जी हां दोस्तो ड्रीम प्रोजेक्ट बनाम देवदार, एक ऐसी खबर जिसने पहाड़ में एक नए विवाद को जन्म दिया है। दोस्तो कैसे विकास की राह पर 7 हजार देवदार पेड़ों पर संकट मंडरा रहा है। एक तरफ रक्षा सूत्र में बांध कर उम्मीदों के साथ ही पेड़ों को जिंदा रखने की कोशिश तो वहीं दूसरी तरफ क्यो आरएसएस नेताओं की भी नहीं सुन रही बीजेपी सरकार। जी हां दोस्तो अभी हाल में चिपको आंदोलन की नायका स्वर्गीय गौरा देवी को भारत रत्न देनी की मांग देश की ससंद से उठी, क्योकि गौरा देवी के नेतृत्व में हिमालय को बचाने के लिए जो संघर्ष हुआ उसे आज भी चिपको आंदोलन के रूप में जाना जाता है, कि कैसे एक आंदोलन उस वक्त हजारों हजार पेड़ों को कटने से रोक दिया था, लेकिन आज एक बार फिर एक ऐसे ही आँदोलन की आवाज गूंजने लगी है। रक्षासूत्र आंदोलन फिर उठा हिमालय में, देवदार बचाने के लिए हर्षिल घाटी की गूंज, दोस्तो उत्तरकाशी की हर्षिल घाटी आज एक बार फिर उस आवाज़ की साक्षी बनी, जिसे न सिर्फ पहाड़ों ने सुना, बल्कि बहती भागीरथी, हिमालय की ढलानें और देवदार की विशाल कतारों ने भी महसूस किया। ऑल वेदर सड़क चौड़ीकरण के नाम पर चिन्हित किए गए हजारों देवदारों के भविष्य पर उठी आशंकाओं ने स्थानीय समुदायों, पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और देशभर से आए नागरिकों को एक ही सूत्र में बांध दिया—पेड़ों को बचाने का संकल्प।
दोस्तो हर्षिल घाटी में जब पूजा-अर्चना के स्वर उठे तो वातावरण में एक अलग ही ऊर्जा थी और इसी ऊर्जा के साथ शुरू हुआ—रक्षासूत्र आंदोलन, जिसने देवदारों को न केवल पेड़ बल्कि कुल-देवताओं, हिमालयी जीवन-शैली और गंगा की पवित्रता के संरक्षक के रूप में स्थापित किया। दोस्तो उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के लिए हाईवे परियोजना चल रही है। इसके लिए देवदार के करीब 7 हजार पेड़ काटे जाने हैं। RSS के सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल और BJP के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने इसका विरोध किया है। दोस्तो मीडिया रिपोर्ट के अनुसार- 12769 करोड़ रुपए का ये केंद्र सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है। 900 KM लंबी परियोजना में 56 हजार पेड़ कटने थे। करीब 36 हजार पेड़ अब तक कट चुके हैं। देवदार के ये 7 हजार पेड़ उत्तरकाशी से गंगोत्री के बीच हैं। जिनका विरोध हो रहा है। उन्होंने कहा कि ईको-सेंसिटिव जोन में सड़क चौड़ीकरण की आड़ में हजारों पेड़ों का कटान न सिर्फ अवैज्ञानिक है बल्कि आत्मघाती भी। ये फैसला हिमालय की धरती, गंगा की अविरल धारा और यहां रहने वाली पीढ़ियों के भविष्य को संकट में डाल सकता है। इस आंदोलन की नींव 27 नवंबर को दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में रखी गई थी। वहीं किसान नेता भोपाल सिंह चौधरी ने देवदार कटान का मुद्दा उठाते हुए जनता से रक्षासूत्र आंदोलन शुरू करने की अपील की थी। मौजूदा सड़क के दोनों ओर लगभग 100 मीटर तक पेड़ों पर निशान लगे थे। विशेषज्ञों के अनुसार, 10–11 मीटर चौड़ाई वाली सड़क के लिए इतने बड़े पैमाने पर कटान का कोई तर्क नहीं है। दोस्तो ड्रीम प्रोजेक्ट बनाम देवदार! ये स्थिति, एक तरफ विरोध हो रहा है पेड़ों कटने का तो वही दूसरी तरफ एक और तबका है जो प्रोजेक्ट को महत्वपूर्ण बता रहे हैं।
दोस्तो उत्तरकाशी में गंगोत्री घाटी के मुखवा-धराली क्षेत्र के ग्रामीणों ने पर्यावरण कार्यकर्ता हेमंत ध्यानी का भटवाड़ी रोड पर जोरदार पुतला दहन किया। लोगों का आरोप है कि हेमंत ध्यानी क्षेत्र के विकास कार्यों, खासकर सड़क चौड़ीकरण में बार-बार अड़ंगा डालकर इलाके की प्रगति को बाधित कर रहे हैं। ग्रामीणों ने उन्हें “विकास की पनौती” करार दिया। प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट कहा कि पर्यावरण संरक्षण जरूरी है, लेकिन विकास को पूरी तरह रोकना स्वीकार नहीं, लेकिन उधऱ दोस्तो इस प्रोजेक्ट का विरोध संघ के कार्यवाह और बीजेपी के मार्गदर्शक मुरली मनोहर जोशी भी कर चुके हैं कि पेड़ नहीं कटने चाहिए, लेकिन यहां एक बात गौर करने वाली है दोस्तो यहां एक तरफ बीजेपी के नेता और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट जहां ससंद में पेड़ों को कटने से रोकने वाली गौरा देवी को उनके काम और संघर्ष के लिए भारत रत्न देने की मांग कर चुके हैं, तो वहीं देवभूमि देवदार के हजारों पेड़ो की बली देने पर बीजेपी नित सरकार अपने फैसले पर कायम है, कि ड्रिम प्रोजेक्ट जरूरी है। सवाल आज भी वही है—क्या विकास का रास्ता प्रकृति का गला घोंटकर ही निकलेगा? या फिर भारत हिमालय की नाज़ुक संवेदनशीलता को समझते हुए वैज्ञानिक व टिकाऊ समाधान तलाशेगा? हर्षिल घाटी में उठी आवाज़ साफ है—“सड़क बने—मजबूत बने—लेकिन पेड़ों को बचाकर।”देवदारों से बंधे रक्षासूत्र सिर्फ डोरियां नहीं, ये हिमालय के प्रति भारत की उम्मीदों और ज़िम्मेदारियों का प्रतीक हैं।