दोस्तो अभी हाल में नेपाल में Gen Z की हुंकार ने सब कुछ बदल कर रख दिया, लेकिन बात जब अपने उत्तराखंड की आती है तो यहां जहाँ एक ओर बेरोज़गारी के खिलाफ युवा सड़कों पर नारे लगा रहे हैं। वहीं एक सरकारी स्कूल में छात्र से शिक्षक अपनी गाड़ी धुलवा रहा है — वो भी स्कूल ड्रेस में। Student washing the teacher’s car सवाल ये नहीं कि गाड़ी धुली सवाल ये है कि क्या अब क्लासरूम ‘वर्कशॉप’ बन गए हैं, और शिक्षक, शोषण के पर्याय आयोग तो आयोग ठैरा उससे क्या सवाल करूं युवाओं का भविष्य को ही दो रहा है आयोग। दोस्तो तो क्या अपने उत्तराखंड में अपनी आवाज को बुलंद करने के बाद भी क्या Gen Z का भविष्य संकट में है। ये सवाल इसलिए है कि क्योंकि कुछ तस्वीरें मेरे सामने आई एक देहरादून में जहां युवाओं के भविष्य के लिए एक लड़ाई चल रही है। वहीं दूसरी तस्वीर में अपने उत्तराखंड का भविष्य मास्टर साहब की गाड़ी धो रहा है। क्या यही है Gen Z का भविष्य? इसी सवाल के साथ आया हूं दोस्तो आपसे बस गुजारिश है कि आप अंत तक मेरे साथ इस वीडियो में बने रहें ताकि हर वो जानकारी आप तक पहुंचा पाउं जो में बताने के लिए आया हूं… दोस्तो उत्तराखंड के चमोली ज़िले से सामने आए एक वीडियो ने पूरे राज्य की शिक्षा व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है। वीडियो में उच्च प्राथमिक विद्यालय जूनिधार का एक छात्र स्कूल ड्रेस में, शिक्षक की निजी गाड़ी धोता हुआ नजर आता है। यह वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है और हर ओर से इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
दोस्तो इस तस्वीर ने सोचने पर मजबूर कर दिया है, यह घटना कोई साधारण मामला नहीं है। यह उस सोच की झलक है, जो आज भी बच्चों को स्कूलों में सम्मान देने की बजाय, उन्हें घरेलू नौकर की तरह इस्तेमाल करने में नहीं हिचकती। छात्र की उम्र छोटी हो सकती है, लेकिन सवाल बहुत बड़ा है — क्या हम आज भी बच्चों को गरिमा नहीं दे पा रहे हैं?इसी के ठीक समानांतर, उत्तराखंड के कई हिस्सों में युवा सड़कों पर हैं। वे प्रदर्शन कर रहे हैं, सरकार से जवाब मांग रहे हैं, और पेपर लीक, भर्ती घोटाले जैसे मुद्दों पर न्याय की मांग कर रहे हैं। UKSSSC, LT, JE, VDO जैसी भर्तियों में हुई धांधलियों से आहत ये युवा अपनी पूरी पीढ़ी के लिए सिस्टम में पारदर्शिता और अवसर चाहते हैं। दोस्तो इस विरोधाभास को समझना बेहद जरूरी है। एक तरफ देश का युवा — जिसे हम ‘Gen Z’ कहते हैं — अपने हक के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहा है, और दूसरी ओर उसी पीढ़ी के बच्चे स्कूलों में गाड़ी धोने को मजबूर हैं। शिक्षक, जो समाज का मार्गदर्शक माना जाता है, जब वह अपने छात्रों से निजी कार्य करवाता है, तो वह सिर्फ अपनी गरिमा नहीं खोता, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की छवि को नुकसान पहुंचाता है। स्कूल, जो बच्चों को आत्मनिर्भर, जागरूक और सशक्त नागरिक बनाने का स्थान है, अगर वहीं उनके आत्म-सम्मान को कुचला जाए, तो क्या उम्मीद की जा सकती है कि ये बच्चे बड़ा होकर आत्मविश्वासी युवा बनेंगे?इस मामले में सवाल सिर्फ उस एक शिक्षक का नहीं है। सवाल पूरे सिस्टम का है — स्कूल प्रशासन का, शिक्षा विभाग का और हमारी सामाजिक चेतना का। अगर कैमरे में यह दृश्य कैद न होता, तो क्या यह मुद्दा कभी सामने आता? और भी ऐसे कई स्कूल होंगे। जहां ऐसा होता होगा बल एकतो दगड़ियो अपने उत्तराखंड में स्कूलों बच्चो की संख्या घटती जा रही है। दगड़ियो बच्चों की गरिमा की रक्षा करना सिर्फ उनके माता-पिता या शिक्षक की जिम्मेदारी नहीं है, यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है। किसी भी विद्यालय में इस तरह की घटनाएं होना गंभीर चिंता का विषय है। एक एक मास्टर जी हैं, दूसरी तरफ आयोग। दोनों की कार्यशैली सवालों के कठघरे में है।
दोस्तो इधर सरकार ने बेरोजगारी और शिक्षा में पारदर्शिता के लिए कई वादे किए हैं। लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर ऐसे मामलों पर सख्ती से कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक बदलाव सिर्फ कागज़ों और भाषणों तक सीमित रहेगा। दोस्तो बेरोज़गारी के खिलाफ सड़कों पर उतरे युवा अपने भविष्य के लिए नहीं, पूरे देश के भविष्य के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन जब वही पीढ़ी अपने शुरुआती वर्षों में इस तरह के अपमानजनक अनुभवों से गुजरती है, तो उनकी उम्मीदों और हौसलों पर गहरा असर पड़ता है। दोस्तो सरकार, शिक्षा विभाग और समाज — तीनों को आत्ममंथन की ज़रूरत है। क्या हम Gen Z को एक ऐसे सिस्टम में बड़ा कर रहे हैं जो उन्हें अवसर देगा, या एक ऐसा सिस्टम बना रहे हैं जो उन्हें आज्ञाकारी, डरपोक और मौन बना देगा?ये तस्वीर किसी भी रूप में सामान्य नहीं है। यह एक चेतावनी है, एक संकेत है — कि बदलाव की जरूरत सिर्फ कानूनों में नहीं, सोच में है। दोस्तो जहां एक ओर युवा नौकरी, सम्मान और भविष्य के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर एक बच्चा स्कूल ड्रेस में शिक्षक की गाड़ी धो रहा है।यह तस्वीर सिर्फ शर्मनाक नहीं, बल्कि उस सोच की प्रतीक है जो बदलाव के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है।अब समय है — शिक्षक भी सीखें, समाज भी जागे, और सिस्टम भी सुधरे।क्योंकि अगर बच्चों को शुरुआत में ही गरिमा नहीं मिली, तो वे आगे चलकर लोकतंत्र में बराबरी का हिस्सा कैसे बनेंगे?