नैनीताल: पर्यटन के लिए विश्वविख्यात सरोवर नगरी नैनीताल के सामने खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। मानसून की आहट के साथ ही नैनीताल के तल्लीताल क्षेत्र से लगा बलियानाला क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील हो जाता है। तकरीबन डेढ़ सौ साल से बलियानाला की पहाड़ी दरक रही है। शहर के अंदर और शहर की बुनियाद में लगातार तेजी से भूस्खलन हो रहा है। इससे प्रशासन समेत राज्य सरकार के सामने नैनीताल को बचाने के लिए चिंताएं बढ़ने लगी हैं। पहाड़ी के ट्रीटमेंट के नाम पर अब तक करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन नतीजा सिफर है।
इस संवेदनशील पहाड़ी से सटे क्षेत्रों में रह रहे करीब 55 परिवारों को वहां से अन्यत्र शिफ्ट होने संबंधी नोटिस जारी किए जा चुके हैं। स्थायी ट्रीटमेंट तो तब हो जब यह पता चले कि कैसे इस पहाड़ी के भूस्खलन को रोका जाए। विडंबना है कि आज तक न तो भू वैज्ञानिक और न ही संबंधित विभाग बलियानाला के मर्ज की दवा खोज पाए हैं। बलियानाला क्षेत्र में भूस्खलन का इतिहास 155 साल पुराना है। हाल के वर्षों में यह अधिक खतरनाक हो गया है। यदि युद्ध स्तर पर इसका उपचार नहीं हुआ तो नैनीताल शहर और झील के लिए यह भूस्खलन बड़ा खतरा साबित हो सकता है। यह पहाड़ी नैनीझील की जड़ में है। इसी पहाड़ी की तलहटी से होकर नैनीझील का अतिरिक्त पानी बाहर निकलता है।
इसके अलावा नैनीताल की ठंडी सड़क, स्टोन ले, चाइना पीक, सात नंबर की पहाड़ियों पर भूस्खलन हो रहा है। ये आने वाले समय में नैनीताल के लिए एक बड़ा खतरा है। आपको बताते चलें कि नैनीताल की बुनियाद कहे जाने वाले बलियानाला क्षेत्र में बीते 50 सालों से लगातार भूस्खलन हो रहा है। इसमें अब तक क्षेत्र का 100 मीटर से अधिक क्षेत्र भूस्खलन की चपेट में आ गया है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1867 में बलियानाला में सबसे पहले भूस्खलन हुआ था। उसके बाद वर्ष 1889 में हुए भूस्खलन में वीरभट्टी-ज्योलीकोट रोड ध्वस्त हुई। वर्ष 1889 में ही यहां से कैलाखान की ओर भूस्खलन हुआ। 17 अगस्त 1898 के भीषण भूस्खलन में यहां 27 लोगों की जान गई और प्रसिद्ध बियर फैक्ट्री तबाह हो गई। वर्ष 1924 में यहां फिर भारी भूस्खलन हुआ जिसमें एक स्थानीय महिला और दो पर्यटक मारे गए।
वर्ष 2018 में जिला प्रशासन ने इसके उपचार के लिए जायका योजना के तहत 620 करोड़ की योजना बनाई गई थी लेकिन योजना कारगर साबित नहीं हुई। हालात देखते हुए जिला प्रशासन ने इस क्षेत्र से 28 परिवारों को वर्ष 2014 में, 25 परिवारों को 2016 में और 45 परिवारों को वर्ष 2019 में दुर्गापुर में बने आवासों में शिफ्ट किया। इस बार भी पालिका ने 55 परिवारों को आवास खाली करने के नोटिस दिए हैं। आपको बताते चलें कि नैनीताल में भूस्खलन की कहानी 142 साल पुरानी है। 1880 में हुए भूस्खलन में 151 भारतीय और ब्रिटिश लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। ब्रिटिश शासकों ने इस विनाशकारी भूस्खलन के बाद इस शहर को दोबारा सहेजने की कवायद की थी। यहां की कमजोर पहाड़ियों के भूस्खलन को रोकने के लिये 64 छोटे-बड़े नालों का निर्माण कराया था।
नैनीताल के आसपास करीब 64 नाले हैं जो बरसात के दौरान पहाड़ों के पानी को नैनीझील में लाने का काम करते हैं। नैनीताल में तेजी से हो रहे भूस्खलन का कारण पर्यावरणविद इतिहासकार अजय रावत अवैध निर्माण और पेड़ों के तेजी से हो रहे कटान को बताते हैं। अजय रावत का कहना है कि आज शहर में भूस्खलन की स्थिति इसी कारण से हुई है। उनका कहना है कि आने वाले समय में नैनीताल के सामने उसके अस्तित्व को बचाने की बड़ा सवाल है। अगर शहर में इसी तरह से अवैध निर्माण बढ़ते रहे तो शहर का अस्तित्व जल्द ही समाप्त हो जाएगा।