उत्तराखंड में रैंप वॉक या रीति-रिवाज़ पर वार? तीर्थनगरी के शांत माहौल में उठा फैशन शो का बवाल, जहां एक ओर मंच सज रहा था बेटियों के सपनों के लिए, वहीं दूसरी ओर गूंज रही थीं संस्कृति के अपमान की आवाज़ें। Miss Rishikesh Audition क्या मॉडलिंग की आड़ में टूट रही है परंपरा की मर्यादा? या फिर विरोध की आड़ में रोके जा रहे हैं नए अवसर? आज की रिपोर्ट में खुलेंगे इस टकराव के सभी परत-दर-परत राज़। सीधे कहूं तो मिस ऋषिकेश’ या मर्यादा पर सवाल? रैंप वॉक की रिहर्सल पर हिंदू संगठन का बवाल, तस्वीर उसी की है। दगड़ियो अपने उत्तराखंड से कई बेटियां देश दुनिया में नाम कमा रही हैं अलग-अलग क्षेत्रों में कई तो मोडलिंग की दुनियां में भी प्रदेश का नाम रोशन कर चुकी हैं, या कर रही हैं। दरअसल दोस्तो उत्तराखंड की आध्यात्मिक नगरी ऋषिकेश में एक मॉडलिंग शो की रिहर्सल उस समय विवादों में घिर गई, जब होटल में चल रहे रैंप वॉक पर एक हिंदू संगठन ने विरोध जताते हुए कार्यक्रम को ‘संस्कृति विरोधी’ करार दे दिया। मामला धीरे-धीरे इतना गर्म हो गया कि मौके पर बहस, नोकझोंक और हंगामे की नौबत तक आ गई।
दोस्तो वैसे ये घटना एक बार फिर ये सवाल खड़ा करती है — तीर्थ स्थलों पर आधुनिकता की सीमाएं कहां तय हों? क्या फैशन और संस्कृति एक साथ चल सकते हैं या टकरा जाते हैं? सब आगे बात करूंगा बारी-बारी। प्रदेश में नवरात्र में अपने झोड़ा चाचड़ी छोड़ खूब गरबा हो रहा है, लेकिन यहां संस्कृति खतरे में बता दी गई। पहले आपको बताता हूं कि हुआ क्या फिर सवाल जवाब होता रहेगा। दोस्तो दीपावली मेले से पहले, लायंस क्लब ऋषिकेश रॉयल द्वारा आयोजित होने जा रहे “मिस ऋषिकेश” कार्यक्रम की तैयारियों के तहत एक होटल में युवतियों की रैंप वॉक रिहर्सल चल रही थी। इसी दौरान राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राघवेंद्र भटनागर अपने कार्यकर्ताओं के साथ मौके पर पहुंचे और प्रदर्शन शुरू कर दिया। दोस्तो आरोप था कि पश्चिमी परिधान और रैंप वॉक जैसे आयोजन तीर्थनगरी की परंपरा और सनातन संस्कृति का अपमान हैं। उनका कहना था, “ऋषिकेश साधु-संतों की तपोभूमि है, न कि फैशन शो की जगह। इस तरह के कार्यक्रम हमारी पहचान को धूमिल करते हैं। अब दोस्तो इससे तो कोई इनकार नहीं कि पूरा उत्तराखंड तपोभूमि है।
दोस्तो यहां रैंप वॉक के विरोध के बीच, होटल के मालिक का बेटा मौके पर पहुंचा और संगठन कार्यकर्ताओं से बहस करने लगा, दोनों पक्षों में तीखी नोकझोंक होने लगी, और मामला गर्माता चला गया। मौके पर मौजूद अन्य लोगों को बीच-बचाव कर स्थिति को नियंत्रित करना पड़ा। इतना होने पर खैर इस बात की कोई शारीरिक झड़प नहीं हुई, लेकिन घटनाक्रम ने आयोजन को लेकर कई नए सवाल खड़े कर दिए है। लायंस क्लब ऋषिकेश रॉयल के अध्यक्ष पंकज चंदानी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि इस आयोजन का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ स्थानीय बच्चियों और युवतियों को आत्मविश्वास और मंच प्रदान करना है। उन्होंने कहा हम किसी की धार्मिक भावना को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते। कार्यक्रम का उद्देश्य समाज की बेटियों को आगे बढ़ने का अवसर देना है। दोस्तो इतना ही नहीं उनका ये भी कहना था कि कार्यक्रम की सभी गतिविधियाँ सामाजिक मर्यादा और अनुशासन के भीतर ही रखी गई हैं, लेकिन दूसरी ओर ये घटना केवल एक कार्यक्रम का विरोध नहीं, बल्कि आधुनिकता और परंपरा के बीच बढ़ते तनाव की एक झलक भी है। एक ओर युवतियाँ आत्मविश्वास के साथ नए अवसरों की ओर कदम बढ़ाना चाहती हैं, वहीं दूसरी ओर परंपरावादी संगठन इसे संस्कृति पर हमला मानते हैं। ऋषिकेश जैसे तीर्थ स्थलों में जहां साधु-संतों की उपस्थिति हर मोड़ पर मिलती है, वहां ऐसे आयोजनों की स्वीकार्यता को लेकर समाज बंटा हुआ नज़र आता है। हालांकि इस विवाद के बाद फिलहाल किसी प्रकार की पुलिस शिकायत नहीं हुई है, लेकिन जिस प्रकार सार्वजनिक जगह पर बहस और तनाव बढ़ा, उसने प्रशासन की भूमिका पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
सवाल ये भी उठता है कि क्या आयोजनों से पहले प्रशासन से अनुमति ली गई थी? और यदि हां, तो ऐसे आयोजनों की निगरानी किसके जिम्मे थी?स्थानीय लोगों की राय भी इस मामले में दो धड़ों में बंटी नजर आई। एक वर्ग का कहना है कि “बेटियों को आगे बढ़ने का अवसर मिलना चाहिए”, वहीं दूसरा वर्ग मानता है कि “फैशन शो जैसे आयोजन तीर्थ स्थलों की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं, फिलहाल आयोजन रद्द नहीं किया गया है, लेकिन विरोध के बाद क्लब आयोजकों और प्रशासन के बीच बातचीत चल रही है। संभावना है कि कार्यक्रम की रूपरेखा में बदलाव किया जा सकता है, या आयोजन स्थल में फेरबदल किया जाए। दोस्तो इस पूरे विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तराखंड जैसे धार्मिक-पर्यटन स्थलों पर संस्कृति और आधुनिकता के बीच संतुलन बैठाना प्रशासन और समाज दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। क्या ऐसे आयोजनों को पूरी तरह प्रतिबंधित कर देना चाहिए या एक मर्यादित दायरे में उन्हें अनुमति दी जानी चाहिए? यह एक बहस है जो भविष्य में और तेज हो सकती है,तो सवाल अब भी बाकी है — क्या यह सिर्फ एक रैंप वॉक था, या संस्कृति के दायरे को लांघने की कोशिश? ऋषिकेश जैसे तीर्थस्थल में ऐसे आयोजनों की इजाज़त होनी चाहिए या नहीं — यह फैसला समाज को मिलकर लेना होगा। पर एक बात तय है, जब परंपरा और परिवर्तन आमने-सामने होते हैं, तो टकराव तय होता है।