ये आंकड़े डराते हैं, नुकसान ऐसा कि चौंक जाएंगे आप !| Uttarakhand News | Heavy Rain | Breaking News

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उत्तराखंड में पांच माह की आपदा के गहरे जख्म, 79 सांसें थमी, 90 लापता, 3953 बेजुबान खामोश हो गय अब चौकाने वाले आंकड़ों ने सहमा सा दिया है। उत्तराखंड की आपदा, पांच महीने में तबाही का मंजर, अब केंद्र से राहत की आस। Uttarakhand Disaster दगडड़ियो अपने उत्तराखंड में आपदाओं की मार और राहत की पुकार, उत्तराखंड के जख्म और 5700 करोड़ की उम्मीद। आपदा ने हम सब को खूब हिलाया झकझोर कर रख दिया अब आएंगे वो आंकड़े जो जले पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं। दोस्तो उत्तराखंड में  साल 2025 का मानसून एक कड़ी परीक्षा बनकर आया। पहाड़ी राज्य के लिए यह केवल बारिश का मौसम नहीं था, बल्कि जीवन, संपत्ति और भविष्य की संभावनाओं पर आई एक भीषण आपदा बनकर सामने आया। बीते पांच महीनों में आई प्राकृतिक आपदाओं ने उत्तराखंड को गहरे जख्म दिए हैं। इन आपदाओं ने जहां जनजीवन को तहस-नहस किया, वहीं सरकार और तंत्र के सामने राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण की एक विशाल चुनौती भी खड़ी कर दी है। आपदा से नुक्सान (1 अप्रेल से 31 अगस्त तक) एक अप्रैल से 31 अगस्त 2025 के बीच राज्य में आई विभिन्न आपदाओं में 79 लोगों की मौत, 115 लोग घायल और 90 लोग लापता हुए हैं। यही नहीं, इस अवधि में 3953 छोटे-बड़े पशुओं की भी मौत हुई है। जो ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के मुख्य साधनों में शामिल थे दगड़ियो आगे बहुत कुछ है। आवासीय परिसंपत्तियों की बात करें तो आपदाओं के कारण 238 पक्के भवन और 2 कच्चे भवन पूरी तरह ध्वस्त हो गए, जबकि 2835 पक्के भवन और 402 कच्चे भवन गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं। इसके अलावा कई दुकानों, होटलों, होमस्टे, रेस्टोरेंट और अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को भी नुकसान पहुंचा है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा है।

इन आपदाओं से हुई भारी क्षति को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने भारत सरकार से ₹5702.15 करोड़ की विशेष आर्थिक सहायता का अनुरोध किया है। GFX OUT  इस सहायता का उद्देश्य न केवल वर्तमान क्षति की प्रतिपूर्ति करना है, बल्कि भविष्य में संभावित आपदाओं से बचाव के लिए अवस्थापना संरचनाओं को सुरक्षित और टिकाऊ बनाना भी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री आर. के. सुधांशु और सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विनोद कुमार सुमन ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इस कठिन समय में उत्तराखंड के साथ खड़े रहे हैं और राज्य को अब तक हरसंभव सहयोग प्रदान किया गया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि राज्य की ओर से मांगी गई विशेष आर्थिक सहायता को केंद्र सरकार शीघ्र स्वीकृति प्रदान करेगी। सचिव आपदा प्रबंधन विनोद कुमार सुमन ने बताया कि अब तक के आकलन के अनुसार सिर्फ राज्य के विभिन्न सरकारी विभागों को ही ₹1944.15 करोड़ की प्रत्यक्ष नुकसान हुआ है। विभागवार क्षति का ब्यौरा कुछ इस प्रकार है।

आपदा से नुकसान

  • लोक निर्माण विभाग (PWD): ₹1163.84 करोड़
  • सिंचाई विभाग: ₹266.65 करोड़
  • ऊर्जा विभाग: ₹123.17 करोड़
  • स्वास्थ्य विभाग: ₹4.57 करोड़
  • विद्यालयी शिक्षा विभाग: ₹68.28 करोड़
  • उच्च शिक्षा विभाग: ₹9.04 करोड़
  • मत्स्य विभाग: ₹2.55 करोड़
  • ग्राम्य विकास विभाग: ₹65.50 करोड़
  • शहरी विकास विभाग: ₹4 करोड़
  • पशुपालन विभाग: ₹23.06 करोड़
  • अन्य विभागीय परिसंपत्तियां: ₹213.46 करोड़

दगड़ियो इसके अतिरिक्त, भविष्य में आपदाओं से बचाव और संरचनाओं को स्थायी रूप से सुदृढ़ करने हेतु ₹3758.00 करोड़ की अतिरिक्त सहायता की मांग की गई है। इस राशि का उपयोग सुरक्षा दीवारों, भूस्खलन निरोधी उपायों, नदी कटाव नियंत्रण, पर्यावरणीय अनुकूल अवसंरचना निर्माण और अन्य तकनीकी उपायों में किया जाएगा। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के विभागाध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने कहा कि उत्तराखंड ने इस वर्ष धराली और थराली जैसी भयावह आपदाओं का सामना किया है, जिससे राज्य को व्यापक नुकसान हुआ है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि भारत सरकार राज्य को हर संभव सहयोग प्रदान करेगी। NDMA सचिव मनीष भारद्वाज ने भी उत्तराखंड को संकट की इस घड़ी में हरसंभव सहायता देने की बात दोहराई। इधर मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार भारत सरकार से मिले सहयोग का उपयोग प्रभावित परिवारों को तत्काल राहत, क्षतिग्रस्त संरचनाओं के पुनर्निर्माण और लोगों की आजीविका बहाल करने के लिए करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार आपदा प्रभावित क्षेत्रों में दीर्घकालिक समाधान सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

दगड़ियो ये साफ है कि उत्तराखंड एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां उसे न केवल पुनर्निर्माण की आवश्यकता है, बल्कि एक ऐसी विकास रणनीति की भी ज़रूरत है, जो आपदा प्रतिरोधक, पर्यावरण-संवेदनशील और स्थायी हो। केवल वित्तीय सहायता से यह लक्ष्य नहीं पूरा होगा, बल्कि इसके लिए दीर्घकालिक योजना, पारदर्शिता और समयबद्ध क्रियान्वयन की भी आवश्यकता है। राज्य सरकार ने अपना पक्ष स्पष्ट रूप से केंद्र के समक्ष रखा है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या केंद्र सरकार इस आग्रह को तेजी से स्वीकार करती है, और क्या उत्तराखंड को समय रहते राहत मिल पाती है। क्योंकि एक बात तय है — अगर आज नहीं चेते, तो हर साल मानसून की दस्तक, किसी न किसी घाटी में तबाही का पैगाम लेकर आएगी। उत्तराखंड में बीते पांच महीने में आई आपदाओं ने गहरे जख्म दे दिए। इसके साथ ही भारी क्षति की प्रतिपूर्ति और भविष्य में अवस्थापना संरचनाओं की सुरक्षा के लिए भी चुनौतियां बन गई हैं।