जी हां दोस्तो जहां अक्सर अफसरों का अंदाज होता है सख्त और औपचारिक, हाल में देखा प्रोटोकॉल पर खूब बवाल हुआ तो वहीं उत्तराखंड की एक एसी डीएम जिसेने अनोखी मिसाल पेश की। कैसे पारंपरिक परिधान में नजर आईं DM ने अपने देसी लुक से सबका दिल जीत लिया। Uttarakhand Traditional Jewellery प्रशासनिक जिम्मेदारियों के बीच उनकी ये सादगी और संस्कृति से जुड़ाव अब चर्चा का विषय बन गया है और कौन सा गाना है जो डीएम ने मंच से गुनगुनाया। दगड़ियो अपनी बोली और पारंपरिक परिधान साथ आभूषण किसे अच्छे नहीं लगते बल। अभी दोस्तो आपने देखा होगा विधानसभा का विशेष सत्र आहूत हुआ था। जहां सदन में महिला विधायकों का पारंपरिक परिधान में सदन में मौजूदगी और पुरुष विधायकों का पहाड़ी लुक खूब चर्चा में रहा, लेकिन आज में जिस खबर को लेकर आया हूं वो अधिकारियों की चर्चा की है। दोस्तो देवभूमि उत्तराखंड में पारंपरिक परिधान और आभूषण महिलाओं को खास बनाती हैं। उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत को देखने सालभर देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। कुछ ऐसा ही ‘मि उत्तराखंडी छौं’ कार्यक्रम में भी देखने को मिला, यहां महिलाओं के उत्तराखंडी परिधान और आभूषण ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। अस कार्यक्रम की खास बात ये रही कि माननीय नेताओं के अलावा अधिकारियों की मौजूदगी चर्चा में रही। पौड़ी डीएम स्वाति एस भदौरिया ने पारंपरिक पहाड़ी परिधान पहनकर प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन किया।
डीएम ने पारंपरिक उत्तराखंडी परिधान के साथ ही मांग टीका, गुलोबंद, कानों में झुमके और नथ पहनी हुई थी इस दौरान वे ठेठ पहाड़ी कल्चर में रंगी नजर आईं। दोस्तो श्रीनगर में बैकुंठ चतुर्दशी मेले में पहाड़ी परिधान प्रतियोगिता आयोजित हुई। स्थानीय संस्कृति, परंपरा और अपनी मिट्टी की महक को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से आयोजित “मि उत्तराखंडी छौं” कार्यक्रम में डीएम स्वाति एस भदौरिया ने प्रतिभाग किया। गोला बाजार में आयोजित कार्यक्रम में जिलाधिकारी के साथ ही मेयर, उपजिलाधिकारी, तहसीलदार समेत सभी पार्षदों, स्थानीय महिलाओं, युवाओं और विद्यार्थियों ने भी पारंपरिक वेशभूषा में उत्साहपूर्ण भाग लेकर अपनी संस्कृति की अनोखी छटा बिखेरी, लेकिन दोस्तो कार्यक्रम में छाई रही जिलाधिकारी कार्यक्रम के तहत “स्वाणि नौनी, स्वाणु नौनु, द्वि झणां” प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिभागियों ने पारंपरिक परिधान और लोक-संस्कृति की सुंदर झलक प्रस्तुत की. जिलाधिकारी ने स्वयं भी पारंपरिक पहाड़ी परिधान पहनकर प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन किया। मेयर नगर निगम श्रीनगर आरती भंडारी ने कहा कि हमारी पारंपरिक वेशभूषा हमारी पहचान है और हमारी विरासत भी है। इसे पहनना सिर्फ एक परिधान धारण करना नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और अपनी जड़ों को सम्मान देना है। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन हमारे लोकसंस्कृति और पारंपरिक पहनावे के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
दोस्तो इससे इतर जिलाधिकारी ने गढ़वाली में कहा कि “सुण दीदी सुण भुली, मैं त अपण संस्कृति बचौंण चली” उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम केवल गढ़वाली परिधान का नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने की एक मुहिम है. उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि पर्वों, शादियों और विशेष अवसरों पर पारंपरिक गढ़वाली, कुमाऊंनी या पहाड़ी वेशभूषा अवश्य धारण करें, क्योंकि यही हमारी पहचान और एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि मेलों का असली उद्देश्य उत्साह, सहभागिता और सांस्कृतिक जुड़ाव है। वैसे दोस्तो हमें केवल वेशभूषा ही नहीं, बल्कि अपनी पहाड़ी रसोई, लोकभाषा, लोकनृत्य और लोकगायन से भी जुड़ना चाहिए। जिलाधिकारी ने सभी प्रतिभागियों की सृजनशीलता और सांस्कृतिक समर्पण की सराहना की. ये क्षण केवल एक प्रतियोगिता का नहीं, बल्कि अपनी पहचान, परंपरा और गर्व के पुनर्स्मरण का था, जिसे जिलाधिकारी ने अपनी सादगी, आत्मीयता और सांस्कृतिक जुड़ाव से एक प्रेरक अनुभव में बदल दिया तो दोस्तों, पौड़ी की जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया ने ये साबित कर दिया कि प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाने के साथ अपनी संस्कृति से जुड़ना भी उतना ही जरूरी है। जब पहाड़ की बेटियां अपने पारंपरिक परिधान और आभूषण में नजर आती हैं, तो वो सिर्फ खूबसूरत नहीं लगतीं, बल्कि अपने अस्तित्व और विरासत को भी जीवंत करती हैं। ‘मी उत्तराखंडी छौं’ जैसे कार्यक्रम केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी लोकसंस्कृति के संरक्षण की मिसाल हैं। ऐसे ही प्रयास हमारे पहाड़ की पहचान को और मजबूत करते हैं।