथ लेकिन 1947 की वो चुप्पी आज भी एक सीख है – कि आज़ादी सिर्फ मिलती नहीं, उसे कायम भी रखना पड़ता है और उस तिरंगे की अहमियत को हर पीढ़ी को याद दिलाना ज़रूरी है — खासकर तब, जब कभी वो लहराने से रोक दिया गया हो। दगडियो मसूरी की ये कहानी हमें बताती है कि इतिहास सिर्फ किताबों में नहीं छिपा, वो हमारे आस-पास बिखरा हुआ है — बस हमें उसकी धड़कनें सुननी हैं तो अगली बार जब आप मसूरी जाएं, सिर्फ उसकी ठंडी हवा ही नहीं महसूस करे। उस तिरंगे की कहानी भी याद रखें, जो एक बार लहराने से रोक दिया गया था। जय हिंद, वंदे मातरम् जय उत्तराखंड दगडियो….