उत्तराखंड की महिला ने रच दिया इतिहास!| The Rajneeti | लक्ष्मी देवी टम्टा | Laxmi Devi Tamta | Almora

Share

कहते हैं किस्मत उन्हीं का साथ देती है जो हालातों से हार नहीं मानते और आज मै आपको दिखाने जा रहा हूं एक ऐसी ही कहानी, जिसने समाज की हर रुकावट को अपनी हिम्मत से हराया। Laxmi Devi Tamta जी हां उत्तराखंड की वो महिला जिसने रूढ़ियों की तोड़ी जंजीरें, कैसे कलम उठाई और रच दिया इतिहास! दोस्तो उत्तराखंड की लक्ष्मी टम्टा, एक ऐसा नाम जिसने रूढ़ियों की जंजीरें तोड़ीं, सिलाई मशीन से निकलकर कलम थामी और वो कर दिखाया जिसकी किसी ने उम्मीद तक नहीं की थी। घर की चहारदीवारी से निकलकर जब लक्ष्मी ने दुनिया का सामना किया, तो मुश्किलें बहुत थीं, लेकिन हौसला उससे भी बड़ा, क्या है लक्ष्मी की ये प्रेरणादायक यात्रा? कैसे उन्होंने इतिहास रचकर समाज को दिया एक करारा जवाब? सब बताउंगा आपको आज दोस्तो उत्तराखंड की पत्रकारिता और समाज सुधार के इतिहास में लक्ष्मी देवी टम्टा का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है, वो न केवल शिल्पकार समाज की पहली महिला स्नातक थीं, बल्कि प्रदेश की पहली महिला संपादक भी बनीं। समाज में व्याप्त असमानता और जातिवाद के खिलाफ उन्होंने अपनी कलम को हथियार बनाया और शिक्षा के साथ साथ सामाजिक समानता की मशाल जलाई। दोस्तो लक्ष्मी देवी टम्टा का जन्म 16 फरवरी 1912 को अल्मोड़ा जिले में हुआ। उनके पिता का नाम गुलाब राम टम्टा और माता का नाम कमला देवी था। उस दौर में जब लड़कियो को शिक्षा का अवसर मिलना लगभग असंभव था, लक्ष्मी देवी ने इन बंधनों को तोड़ते हुए प्रारंभिक शिक्षा नंदन मिशन स्कूल, अल्मोड़ा (वर्तमान एडम्स गर्ल्स इंटर कॉलेज) से प्राप्त की। ये उस समय किसी शिल्पकार समाज की महिला के लिए असाधारण उपलब्धि थी।

दोस्तो 1934 में उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल कर उत्तराखंड की पहली शिल्पकार (टम्टा) समाज की महिला स्नातक होने का गौरव प्राप्त किया, इसके बाद 1936 में डी.टी. (डिप्लोमा इन टीचिंग) और विवाह के बाद मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री भी प्राप्त की। ये उस दौर में महिलाओं की शिक्षा के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जाती है। सामाजिक कार्यकर्ता और शोध करने वाले बताते हैं कि उनका विवाह 1931 में मदन मोहन नागर के पुत्र महिपत राय नागर से हुआ। महिपत गुजराती ब्राह्मण समाज से थे और ये विवाह अन्तर्जातीय था। उस समय इस तरह के विवाह को समाज स्वीकार नहीं करता था, लेकिन लक्ष्मी देवी ने सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती देकर ये कदम उठाया. इस साहसिक फैसले ने उन्हें प्रगतिशील और समाज सुधारक महिलाओं की श्रेणी में विशेष स्थान दिलाया। दोस्तो पत्रकारिता से उनका नाता उनके मामा मुंशी हरिप्रसाद टम्टा की ‘समता’ पत्रिका से जुड़ा। 1935 से उन्होंने इस पत्रिका के संपादन कार्य में भागीदारी निभानी शुरू की और बाद में वह स्वयं इसकी संपादक बनीं।

‘समता’ पत्रिका के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव, जातिवाद और स्त्री शिक्षा के विरोध के खिलाफ लगातार आवाज़ उठाई। उनके लेखन और विचारों ने न केवल वंचित और पिछड़े वर्गों को आवाज दी, बल्कि स्त्री शिक्षा और समान अधिकारों की अलख भी जगाई। पत्रकारिता के क्षेत्र में लक्ष्मी देवी टम्टा का योगदान ऐतिहासिक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर निर्भीकता से अपनी बात रखी। इसके अलावा दोस्तो लक्ष्मी देवी टम्टा का जीवन संघर्ष पूरे समाज के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने साबित किया कि साहस, शिक्षा और दृढ़ संकल्प के बल पर किसी भी रूढ़िवादी ढांचे को बदला जा सकता है। वह न केवल उत्तराखंड की महिलाओं, बल्कि पूरे देश के वंचित वर्गों के लिए आदर्श हैं। आज भी उनकी गाथा आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा, समानता और समाज सुधार की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।