ऊधमसिंह नगर जिले के चुनावी हालात, भाजपा की सियासत और सरकार में खुद को असहज पा रहे कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने आखिरकार कांग्रेस का दामन थामना ही उचित समझा। अपने चुनाव क्षेत्र बाजपुर में आर्य ने किसान आंदोलन की सियासी तपिश महूसस कर अपनी राह भाजपा से जुदा करने का फैसला लिया।
किसान आंदोलन और उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी प्रकरण के बाद ऊधमसिंहनगर जिले की सियासत गर्मा रखी है। बाजपुर विधानसभा सीट पर किसानों के असर को देखते हुए आर्य ने भाजपा को बाय-बाय करने का मन बनाया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मान-मनुहार के बाद भी वह भाजपा से खुद को जोड़े नहीं रख सके।
प्रदेश की भाजपा सरकार में साढ़े चार साल से ज्यादा अवधि तक मंत्री रहे यशपाल आर्य की अहमियत सत्तारूढ़ दल ने कम नहीं होने दी। उन्हें प्रांतीय कोर कमेटी का सदस्य भी बनाया गया था। बावजूद इसके कांग्रेस में लंबी सियासी पारी खेल चुके यशपाल आर्य भाजपा के साथ सहज नहीं हो सके। पार्टी में पांच साल रहने के बावजूद उसकी रीति-नीति के साथ वह रच-बस नहीं सके। हालांकि उन्होंने कभी भी भाजपा के साथ अपने संबंधों को लेकर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी नहीं की। कांग्रेस में शामिल होने के मौके पर इसे सुखद दिन और सुखद अहसास बताकर उन्होंने अपनी छटपटाहट बयां की।
प्रदेश सरकार में नौकरशाहों के रुख को लेकर मंत्रिमंडल के सदस्य गाहे-बगाहे असंतोष जाहिर करते रहे हैं। आर्य भी कई अवसर पर अधिकारियों के रुख से नाराज दिखे। आर्य की असली चिंता उनके विधानसभा क्षेत्र बाजपुर के सियासी हालात रहे। किसान बहुल इस क्षेत्र में किसान आंदोलन के असर से आर्य लंबे समय से चिंतित चल रहे थे। उनके करीबियों ने स्वीकार किया कि उनकी इस चिंता ने भाजपा से उनकी दूरी बनाने में अहम भूमिका निभाई।