जी हां दोस्तो उत्तराखंड CM धामी के ऐक ऐतिहासिक फैसले से बदल जाएगा बहुत कुछ, क्योंकि अब प्रदेश में मदरसा बोर्ड खत्म। दोस्तो एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला हुआ है, जो प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव लेकर आने वाला है। मदरसा बोर्ड का अब खत्म होना तय हो गया है। Madrasa Board Abolished Uttarakhand दगड़ियो बताने के लिए आया हूं कैसे इस फैसले से बदलेगा उत्तराखंड का भविष्य और क्या है इसका बड़ा असर। दोस्तो उत्तराखंड में अब मदरसा बोर्ड इतिहास बन जाएगा। दोस्तो उत्तराखंड सरकार ने अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 पास कर दिया है। इसके अंतर्गत प्रदेश की शिक्षा में कई बदलाव किए जा रहे हैं। उत्तराखंड में इस विधेयक के बाद मदरसा बोर्ड को खत्म कर दिया जाएगा और सभी मदरसों को उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड से आधिकारिक मान्यता लेनी होगी। धामी सरकार ने इसे अल्पसंख्यक शिक्षा को मुख्यधारा के पाठ्यक्रम के साथ जोड़ने की दिशा में एक कदम बताया है। वहीं इसे समान शिक्षा प्रणाली की ओर एक अहम फैसला माना जा रहा है। इसके लागू होने के बाद सभी अल्पसंख्यक स्कूल नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) और नई शिक्षा नीति (NEP 2020) को अपनाएंगे। इस विधेयक के जरिए सरकार सुनिश्चित करेगी कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों को भी अच्छी और आधुनिक शिक्षा मिले। राज्यपाल ने उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक को मंजूरी देने का काम किया है, जिसके बाद प्रदेश में मदरसा बोर्ड अब पूरी तरह से समाप्त होगा और केवल इतिहास के पन्नों में ही दर्ज रह जाएगा। इस विधेयक के लागू होने के बाद प्रदेश में संचालित सभी मदरसों को अब उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण से मान्यता प्राप्त करनी होगी और उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद से संबद्धता लेनी होगी।
वहीँ उत्तराखंड मदरसा शिक्षा परिषद जे अध्यक्ष मुफ़्ती शमूम काजमी ने भी इस विधेयक का स्वागत करते हुए कहा है कि मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे भी अब मुख्यधारा में शामिल होंगे। सरकार का यह निर्णय राज्य में शिक्षा व्यवस्था को समान और आधुनिक बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है। दोस्तो उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में एक अहम और थोड़ा विवाद वाला निर्णय लेते हुए अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 पारित किया है, जिसके तहत प्रदेश में मदरसा बोर्ड को समाप्त कर दिया जाएगा। इसके बाद प्रदेश के सभी मदरसों को राष्ट्रीय पाठ्यचर्या फ्रेमवर्क (NCF) और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP) के अनुरूप शिक्षा देने के लिए मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली से जोड़ा जाएगा। इस विधेयक का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को आधुनिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना बताया गया है, ताकि वे शिक्षा के क्षेत्र में अन्य छात्रों के साथ समान अवसर पा सकें। दगड़ियो मै आपको बताता हूं कि इस मदरसा बोर्ड खत्म करने का मकसद और फायदा क्या है। सरकार का तर्क है कि मदरसा बोर्ड के अंतर्गत दी जाने वाली शिक्षा परंपरागत और सीमित थी, जिससे छात्रों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पा रहा था। मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल होने से मदरसा छात्रों को विज्ञान, गणित, अंग्रेजी और अन्य आधुनिक विषयों में बेहतर शिक्षा मिलेगी, जिससे उनकी रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। इससे समाज में समावेशन बढ़ेगा और युवा वर्ग के विकास में मदद मिलेगी। हालांकि, इस फैसले का विरोध भी सामने आया था। कुछ मुस्लिम संगठनों और समुदाय के लोग इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 और 30 के हनन के रूप में देख रहे हैं। अनुच्छेद 26 धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जबकि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए शिक्षा संस्थान स्थापित करने का अधिकार देता है। विरोधी इस बात से चिंतित हैं कि मुख्यधारा से जोड़ने का मतलब मदरसों की स्वायत्तता और सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है, ये इसका एक पहलू है।
अब दोस्तो दूसरे पहलू की बात करूं तो वो है सरकार का पक्ष। सरकार का कहना है कि यह निर्णय किसी की धार्मिक स्वतंत्रता या सांस्कृतिक पहचान पर हमला नहीं है, बल्कि एक सुधारात्मक कदम है जो शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए आवश्यक है। अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को भी समान अवसर मिलना चाहिए ताकि वे देश की मुख्यधारा में प्रभावी भागीदारी कर सकें। शिक्षा का उद्देश्य केवल धार्मिक ज्ञान ही नहीं बल्कि समग्र विकास होना चाहिए। उत्तराखंड सरकार का यह फैसला शिक्षा व्यवस्था में ‘समानता और आधुनिकता’ की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। इसके लागू होने के बाद उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा, जहां मदरसा बोर्ड नहीं होगा और अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में जोड़ा जाएगा। कैबिनेट के इस विधेयक के मुताबिक राज्य सरकार माइनॉरिटी के एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन मान्यता देने के लिए अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण (SMEA) बनाएगी। मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या पारसी समुदायों की ओर से खोले गए शैक्षणिक संस्थानों को SMEA से औपचारिक मान्यता प्राप्त करनी होगी। दोस्तो इतना ही नहीं है सरकार कि ओर से दावा किया गया है कि यह अधिनियम अल्पसंख्यक संस्थानों के निर्माण और संचालन में हस्तक्षेप नहीं करेगा, बल्कि अच्छी शिक्षा सुनिश्चित करेगा। उत्तराखंड का यह कदम देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है, जहां मदरसा शिक्षा को मुख्यधारा से जोड़ने की पहल की जा रही है। लेकिन इसके सफल क्रियान्वयन के लिए सभी पक्षों के बीच संवाद और विश्वास बनाना जरूरी होगा, ताकि किसी समुदाय को हाशिये पर न रखा जाए।