उत्तराखंड के सीमांत जिलों की हकीकत | Uttarakhand News | Heavy Rain | Weather Update

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जी हां दोस्तो उत्तराखंड में मौसम ले करवट, विदा हो गया मौनसून लेकिन आपदा के बाद 3 महीने से बंद पड़ी वो 14 सड़कें और कैसे आज भी अलग-थलग पड़े प्रदेश के 50 गांव। इसलिए कहना पड़ रहा है मॉनसून की विदाई के बाद भी नहीं सुधरे हालात। The reality of the border districts of Uttarakhand दगड़िये पहाड़ी जिलों में मौसम बदल गया है बल, कई पहाड़ी जिलों से आ रही बर्फबारी की खूबसूरत तस्वीरों को देख कर सुकून मिल रहा होगा लेकिन दोस्तो इसके दूसरी तरफ एक और तस्वीर है। वो मै बताने के लिए आया हूं। दगडड़ियो उत्तराखंड में आपदा तो थम गई, लेकिन उसके जख्म अभी भी ताज़ा हैं। जरा सोचिए —3 महीने बीत चुके हैं, 14 सड़कें अब भी बंद हैं और 50 गांव आज भी बाकी दुनिया से कटे हुए हैं। क्या इन गांवों तक अब भी नहीं पहुंच पाई मदद? क्यों नहीं बन पा रहीं सड़कें? और कब तक ये लोग रहेंगे ऐसे ही अलग-थलग? सब सवालों के जवाब खोजने होगें। दोस्तो उत्तराखंड से मॉनसून तो अब विदा हो चुका है, लेकिन उसके बाद जो तस्वीर पिथौरागढ़ जैसे सीमांत जिलों से सामने आ रही है, वो सिस्टम की तैयारियों और वादों की सच्चाई को आइना दिखा रही है। मॉनसून के कहर से ध्वस्त हुई सड़कों की मरम्मत के दावे जितनी तेजी से मानसून से पहले किए गए थे, जमीन पर उनका असर उतना ही धीमा और लाचार नजर आ रहा है।

आगे एक गांव और सड़क की बात करूंगा, दोस्तो मुनस्यारी, धारचूला, डीडीहाट, बिण और मूनाकोट जैसे इलाकों में मॉनसून की शुरुआत में ही कई ग्रामीण सड़कें भूस्खलन और मलबे के कारण बंद हो गई थीं। आज, तीन महीने बाद भी ये रास्ते नहीं खुल सके हैं। पूरे जिले में कुल 14 ग्रामीण सड़कें बंद हैं, और इन सड़कों की मरम्मत को लेकर न तो कोई ठोस कार्ययोजना दिख रही है और न ही तेज़ी, दोस्तो इन बंद सड़कों की वजह से लगभग 50 गांव बाहरी दुनिया से कट चुके हैं न स्कूल पहुंचना आसान है, न अस्पताल, न राशन की सप्लाई नियमित है, न ज़रूरी सेवाएं, ये गांव आज भी उसी इंतज़ार में हैं—कब कोई बुलडोजर आएगा, कब मलबा हटेगा, और कब ये फिर से ‘जुड़’ पाएंगे। दगड़ियो बारिश से पहले आपदा प्रबंधन विभाग, जिला प्रशासन, लोक निर्माण विभाग (PWD) और कई अन्य एजेंसियों ने दावा किया था कि मॉनसून के दौरान या तुरंत बाद सभी बंद सड़कों को समय रहते खोल दिया जाएगा, लेकिन अब जबकि मॉनसून का सीजन खत्म हो चुका है, सड़कों की हालत वही की वही है। स्थानीय लोग प्रशासन की सुस्ती पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि आपदा राहत महज कागज़ों तक सीमित है, जबकि गांवों में लोग रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

पिथौरागढ़ के ग्रामीण कहते है कि बरसात चली गई, लेकिन मुसीबत यहीं छोड़ गई, सड़कें बंद हैं, बीमार को पीठ पर ढोकर अस्पताल ले जाना पड़ता है। राशन खत्म हो चुका है, और सरकार सिर्फ सर्वे कर रही है, प्रशासन को चाहिए कि वह तत्काल इन 14 सड़कों को खोलने की प्राथमिकता तय करे। इसके लिए मशीनों की तैनाती, मलबा हटाने के लिए मज़दूरों की संख्या बढ़ाना और निगरानी तंत्र को मज़बूत करना ज़रूरी है। आपदा प्रबंधन की तैयारी कागज़ों में नहीं, जमीनी हकीकत में दिखनी चाहिए। दोस्तो यहां ये कहने में कोई गुरेज नही कि सिस्टम के दावे हवाई साबित हुए, तीन महीने बाद भी बंद सड़कों को नहीं खोले जाने से सिस्टम के दावे हवाई साबित हो रहे हैं। आपदा प्रबंधन विभाग की सूची में हर सड़क के बंद होने की तिथि और समय दर्ज किया जा रहा है। सूची में सड़क के बंद होने की तिथि तो स्थायी है लेकिन इनके खुलने की संभावित तिथि लगातार खिसक रही है। ऐसे में साफ है कि इन सड़कों के जल्द खुलने की उम्मीद कम ही है।

ये सड़कें हैं बंद: पिथौरागढ़ जनपद में मुनस्यारी-मिलम, पांगला-जयकोट, बगीचा-सिनियाखोला, मुनस्यारी-मिलम-बुई, एलागाड़-जुम्मा, रई-मढ़-रोढ़ी, ड्योढ़ा-बारमौ, हुनेरा-आदिचौरा, देवीसूना-खेतारकन्याल, खुमती-कटौजिया, मदकोट-बोना, बलतिर-अल्काथल, अंबेडकर गांव-तोमिक और बलतिर-अल्मिया गांव मार्ग बंद है। दोस्तो भारी बारिश से कई सड़कों को काफी नुकसान पहुंचा है। बंद सड़कों को खोलने का कार्य जारी है। जल्द ही जिले की सभी सड़कों पर आवाजाही सुचारू करा दी जाएगी। ये आपदा प्रबंधन अधिकारियों का कहना है। पिथौरागढ़ के, पिथौरागढ़ जिलाधिकारी ने अधिकारियों के साथ बैठक कर लोक निर्माण विभाग (लोनिवि) के पिथौरागढ़, अस्कोट, डीडीहाट, धारचूला और बेरीनाग क्षेत्र के अधिकारियों से जनपद की सड़कों की वर्तमान स्थिति की समीक्षा की। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए कि दीपावली से पूर्व सभी प्रमुख सड़कों को गड्ढा मुक्त किया जाए, ताकि आमजन को त्योहार के दौरान आवागमन में कोई असुविधा न हो।

प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (PMGSY) के अंतर्गत निर्माणाधीन अथवा क्षतिग्रस्त सड़कों की स्थिति सुधारने के लिए अब तक की गई कार्रवाई की जानकारी भी अधिकारियों से प्राप्त की गई। सुशासन पोर्टल की समीक्षा के दौरान जिलाधिकारी ने पाया कि कुछ विभागीय अधिकारियों द्वारा पोर्टल पर आवश्यक डेटा अपलोड नहीं किया गया है। इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उन्होंने निर्देश दिए कि लंबित डाटा तत्काल प्रभाव से अपडेट किया जाए, अन्यथा संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी। उत्तराखंड में हर साल आपदा आती है, लेकिन हर साल हम उसी चक्र में फंसे रह जाते हैं—दावे, आपदा, तबाही, और फिर धीमी रफ्तार से राहत। पिथौरागढ़ के गांवों की यह कहानी इस बात की गवाह है कि जब सड़कें बंद होती हैं, तो सिर्फ रास्ते नहीं कटते—ज़िंदगियां ठहर जाती हैं।