अक्टूबर से देश के कई शहरों में 5 जी सेवा मिलने लगी है। उत्तराखंड में भी इसके लिए 1200 टावर लगाए जाने हैं। इन तमाम तैयारियों के बीच उन गांवों का जिक्र करना भी जरूरी है, जहां आज तक किसी भी मोबाइल कंपनी का नेटवर्क नहीं पहुंच सका। प्रदेश के 700 गांवों में लोग आज भी सिग्नल के लिए तरस रहे हैं, इसी तरह ऐसे गांवों की तादाद 3500 है, जो कि 2जी सर्विस के भरोसे हैं। एक ओर डिजिटल इंडिया का नारा दिया जा रहा है तो वहीं पहाड़ी क्षेत्र की दुर्गम और पिछड़ी पंचायतों में लाखों ग्रामीण आज भी अपने क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क के दर्शन नहीं कर सके। यहां डिजिटल क्रांति की बातें बेमानी नजर आती हैं। इंटरनेट चलाना तो दूर ग्रामीण फोन पर बात तक नहीं कर पाते। आपातकालीन स्थिति में समय पर सहायता नहीं मांगी जा सकती, बच्चे भी इंटरनेट के माध्यम से पढ़ाई नहीं कर सकते। अपनों से बात करने के लिए दूसरे क्षेत्रों में जाना पड़ता है।
डिजिटल क्रांति के दौर में लोग सामान खरीदने से लेकर सभी भुगतानों के लिए पेमेंट ऐप से भुगतान करते हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों के लोग आज भी इस सुविधा से वंचित हैं। इंटरनेट तक पहुंच न होने के चलते उन तक योजनाओं की जानकारी नहीं पहुंच पाती, न ही वो कैशलेस सुविधा का इस्तेमाल कर पाते हैं। प्रदेश में दो हजार से अधिक टावरों से लाखों उपभोक्ता बीएसएनएल सेवा का उपयोग करते हैं। बावजूद इसके कंपनी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को इंटरनेट का लाभ नहीं दे पा रही है। अब प्रदेश में बीएसएनएल समेत दूसरी कंपनियों के 1202 टावर लगाने की तैयारी है। उम्मीद है इसके बाद ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकेंगे। बता दें कि मार्च 2022 में जारी भारतीय विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 83.80 लाख लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। जिनमें शहरी क्षेत्रों के 44.90 और ग्रामीण क्षेत्र के 38.90 लाख लोग शामिल हैं।