The most innocent wound of the disaster… | Uttarakhand News | Uttarkashi |

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उत्तराखंड में जहां गधेरे ने रोक दिया विकास का रास्ता क्यों 200 लोग रोज जान पर खेल कर गधेरे करते हैं पार लेकिन सोई है सरकार और सिस्टम। आज में उत्तराखंड के एक ऐसे गांव की वेदना को लेकर आया हूं और साथ सरकार और सिस्टम के लिए कुछ तीखे सवाल भी उत्तराखंड में खौफनाक बाधा या शासन की बेरुखी? ये खबर आपको चौका देगी दोस्तो। The most innocent wound of the disaster चमोली के नंदा नगर ब्लॉक के ग्राम पंचायत कनोल की कहानी है एक ऐसा दर्द, जो किसी से छुपा नहीं। 2800 से ज़्यादा आबादी वाला ये गांव, जहाँ रोज़ाना लगभग 200 लोग एक खतरनाक, बढ़ते हुए गदेरे को पार करते हैं। दोस्तो सड़क नहीं, पुल नहीं सिर्फ एक ऐसा गधेरा जो गधेरा नहीं समझते हैं वो इसे कुछ यूं की एक खौफनाक नदी जो पहाड़ से नीचे की तरफ बहती है। दोस्तो ये गधेरा जो ज़िंदगी के बीच खड़ा हो गया है। हर बारिश के मौसम में ये गधेरा इतना घना हो जाता है कि बच्चे स्कूल नहीं जा पाते यहां लोगों की मजबूरी को बताऊंगा। सरकार और सिस्टम की बेरूखी को बताऊंगा साथ गहरी नींद में सोये सिस्टम को भी जगाऊंगा। सोचिए, कितनी मासूमें की पढ़ाई छूट जाती है? कितनी माताएं अपने बच्चों की इस खौफनाक यात्रा को हर दिन देखती हैं? और कितने बुजुर्गों को इस सड़क पार करते हुए अपनी जान का डर रहता है? लेकिन क्या सरकार और प्रशासन को कोई परवाह है? क्या उनके लिए ये सिर्फ एक नंबर है, एक खबर जो कभी न खत्म होने वाली है? नंदानगर ब्लॉक के ग्राम पंचायत कनोल में आज भी लगभग 2800 की जनसंख्या वाले गांव के लगभग 200 लोग प्रतिदिन इस गदेरे से आर पार जाते हैं।

गाड़  गदेरे के बढ़ जाने से आए दिन स्कूली बच्चों का आना जाना भी बंद हो जाता है, लेकिन शासन प्रशासन ने इस ओर आज तक भी ध्यान ही नहीं दिया। दोस्तो यहां की ज़मीन पर चलना आज खतरे से खाली नहीं हर दिन इस गदेरे के कारण आवाजाही बंद होती है, किसान खेतों तक नहीं पहुंच पाते, और महिलाएं अपनी ज़रूरी घरेलू कामों के लिए बाहर नहीं निकल पाती। स्कूल जाने वाले बच्चे आधे रास्ते से वापस लौट आते हैं, डर से थरथराते हुए। गांव की महिलाओं का दर्द सुनिए कहती हैं कि हमारे बच्चे कभी भी इस रास्ते में फिसल सकते हैं, गिर सकते हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं।”आखिर क्यों? दगड़ियों क्योंकि ये कोई बड़ी सड़क नहीं, कोई हाईवे नहीं, यह सिर्फ एक गांव की छोटी-सी समस्या है, जिसे बड़े अफसर और नेता नजरअंदाज कर देते हैं। क्या किसी बड़े हादसे का इंतजार है  दोस्तो शासन-प्रशासन के कान शायद इस दर्द को सुनने के लिए बने ही नहीं। बार-बार शिकायत करने के बावजूद, लोग केवल सुनवाई के वादों में उलझे  हुऐ हैं और ये अनुभव तो आपको भी कई बार हुआ ठेरा बल कि प्रदेश  में सरकारी तंत्र कैसे काम करता है चट से दगड़ियों क्या ये विकास है? क्या यही है जनता की सेवा? यहाँ तक कि जब विकास की बात आती है सरकार के बड़े-बड़े घोषणापत्रों में ये नामुमकिन मुद्दा कहीं खो जाता है। क्या अधिकारियों को इस गदेरे के पार जाने वाले बच्चों और बुजुर्गों की जान की कोई फिक्र नहीं या ये सब ‘राजनीतिक मामला’ बन चुका है जिसे दबा दिया गया है? दोस्तो गांव की जनता की उम्मीदें टूट चुकी हैं, विश्वास खत्म हो रहा है।

अब मै सवाल तो करूंगा सरकार से भी सिस्टम से भी या आप कह लीजिए उत्तराखंड पूरी राजनीति से नेताओं से कर क्या रहे हो अब सवाल उठता है —क्या प्रशासन सिर्फ तब जागता है, जब चुनाव आते हैं? या जब बड़ी-बड़ी तस्वीरें खींची जाती हैं, तब? या फिर जब धराली केदारनाथ जैसी स्थिति जा जाती है तब सरकार से पूछना चाहता हूँ आज धामी जी से भी पूछना चाहता हूं ये गांव के लोग ये खतरनाक गधेरों के पार करते लगो जान हथेली पर रख  गाड़- गधेरों को पार करने को मजबूर लोग। क्या आपके लिए ये सिर्फ एक संख्या है?  क्या 2800 लोगों की जान कोई मोल नहीं रखती? क्या बच्चों की पढ़ाई कोई मुद्दा नहीं है? क्या आप सच में जनता के दुख को समझते हैं, या सिर्फ चुनावों की फिक्र में लगे हैं? जीत की फ्रिक करते हैं। दोस्तो  जिनके कंधों पर ये ज़िम्मेदारी है, क्या वे कभी इस गदेरे को पार करने की जद्दोजहद में फंसे लोगों को देखते हैं? या सिर्फ कुर्सी बचाने में लगे रहते हैं? क्या हम सिर्फ वोट बैंक हैं, जिनकी जिंदगी की कोई कीमत नहीं? क्या हमें अपनी ज़िंदगी खतरे में डालकर गुजरना होगा, सिर्फ इसलिए कि हम पहाड़ी हैं? इस तस्वीर में दिखाई देता ये गधेरा गधेरा का उफनता पानी क्या देहरादून वालों को नहीं दिखाई दे रहा होगा बल या फिर चिंता जिला पंचायत अध्यक्ष हमारा कैसे बने बॉल्क प्रमुख कैसे बने यहां तक ही है बल ये तो चमोली के गांव की तस्वीर में दिखा पा रहा हूं लेकिन उत्तराखंड में नजाने ऐसे और कितने गधेरे होगें, जहां जान का जोखिम हमेसा बना रहता है।