उत्तराखंड ब्लॉगर का बहिष्कार? | Roorkee Nagar Nigam | Uttarakhand News | Viral News

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जी हां दोस्तो जब उत्तराखंड की एक जानीमानी ब्लॉगर को होना पड़ा लोगों के गुस्से का शिकार, लोगों ने सार्वजनिक मंच से ही दौड़ा दिया। ऐसा बहिष्कार शायद ही आपने पहले देखा होगा, जो मै दिखाने जा रहा हूं तो ऐसा क्या हुआ होगा कि उत्तराखंड में लोगों ने ब्लॉगर का बहिष्कार ही नहीं किया, बल्की उसे अपने आंदोलन स्थल से खदेड़ दिया। Roorkee Nagar Nigam दोस्तो उत्तराखंड में एक ब्लॉगर के खिलाफ फूटा जनाक्रोश! ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य आंदोलन’ के मंच पर जब बोल बिगड़े, तो लोग भड़क उठे — बात इतनी बढ़ी कि मंच से माफी नहीं, मैदान से भागना पड़ा। दोस्तो कहा ये जा रहा है कि ब्लॉगर ने मंच से ऐसे शब्द कहे जो न सिर्फ आंदोलन की गरिमा के खिलाफ थे, बल्कि श्रोताओं की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाने वाले थे। देखते ही देखते भीड़ ने घेर लिया, नारे लगे, और बहिष्कार की मांग तेज़ हो गई। क्या यह सिर्फ एक बयान की चूक थी या किसी बड़े एजेंडे का हिस्सा? और क्या अब जनमंचों पर संयम की नहीं, सस्ती सुर्खियों की होड़ लग गई है? उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया कस्बे में इन दिनों स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग को लेकर चल रहा ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य आंदोलन’ राज्यभर में सुर्खियां बटोर रहा है।

करीब डेढ़ हफ्ते से चल रहा यह आंदोलन अब तक शांतिपूर्ण रहा था, लेकिन जो घटनाक्रम सामने आया, उसने आंदोलन की दिशा को एक नई—और कुछ हद तक चिंताजनक—बहस की ओर मोड़ दिया है। हल्द्वानी से आई ब्लॉगर ज्योति अधिकारी को मंच पर बुलाया गया, लेकिन मंच पर पहुंचते ही उनके शब्दों ने जो आग लगाई, उससे आंदोलन के भीतर विवाद, गुस्सा और बहिष्कार की लहर दौड़ गई। चौखुटिया के आंदोलन स्थल पर उपस्थित लोगों ने सोशल मीडिया पर सक्रिय ब्लॉगर ज्योति अधिकारी का स्वागत किया। आंदोलनकारी इस उम्मीद में थे कि एक चर्चित डिजिटल हस्ती आंदोलन को समर्थन देंगी और उनकी मांगों को व्यापक जनसमर्थन दिलवाने में मदद करेंगी, लेकिन जैसे ही ब्लॉगर ज्योति अधिकारी मंच पर पहुंचीं और बोलना शुरू किया, स्थिति अचानक बदल गई। चश्मदीदों और आंदोलन में मौजूद लोगों के अनुसार, ब्लॉगर ने अपने वक्तव्य में आंदोलन में बैठे लोगों के प्रति अभद्र और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया। ये सुनते ही आंदोलनकारियों ने कड़ा विरोध जताया, मंच से उनका माइक छीन लिया गया, और उनका बहिष्कार कर दिया गया। ज्योति अधिकारी इसके बाद मंच छोड़कर चली गईं, लेकिन मामला यहीं नहीं रुका, उन्होंने थोड़ी देर बाद एक लाइव वीडियो के माध्यम से आंदोलन और आंदोलनकारियों पर फिर से आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिससे पहले से नाराज़ लोग और भड़क उठे।

दोस्तो चौखुटिया में ये आंदोलन स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी को लेकर चल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेसिक मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर, डॉक्टरों की तैनाती, आपातकालीन सेवाओं की अनुपलब्धता जैसे मुद्दों को लेकर स्थानीय लोग सड़क पर हैं। इस आंदोलन में कई लोग भूख हड़ताल पर बैठे हैं और शांतिपूर्ण तरीकों से अपनी आवाज़ सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया के माध्यम से यह आंदोलन धीरे-धीरे राज्य स्तर पर चर्चा का विषय बन रहा था, ब्लॉगर ज्योति अधिकारी की सोशल मीडिया पर अच्छी-खासी फॉलोइंग है। आंदोलन स्थल पर उनकी मौजूदगी को एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन उनके द्वारा की गई कथित अशोभनीय टिप्पणी ने सारा माहौल बिगाड़ दिया। दोस्तो उनका यह कहना कि आंदोलन “सिर्फ दिखावा है”, या यह कि “लोग यहां दिखाने भर को बैठे हैं”, जैसी टिप्पणियों ने वहां उपस्थित लोगों की भावना को ठेस पहुंचाई। इस पर प्रतिक्रिया भी उतनी ही तेज़ थी। आंदोलनकारी न सिर्फ नाराज़ हुए, बल्कि उन्होंने एक सुर में उनके बहिष्कार की मांग भी उठाई। ये

घटना एक बार फिर इस सवाल को जन्म देती है कि क्या हर डिजिटल प्रभावशाली व्यक्ति (influencer) को हर जन आंदोलन में बोलने का नैतिक अधिकार है?क्या किसी मंच पर बोलने से पहले संवेदनशीलता, स्थान की गरिमा, और आंदोलन की भावना को समझना ज़रूरी नहीं है? बढ़ती सोशल मीडिया मौजूदगी और डिजिटल पावर के युग में ‘मुखरता’ और ‘जिम्मेदारी’ के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है, जो लोग जन सरोकार के मुद्दों से पूरी तरह वाकिफ नहीं होते, वे सिर्फ कैमरा और कंटेंट के लिए आंदोलन स्थलों पर पहुंचते हैं, जिससे कई बार आंदोलनों की मूल भावना पर चोट पहुंचती है। स्थानीय लोगों ने इस घटना को लेकर बेहद स्पष्ट प्रतिक्रिया दी। उनका कहना था कि: आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण और गंभीर मांगों पर आधारित था। किसी भी बाहरी व्यक्ति को मंच से आंदोलन का अपमान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ब्लॉगर ने मंच की गरिमा का उल्लंघन किया और लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। ज्योति अधिकारी ने मंच छोड़ने के बाद सोशल मीडिया पर लाइव वीडियो के माध्यम से अपनी बात रखने की कोशिश की। हालांकि उन्होंने स्पष्ट माफी नहीं मांगी, बल्कि आंदोलन और उसकी नेतृत्वशैली पर सवाल खड़े किए।

दोस्तो ये प्रतिक्रिया आग में घी डालने जैसी थी, जिससे गुस्सा और बढ़ गया। अब लोग ये सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या ऐसे लोगों को आंदोलन में बुलाना ही गलती थी। ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य आंदोलन’ जैसी मुहिमें जनता की पीड़ा की आवाज़ होती हैं, वे तब और शक्तिशाली बनती हैं जब उनमें हर वर्ग का सहयोग मिलता है, लेकिन ये सहयोग सम्मानजनक, जिम्मेदार और सटीक हो, तभी उसका महत्व होता है। इस घटना ने यह साफ कर दिया कि सोशल मीडिया की शक्ति का गलत इस्तेमाल आंदोलनों को कमजोर कर सकता है। अब समय आ गया है जब प्रभावशाली लोगों को बोलने से पहले समझने की ज़रूरत है — कि हर मंच उनके लिए नहीं, और हर मुद्दा शो नहीं होता। ब्लॉगर का बहिष्कार सिर्फ एक व्यक्ति का विरोध नहीं, बल्कि यह एक सामूहिक चेतावनी है — कि जनआंदोलनों में शोर नहीं, संवेदनशीलता चाहिए।