जी हां दोस्तो एक बड़ा फैसला अपने उत्तराखंड में हो गया, शराब बंदी को लेकर उठाया गया ऐसा कदम कि अब अगर शराब परोसी तो लगेगा भारी भरकम जुर्माना। फैसले कि कैसे हो रही तारीफ, कितना इस शराब बंदी से पड़ेगा फर्क सब बताउँगा आपको। Uttarakhand Liquor banned here दोस्तो अपनी देवभूमि उत्तराखंड से बड़ी खबर — जहां एक अनोखा और सख्त फैसला सुर्खियों में है। राज्य के एक इलाके में शराब पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है, और अगर किसी ने नियम तोड़ा तो सीधे ₹51 हजार का जुर्माना लगेगा। दोस्तो ये खबर मै आपको तब बता रहा हूं जब तीर्थनगरी ऋषिकेश में एक शराब के ठेके को बचाने के लिए जहां पुलिस की भारी भरकम फौज उतार दी गई। पुलिस कि निगरानी में शराब बचे गई, तो वहीं दूसरी तरफ ये खबर कि शराब परोसने या सेवन करने पर अब होगी भारी कार्रवाई। दगड़ियो ये तस्वीर योग और ध्यान की नगरी ऋषिकेश की है, जहां एक शऱाब का ठेका विवादों में, जहां खाकी वर्दी वाले बहुत से दिख रहे हैं। दरअसल ये पुलिस नहीं हैं, ये आबकारी विभाग वाले हैं। ये यहां इसलिए हैं क्योंकि विवादित ठेके को कोई नुक्सान ना पहुंचा सके और यहां शराब ठेके की भूमि को लेकर जो विवाद निकल कर सामने आया उसको मेनेज करने के लिए जैसा कि आपने वीडियो में देखा पेड़ काटे जा रहे हैं। ये इसलिए जितने क्षेत्र में ठेके की जमीन है उससे कहीं ज्यादा जमीन पर कब्जा किया गया है और अब आबकारी वाले उस जमीन के झमेंले को खत्म करना चाहते हैं डीएम टिहरी की रिपोर्ट में ठेके में भूमि कब्जे की पुष्टि के बाद अब उसे आरी से कटवाकर कम किया जा रहा है, लेकिन यहां शराब पर हंगामा खूब हुआ है दोस्तो। इससे अलग एक और मामला जो मै बताने के लिए आया हूं कैसे शराब बंदी का फैसला चर्चा में है, वो बताता हूं गौर कीजिएगा।
दोस्तो देवभूमि में दो तस्वीरें: एक ओर सरकार बचा रही शराब की दुकान, दूसरी ओर पहाड़ के लोगों ने खुद कर दी शराबबंदी की घोषणा। एक ओर राज्य की धार्मिक नगरी ऋषिकेश में आबकारी विभाग शराब की दुकान को बचाने में जुटा है, वहीं दूसरी ओर उत्तरकाशी के डुंडा विकासखंड के लोदाड़ा गांव ने एक ऐतिहासिक फैसला लेकर ये दिखा दिया है कि अगर सरकारें नहीं चाहें, तो भी समाज खुद बदलाव की दिशा तय कर सकता है। दोस्तो बता दूं कि लोदाड़ा के ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से तय किया है कि अब उनके गांव में किसी भी शादी, चूड़ाकर्म या अन्य पारिवारिक समारोह में शराब नहीं परोसी जाएगी। अगर किसी ने ऐसा किया, तो उस पर ₹51,000 का जुर्माना लगेगा और पूरे गांव का सामाजिक बहिष्कार झेलना होगा। दोस्तो अब इस फैसले की चर्चा चारो हो रही है। ग्राम प्रधान की अगुवाई में बकायदा एक बैठक हुई। बैठक में महिला मंगल दल, युवा मंगल दल और ग्रामीणों ने मिलकर ये ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया। दोस्तो फैसला सीधा और सख्त था — अब लोदाड़ा में शराब नहीं बहेगी। दोस्तो ग्राम प्रधान की माने तो अगर किसी परिवार ने इस नियम को तोड़ा, तो उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। न तो कोई ग्रामीण उनके कार्यक्रम में जाएगा और न ही उस परिवार को किसी भी सामाजिक आयोजन में शामिल होने दिया जाएगा। वैसे दोस्तो गजब हो रहा है, ये अकेला गांव नहीं है। इससे पहले भी कई गांव वालों ने ऐसा फैसला लिया है। ये फैसला सिर्फ एक सामाजिक फैसला नहीं है, बल्कि ये एक चेतावनी भी है कि अब पहाड़ के लोग अपने बच्चों और युवाओं के भविष्य को लेकर समझौता नहीं करेंगे बल।
दोस्तो गांव के बुजुर्गों और महिलाओं का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में शराब के कारण कई विवाद और झगड़े हुए, शादी-विवाह के पंडाल जश्न के बजाय झगड़ों का अखाड़ा बन जाते थे। ग्रामीण बताते हैं हर बार जब भी समारोह में शराब परोसी गई, किसी न किसी परिवार में कलह हुई। रिश्ते बिगड़े, सम्मान मिटा। अब हमने तय किया है कि ये सब खत्म होना चाहिए युवाओं के नशे में फंसने की चिंता भी बड़ी वजह है। दोस्तो गांव के लोगों का कहना है कि अगर यह चलन यूं ही चलता रहा, तो आने वाली पीढ़ी का भविष्य नशे में डूब जाएगा। रोजगार की राह छोड़, युवा अपराध के रास्ते पर भटकने लगेंगे। इसलिए ये फैसला केवल शराब पर प्रतिबंध नहीं, बल्कि आने वाले कल को सुरक्षित करने की पहल है। अब दोस्तो जरा तस्वीर के दूसरे पहलू पर नज़र डालिए —जहाँ उत्तराखंड के लोग खुद समाज को नशामुक्त बनाने के लिए आगे आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर धार्मिक नगरी ऋषिकेश में शराब की दुकान को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद आबकारी विभाग शराब की दुकान को बचाने में जुटा है। लोगों का कहना है कि एक तरफ सरकार नशामुक्ति अभियान की बातें करती है, तो दूसरी ओर धार्मिक और पर्यटन स्थलों पर शराब बेचने के लिए रास्ते खोजती है। यही विरोधाभास अब सवाल बन गया है — क्या राज्य के “नशा मुक्त उत्तराखंड” के नारे केवल पोस्टरों तक सीमित हैं? वैसे दोस्तो पोस्टर से एक बात और याद आ गई एक गांव में लगे कुछ पोस्टर ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा था। वैसे प्रदेश में ऐसे कई गांव हैं, जहां शादियों में पूरी तरह से शराब पर प्रतिबंध लगाया गया है। गढ़वाल स्थित भट्टीधार गांव ने इससे एक कदम आगे आकर गांव की सड़क से लेकर गांव के मुख्य चौराहों तक कुछ बोर्ड लगाए, जो अब चर्चाओं में आए। बोर्ड पर साफ तौर पर लिखा गया है कि अगर कोई भी व्यक्ति गांव में शराब या नशे की हालत में प्रवेश करता है, तो उसकी पिटाई की जाएगी।
अच्छी बात ये है कि इस बोर्ड के लगने के बाद से यहां के युवा और बुजुर्गों ने शराब का सेवन करना बंद कर दिया…लेकिन यहां एक तस्वीर ऋषिकेश में शारब हर हंगामा। दूसरी ओर एक गांव फैसला ये कि शारब परोसी तो होगी कार्रवाई, लेकिन सबके बीच सवाल ये है कि क्या सरकार का राजस्व हित समाज के नैतिक हित से ऊपर है और क्या अब बदलाव की जिम्मेदारी सिर्फ जनता को ही उठानी होगी? दोस्तो लोदाड़ा गांव की पहल इस बात का प्रमाण है कि असली परिवर्तन ऊपर से नहीं, नीचे से आता है और ये वही पहाड़ है जहाँ महिलाओं ने कभी चिपको आंदोलन चलाकर जंगलों को बचाया था, और आज वही महिलाएं समाज को नशे की लत से बचाने के लिए आगे आई हैं। लोदाड़ा गांव का यह फैसला केवल उत्तरकाशी या उत्तराखंड की खबर नहीं है — यह एक संदेश है कि जब सरकारें असमंजस में हों, तो समाज खुद दिशा तय कर सकता है, लेकिन एक और सोचने वाली बात ये है कि प्रदेश के ज्यादातर ठेके महिलाओं के नाम पर लिए गए बल और अब सवाल ये भी कि एक तरफ महिलाएं ही शराब का विरोध कर रही है। जब गांव खुद नशा बंद करने का फैसला ले सकता है, तो क्या सरकार के पास भी इतनी हिम्मत है कि वह पूरे राज्य में ठोस शराब नीति लागू करे? दोस्तो एक ओर आबकारी विभाग का तर्क है कि शराब से राज्य को करोड़ों का राजस्व मिलता है, जिससे योजनाएँ चलती हैं बल लेकिन दूसरी ओर समाज का तर्क साफ है — अगर समाज ही नशे में डूब जाएगा, तो किस विकास की बात करेंगे? मुझे ऐसा लगता है कि ये संघर्ष अब सिर्फ शराब के खिलाफ नहीं, बल्कि उस सोच के खिलाफ है जो पैसों को इंसान से बड़ा बना देती है, तो दोस्तो देवभूमि उत्तराखंड एक बार फिर अपने असली स्वरूप की ओर लौटती दिख रही है बल जहाँ लोग खुद समाज की रक्षा के लिए कदम उठा रहे हैं एक ओर आबकारी विभाग शराब की दुकानों को बचाने की कोशिश कर रहा है, दूसरी ओर पहाड़ के लोग ये ऐलान कर रहे हैं कि अब शराब नहीं, संस्कार चलेंगे।