उधर एक रिपोर्ट ने खोल दी पोल!| Uttarakhand Vidhan Sabha Session | Uttarakhand News

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जी हां दोस्तो एक अहम खबर आई है, एक तरफ उत्तराखंड विधानसभा का विशेष सत्र चल रहा था। देश की महामहीम राट्रपति स्तर को संबोधित कर रही थी उधर अखबार की सुर्खियां सत्र को लेकर पोल खोल रही थी, कि कैसे देश में अपने उत्तराखंड विधायन सभा सत्र की कंजूसी पर सवाल उठने लगे। Uttarakhand Vidhan Sabha Session दोस्तो वैसे तो अपने उत्तराखंड से कोई खबर ऐसी आए कि जहां विधानसभा सत्र चला कितना चला, कम चला क्या हुआ क्या नहीं हुआ, ये सब अब आम हो चुका है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन जो खबर में लेकर आया हूं वो वाकई में हेरान करने वाली है। ये खबर तब निकल आई जब देश की राष्ट्रपति उत्तराखंड के दौरे पर रजत जयंती के मौके मौके पर विधानसभा के विशेष सत्र को संबोधित करने के लिए पहुंची थी। जी हां दोस्तो उत्तराखंड विधानसभा की सक्रियता पर गंभीर सवाल उठते दिख रहे हैं कि 25 साल के राज्य की कार्यवाही का विश्लेषण तो सवाल करने वाला ही है। दोस्तो 9 नवंबर, 2000। यह तारीख उत्तराखंड के लिए ऐतिहासिक है। उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड को राज्य का दर्जा मिला। यह कोई अचानक फैसला नहीं था। इसके पीछे लंबा संघर्ष, बलिदान और 62 साल की आशा जुड़ी हुई है। पहाड़ की जनता ने अपने अधिकारों और पहचान के लिए सालों संघर्ष किया। आज राज्य 25 वर्ष पूरे करने जा रहा है, लेकिन इस जश्न के बीच एक गंभीर सवाल उभरता है: क्या उत्तराखंड की विधानसभा अपनी जिम्मेदारी निभा रही है? अभी विधानसभा का विशेष सत्र का आयोजन हुआ। महामहीम राट्रपति ने भी संबोधित किया सत्र को उन्होने कई बाता का जिक्र अपने संबोधन में किया, लेकिन दोस्तो उससे पहले एक खबर आ चुकी थी।

दरअसल दोस्तो देहरादून में हाल ही में एसडीसी फाउंडेशन की नई रिपोर्ट ने ये पोल खोली, जो मै आपको रिपोर्ट के अनुसार, बताने वाला हूं दोस्तो देश में उत्तराखंड विधानसभा सबसे कम चलने वाली विधानसभा बन चुकी है, जबकि देश के 31 राज्यों की विधानसभाएं औसतन 20 दिन सत्र आयोजित करती हैं, उत्तराखंड विधानसभा का सत्र मात्र 10 दिन चला। कुल कार्य अवधि केवल 60 घंटे रही। इस लिहाज से उत्तराखंड 28 राज्यों में 22वें स्थान पर है। दोस्तो इस रिपोर्ट में साफ किया गया कि 2024 में ओडिशा विधानसभा सबसे सक्रिय रही, जिसमें 42 दिन का सत्र आयोजित हुआ। इसके बाद केरल 38 दिन और पश्चिम बंगाल 36 दिन सक्रिय रही। जबकि उत्तराखंड, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश ने केवल 10 दिन का सत्र आयोजित किया। वहीं दोस्तो, साल 2023 की बात करें तो उत्तराखंड ने सबसे कम, केवल 7 दिन का सत्र ही आयोजित किया था।

कुल सत्र दिवसों की सूची (2024)

  • ओडिशा – 42 दिन
  • केरल – 38 दिन
  • पश्चिम बंगाल – 36 दिन
  • कर्नाटक – 29 दिन
  • राजस्थान – 28 दिन
  • महाराष्ट्र – 28 दिन
  • हिमाचल प्रदेश – 27 दिन
  • छत्तीसगढ़ – 26 दिन
  • दिल्ली – 25 दिन
  • तेलंगाना – 24 दिन
  • गोवा – 24 दिन
  • गुजरात – 22 दिन
  • बिहार – 22 दिन
  • झारखंड – 20 दिन
  • आंध्र प्रदेश – 19 दिन
  • तमिलनाडु – 18 दिन
  • मिज़ोरम – 18 दिन
  • असम – 17 दिन
  • उत्तर प्रदेश – 16 दिन
  • मध्य प्रदेश – 16 दिन
  • मणिपुर – 14 दिन
  • मेघालय – 13 दिन
  • हरियाणा – 13 दिन
  • पुडुचेरी – 12 दिन
  • त्रिपुरा – 11 दिन
  • उत्तराखंड – 10 दिन
  • पंजाब – 10 दिन
  • अरुणाचल प्रदेश – 10 दिन

दोस्तो बेहद चिंता का विषय है कि उत्तराखंड की विधानसभा सत्रों की संख्या और अवधि दोनों ही बेहद कम हैं। जब जनप्रतिनिधि साल में कुछ ही दिन बैठते हैं, तो लोकतंत्र कमजोर होता है। दोस्तो विषलेषक कहते हैं कि सरकार अक्सर कहती है कि “कोई कामकाज नहीं है”, इसलिए सत्र कम कर दिया जाता है, लेकिन राज्य में सैकड़ों ऐसे मुद्दे हैं जिन पर नीति और कानून बनाने की आवश्यकता है। ये सत्र गैरसैंण में होता तो उसका लोकतांत्रिक महत्व और अधिक होता, उत्तराखंड को अब केवल उत्सव मनाने वाले राज्य से जवाबदेही निभाने वाले राज्य में बदलने की जरूरत है। विधानसभा को सिर्फ औपचारिकता के लिए नहीं, बल्कि जनता के मुद्दों पर जिम्मेदारी निभाने के लिए एक मंच बनाना चाहिए। दोस्तो उत्तराखंड की विधानसभा के कामकाज में ये कमी केवल संख्याओं तक सीमित नहीं है। इसका असर सीधे जनता पर पड़ता है। जब विधानसभा सत्र कम चलती है, तो कई महत्वपूर्ण नीतिगत और विकासात्मक निर्णय देर से या अधूरे रह जाते हैं। जनता के मुद्दे संसद या विधानसभा तक सही समय पर नहीं पहुंचते। नतीजतन, राज्य में विकास और लोकशाही प्रक्रिया दोनों प्रभावित होती हैं। दोस्त बीते 25 साल पुराना उत्तराखंड अब जश्न के साथ-साथ आत्ममूल्यांकन का दौर भी देख रहा है। राज्य स्थापना दिवस और रजत जयंती वर्ष के मौके पर ये जरूरी है कि केवल उत्सव नहीं, बल्कि राजनीतिक और लोकतांत्रिक जवाबदेही पर भी ध्यान दिया जाए। उत्तराखंड की विधानसभा को अपनी सत्र अवधि बढ़ाकर, नीतिगत फैसले समय पर लेकर और जनता के मुद्दों को प्राथमिकता देते हुए राज्य को केवल पर्वतीय सौंदर्य या पर्यटन की दृष्टि से नहीं बल्कि लोकतांत्रिक ताकत और जिम्मेदारी के रूप में आगे ले जाना होगा। उत्तराखंड के नागरिकों और नेताओं के लिए ये समय है कि वे उत्सव के साथ-साथ गंभीर सवाल पूछें: क्या हमारी विधानसभा वास्तव में हमारे लोकतंत्र की मजबूत नींव बना रही है, या सिर्फ औपचारिकता निभा रही है? तो दोस्तो, उत्तराखंड की 25 साल की यात्रा सिर्फ उत्सव और जश्न तक सीमित नहीं है। जैसे-जैसे हम रजत जयंती मना रहे हैं, ये सवाल भी सामने आता है कि हमारी विधानसभा कितनी सक्रिय है और जनता के मुद्दों पर कितनी जवाबदेही निभा रही है। यह वक्त है कि सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि कामकाज और लोकतंत्र की मजबूती पर ध्यान दिया जाए।