उत्तराखंड की घाटियों में फिर से गूंज रही है जनता की आवाज़, सवाल उठ रहा है — आखिर क्यों सड़कों पर उतर आए हैं लोग? क्या वजह है इस बार के आंदोलनों की? बदलती तस्वीर के बीच एक बड़ी समस्या छुपी है — बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं। Chaukhutia Protest For Hospital जब अस्पतालों की हालत खराब हो, डॉक्टरों की कमी हो, और ज़रूरतमंदों को इलाज न मिले, तो क्या चुप बैठना सही होगा? आज मैं आपको उस टूटती स्वास्थ्य व्यवस्था की सच्चाई के बारे में बताने के लिए आया हूं। जिसने हजारों लोगों को मजबूर कर दिया है सड़कों पर आने के लिए, क्या ये सिर्फ एक आंदोलन है, या कहीं इसके पीछे छुपा है बड़ा सन्देश? दोस्तो बीते कुछ वक्त में आपने देखा हो गा उत्तराखंड में आंदोलन धरना प्रदर्शन और की बाढ सी आ गई है। अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मांगों को लेकर हल्ला बोल रह हैं। उत्तराखंड पेपर लीक आंदोलन के बाद अब अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया में हो रहा आंदोलन चर्चाओं में है। चौखुटिया का आंदोलन किसी भर्ती घोटाले का नहीं, बल्कि बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर है। इसीलिए इस आंदोलन को प्रदर्शनकारियों ने ऑपरेशन स्वास्थ्य नाम दिया है। चौखुटिया हॉस्पिटल में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के लेकर पूरा कस्बा सड़कों पर उतरा हुआ है। इसपर में आगे बात करूं उससे पहले बात उस आंदोलन की जिसने प्रदेश की सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया, वो था पेपर लीक पर सरकार को बड़ा फैसला लेना पड़ा और अब दोस्तो खबर ये है कि इस आंदोलन का असर ये हुआ कि सरकार को जनता की बात तुरंत सुननी पड़ी।
मुख्यमंत्री धामी ने भी मामले का संज्ञान लिया और सीएससी चौखुटिया को लेकर बड़ी घोषणा की। सीएचसी चौखुटिया को उप जिला अस्पताल में अपग्रेड कर दिया है, साथ ही बेड की संख्या बढ़ाकर 50 करने और डिजिटल एक्स-रे मशीन लगाए जाने के संबंध में भी शासनादेश जारी कर दिया गया है, लेकिन अभी भी लोगों ने अपना आंदोलन खत्म नहीं किया है। दोस्तो अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया कस्बे में दो अक्टूबर से शुरू हुआ स्वास्थ्य सेवा सुधारों का आंदोलन एक बड़े जनसैलाब में तब्दील हो चुका है, यो कोई भर्ती घोटाले या राजनीति से प्रेरित आंदोलन नहीं है, बल्कि यो स्थानीय जनता की जीवन रेखा स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की जंग है। ऑपरेशन स्वास्थ्य’ के नाम से शुरू हुए इस आंदोलन में आज बुजुर्ग, महिलाएं, बच्चे और युवा सभी एकजुट होकर अपने हक की मांग कर रहे हैं। चौखुटिया के सीएचसी अस्पताल का विवरण सरकारी दस्तावेजों में अच्छा दिखता है। कागजों में यहां 30 बिस्तर की जगह 50 बिस्तर का अस्पताल होने का दावा किया गया है, डिजिटल एक्स-रे मशीन लगने की घोषणाएं हुई हैं। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। अस्पताल में जरूरी विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं, सर्जन, गायनाकोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ के पद खाली पड़े हुए हैं। 24 घंटे इमरजेंसी सेवा मात्र नाम की रह गई है। एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और बुनियादी लैब टेस्ट जैसी सुविधाएं बंद या सीमित हैं। बीते कुछ महीनों में इलाज की कमी के कारण कई मरीजों की मौत हो चुकी है। दोस्तो पूर्व सैनिक और आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक भुवन कठायत बताते हैं, हमने प्रशासन से बार-बार अपील की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। जब हमारे लोग इलाज न मिलने से मरने लगे तो मजबूर होकर आंदोलन शुरू किया। दोस्तो आंदोलन की शुरुआत महज 15-20 लोगों के जल सत्याग्रह से हुई थी, लेकिन जल्द ही इस संघर्ष ने जनसैलाब का रूप ले लिया। पूर्व सैनिक भुवन कठायत और बचे सिंह की अगुवाई में लोग जल सत्याग्रह और आमरण अनशन पर बैठे। रोजाना हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरते हैं, हाथों में तख्तियां लेकर स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की मांग कर रहे हैं।
इस आंदोलन में सभी वर्गों के लोग—महिलाएं, बुजुर्ग, बच्चे—एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।बचे सिंह कहते हैं, यह आंदोलन किसी एक व्यक्ति या समूह का नहीं, बल्कि पूरे इलाके की सांसों की लड़ाई है, जनता की बढ़ती मांगों और आंदोलन की मजबूती को देखकर सरकार को इस मामले में कदम उठाना पड़ा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मामले का संज्ञान लिया और 16 अक्टूबर को स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने आदेश जारी किया। आदेश में कहा गया कि चौखुटिया का सीएचसी उप जिला अस्पताल में तब्दील किया जाएगा, बिस्तरों की संख्या बढ़ाकर 50 की जाएगी और डिजिटल एक्स-रे मशीन लगाई जाएगी। इसके अलावा डॉक्टरों की नियुक्ति पर भी काम चल रहा है। दोस्तो फिर भी आंदोलनकारियों ने कहा कि वे तब तक आंदोलन जारी रखेंगे जब तक सुधार जमीन पर नजर न आए। उनकी मानें तो कागजों की घोषणाओं से ज्यादा उन्हें ठोस और तत्काल कार्रवाई की जरूरत है। दगड़ियो 2027 के विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही चौखुटिया का यह आंदोलन राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा का विषय बन गया है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन महरा ने भी आंदोलनकारियों के समर्थन में आवाज उठाई है। उन्होंने कहा कि चौखुटिया सिर्फ एक गांव नहीं है, बल्कि गढ़वाल क्षेत्र के लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधा का बड़ा केंद्र है। करन महरा ने सरकार पर आरोप लगाया है कि उन्होंने आंदोलनकारियों से संवाद नहीं किया और न ही ठोस कदम उठाए। इससे स्पष्ट होता है कि चौखुटिया का ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ न केवल स्वास्थ्य सेवा सुधार की लड़ाई है, बल्कि आगामी राजनीतिक सियासत का भी अहम हिस्सा बनने वाला है। चौखुटिया का यह आंदोलन राज्य की व्यापक स्वास्थ्य व्यवस्था की त्रासदियों को उजागर करता है। जहां कागजी तौर पर स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने का दावा किया जाता है, वहीं असल जमीन पर लोग बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जूझ रहे हैं। जनता का संघर्ष लगातार सरकार को जगाने में सफल हो रहा है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। यह आंदोलन न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था की एक लड़ाई है, बल्कि यह जनता की आवाज है, जो अपने हक के लिए संघर्ष कर रही है। सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह जल्द से जल्द चौखुटिया की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधार कर लोगों के विश्वास को कायम रखे। अन्यथा यह आंदोलन आने वाले समय में और भी बड़ा रूप ले सकता है, जो न केवल प्रशासन बल्कि राजनीतिक नेतृत्व के लिए चुनौती बन सकता है।