उत्तराखंड का वो बेटा जिसने दुश्मन की नींद उड़ा दी, ऑपरेशन सिंदूर की अनसुनी कहानी। दोस्तो शहर का नाम देहरादून, मोहल्ला शांत, लेकिन सपनों से भरा, उसी गली में कभी एक छोटा सा लड़का पतंग उड़ाते हुए आसमान की ऊँचाइयों को छूने के ख्वाब देखा करता था, उसका नाम था — कुणाल कालरा। Operation Sindoor Kunal Kalra लोग कहते थे — “ये बच्चा बड़ा होकर या तो पायलट बनेगा या फिर सेना में जाएगा, लेकिन किसे पता था कि एक दिन ये लड़का इतिहास रच देगा। वो भी आसमान में उड़कर ऐसे वीरों की कहानी शदियों तक सुनाई जाती रही हैं आगे भी सुनाई जाएंगी। दगडियो आपको वो ऑपरेशन सिंदूर याद होगा ना हां होगा क्यों नहीं मुझे भी है। इस ऑपरेशन में तो उत्तराखंड के लाल ने अपनी जान पर खेल कर ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाया। जिसकी कहानी को मै आज लेकर आया हूं। दोस्तो अद्वितीय साहस और वीरता का परिचय देते हुए आतंकियों के ठिकानों और पाकिस्तानी सैन्य अड्डों को ध्वस्त करने के लिए देवभूमि उत्तराखंड के वीर सपूत एवं देहरादून निवासी ग्रुप कैप्टन कुणाल कालरा को वीर चक्र से सम्मानित किया गया है। सीएम धामी ने कैप्टन कुणाल कालरा को बधाई दी है। सीएम धामी ने लिखा कैप्टन कुणाल कालरा की इस उपलब्धि पर संपूर्ण उत्तराखंड को गर्व है।
बता दें जह देश 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस मौके पर देश के शहीदों के साथ ही जांबाजों को याद किया जा रहा है। आज 79वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने देश की सेनाओं के साथ ही ऑपरेशन सिंदूर को याद किया, साथ ही ऑपरेशन सिंदूर में वीरता का परिचय देने वाले जांबाजों को केंद्र सरकार ने सम्मानित किया। नौ भारतीय वायु सेना के 9 अधिकारियों को उनकी वीरता के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया। इन 9 अधिकारियों में वे जांबाज शामिल थे जिन्होंने पाकिस्तानी सैन्य अड्डों को ध्वस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पाकिस्तान के मुरीदके, बहावलपुर में निशाना साधा। साध ही आतंकवादी अड्डों को भी ध्वस्त किया। आतंकवादी अड्डों को भी ध्वस्त किया। दोस्तो ये वो नाम हैं ये वो जवान हैं जिन्होंने इतिहास लिखा सबको मैरा सल्यूट। इन नामों के बीच में एक नाम जिसका में जिक्र बार बार कर रहा हूं जिसका संबंध मेरे से है आप से है अपने उत्तराखंड से है कुनाल कालरा। वैसे दोस्तो सभी जवान मेरे हैं हमारे हैं। दोस्तो जब ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ। साल 2025, देश की सीमाओं पर तनाव बढ़ चुका था। पाकिस्तान के भीतर बने आतंकियों के अड्डे एक बड़े हमले की तैयारी में थे तब सरकार ने फैसला लिया। इस बार जवाब चुपचाप नहीं, करारा होगा। इस बार हमला घर में घुसकर होगा नाम रखा गया — ऑपरेशन सिंदूर एक मिशन, जो इतना खतरनाक था कि लौटने की कोई गारंटी नहीं, लेकिन जिसे लीड करने के लिए एयरफोर्स ने चुना देहरादून के उसी बेटे को — ग्रुप कैप्टन कुणाल कालरा। दोस्तो 18 मिनट का वो मिशन, जो इतिहास बन गया। दोस्तो ऑपरेशन सिंदूर को याद करता हूं तो कई तस्वीरें जहन में आती हैं और डर सा भी लगता है। अंधेरी रात थी।
पहाड़ों के बीच दुश्मन की सरहद के पार उड़ता हुआ कुनाल कालरा का विमान। एक तरफ हथियारों से लैस आतंकी अड्डे दूसरी ओर पाकिस्तानी मिलिट्री बेस और बीच में, सिर्फ एक भारतीय फाइटर प्लेन जिसमें बैठा था कुणाल कालरा। दोस्तो दबाव था, खतरा था, मौत सामने थी, पर शायज कुनाल कालरा जैसे जबाजों के मन में बस एक ही आवाज रही होगी। माँ ने कहा था बेटा, जब तिरंगा लहराए, तब लौटना और फिर एक-एक करके सारे टारगेट ध्वस्त कर दिए गए। आतंकी ठिकाने जलकर राख हो गए। दुश्मन की चौकी — माटी में मिल गई। दोस्तो वीर चक्र और एक माँ की आंखे जब कुणाल मिशन से सही-सलामत लौटे और जब राष्ट्र ने उनके पराक्रम को सलाम करते हुए वीर चक्र से नवाज़ा, तो देहरादून की वो गली — जहाँ से कहानी शुरू हुई थी — तिरंगे से सज गई। ये सिर्फ एक कहानी नहीं है ये उत्तराखंड की मिट्टी की पहचान है। उत्तराखंड सिर्फ हिमालय नहीं है ये वो धरती है जहाँ हर दूसरा बच्चा फौज की वर्दी पहनने का सपना देखता है। ऑपरेशन सिंदूर ने न सिर्फ एक मिशन पूरा किया,बल्कि ये भी साबित कर दिया कि —जब देश पुकारता है, तो देवभूमि का बेटा जवाब नहीं — वार करता है। दोस्तो यहां कहानी का अंत नहीं कहानी खत्म नहीं हुई है। क्योंकि देहरादून की वो गली आज भी जिंदा है। जहाँ एक और कुणाल आसमान में उड़ते हुए हाथ हिला रहा है और देश कह रहा है —तू जिये हजारों साल, मेरे फौलादी वीर तुझसे ही तिरंगा बुलंद है। जय हिंद! जय उत्तराखंड!