क्या उत्तराखंड में अगला चुनाव 27 का चुनाव जातिगत आधार पर होने जा रहा है, क्यों कांग्रेस के बड़े नेता ब्राह्मण प्रेस को कर दिया गज जाहिर, क्या बिन बाह्मण उत्तराखंड की सत्ता में आने संभवन हीं है और क्या ब्राह्मण प्रेम दिखाने वाले नेता ही ब्राह्मणों के बड़े दुश्मन। Harish Rawat’s statement about love for Brahmins अब अपने उत्तराखंड की सियासत में चल तो कुछ ऐसा ही रहा है। बताउंगा आपको क्यों शुरू हुआ ब्राह्मण वाद। जी हां दोस्तो वैसे तो ये सच है कि ब्रह्माण के बिना कोई शुभ काम की शुरूआत नहीं होती है लेकिन लगता है कि उत्तराखंड सियासत में भी चुनाव की शुरूआत ब्राह्मण वाद से होगी ये तय है। तय इसलिए है दोस्तो क्योंकि उत्तराखंड की सियासत में इन दिनों ‘ब्राह्मण वाद’ को लेकर घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत के बयान के बाद अब बीजेपी ने मोर्चा खोल दिया है। बीजेपी विधायक विनोद चमोली ने तीखा प्रहार करते हुए कहा है कि कांग्रेस ने हरीश रावत को साइडलाइन करके सही फैसला लिया है, क्योंकि हरीश रावत ब्राह्मण समाज के कट्टर दुश्मन है। चमोली ने आरोप लगाया कि रावत ने एन.डी. तिवारी से लेकर विजय बहुगुणा तक, हर प्रमुख ब्राह्मण नेता को राजनीति में प्रताड़ित किया। ब्राह्मण वाद पर ये बयानबाज़ी अब चुनाव से पहले राज्य की राजनीति में नया रंग घोल रही है लेकिन ये सब क्यों हो रहा है। पहले मै आपको इस पूरे सियासी घमासान की जड़ में लेजाना चाहता हूं, वैसे हरीश रावत ने ब्राह्मण पर बयान पहले दे दिया था। उस वक्त बीजेपी से लेकर कांग्रेस वाले ही हरीश रावत के साथ खड़े होते नहीं दिखाई दिए लेकिन अब जब प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस का बदला गया।
गणेष गोदियाल को प्रदेश की कामान कांग्रेस ने दी तो, वहीं मौजूद हरीश रावत से उनके पूराने बयान पर सवाल कर लिया गया जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस की कमान ब्रह्मण के हाथों में होनी चाहिए। ठीक वैसा ही हुआ भी गणेश गोदियाल ब्रह्माण चेहरा है लेकिन गोदियाल अपने आपको हरीश रावत के बयान इतर मानते हैं और गोदियाल उस बयान के साथ खड़े भी नहीं दिखाई दिए आगे बताउंगा आपको क्या कहा गोदियाल ने ब्राह्मण चेहरे वाले मसले पर लेकिन सबसे पहले आप सुनिए हरीश रावत को क्या कहा उन्होंने हरीश रावत ने कांग्रेस की बात से ऊपर हट कर प्रदेश के लेवल पर ब्राह्मण सामाज का जिक्र किया साथ उनका ये भी की बिन ब्राह्मण कांग्रेस की सत्ता में वापसी संभव नहीं वैसे ये सच भी है प्रदेश में ठाकुर-ब्राह्मण चक्र ही कुछ है, लेकिन हरीश रावत के ब्राह्मण प्रेम पर अब बीजेपी वाले सवाल के साथ तंज कस रहे हैं। सीधे-धीधे हरीश रावत को ही ब्राह्मणों का बड़ा दुश्मन बीजेपी बता रही है तो विधायक विनोद चमोली कह रहे कि कांग्रेस ने हरीश रावत को साइडलाइन करके ही सही फैसला लिया। हरीश रावत ब्राह्मण समाज के कट्टर दुश्मन है, उन्होंने प्रदेश में एन.डी. तिवारी से लेकर विजय बहुगुणा तक हर प्रमुख ब्राह्मण नेता को जमकर प्रताड़ित किया। वैसे दोस्तो हरीश रावत के इस ब्राह्मण वाले प्लान पर कांग्रेस में ही एक राय दिखाई नहीं दी ना तब दी और ना अब जब प्रदेश का नेतृत्व परिवर्तन कांग्रेस ने किया है क्योंकि कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को बनाए जाने के बाद जब उनसे सवाल किया गया कि वो हरीश रावत के उस बयान के हिसाब से फिट बैठते हैं, लेकिन गोदियाल ने मानवता का पाठ पढा दिया। यानि बयान से खुद को अलग कर लिया।
अब गोदियाल के इस मौके पर क्या सही था वो जाने लेकिन दोस्तो हरीश रावत कांग्रेस के बड़े नेता है। वो गाड़ गधेरों की बात करने वाले और मडुआ-झूवर और गेठी का स्वाद भलीभाती जानते हैं और इसे कैसे पचाया जाता है ये भी हरीश रावत को आता है। अब में ब्राह्ममवाद के पीछे की वजह बताने जा रहा हू थोड़ा गौर कीजिएगा। दोस्तो उत्तराखंड की सत्ता पर कांग्रेस और बीजेपी का ही कब्जा रहा है। दोनों ही पार्टियों ने मुख्यमंत्री पद के लिए किसी ‘ठाकुर’ पर विश्वास जताया है या फिर ‘ब्राह्मण’ को अपनी पसंद माना है। राज्य में पिछले 25 साल से यही ट्रेंड देखने को मिला है। सूबे में चुनाव कोई भी रहा हो, समीकरण कितने भी बदले हों, लेकिन सत्ता की कमान ठाकुर और ब्राह्मण के हाथ में ही रही। इसका कारण भी काफी सरल है. इस पहाड़ी राज्य में 35 फीसदी ठाकुर हैं तो वहीं 25 फीसदी ब्राह्मण मतदाता रहते हैं। ऐसे में दोस्तो हर चुनाव में इस चुनावी गणित को साधने का प्रयास रहता है। अब देखना ये है कि 2027 के चुनाव में क्या यह ट्रेंड टूटेगा या फिर पुरानी परंपरा ही दोहराई जाएगी? दोस्तो यहां उत्तराखंड के राजनीतिक समीकरण समझना भी जरूरी है क्योंकि इस राज्य ने अपने 25 साल के इतिहास में देखे जरूर ठाकुर- ब्राह्मण वाले सीएम हैं, लेकिन दलित समुदाय का हमेशा से ही निर्णायक वोट रहा है। लेकिन आज ब्रह्मण प्रेम को छलका रहे हरीश रावत कभी दलित सीएम की बात भी कर चुके है। यानि 2022 चुनाव से पहले दलित प्रेम और 27 से पहले ब्राह्मण प्रेम क्या गुल खिलाएगा। ये तो वक्त बताएगा। इसके अलावा एक और कारण ये भी है कि प्रदेश के अब तक के मुख्यमंत्रियों की लिस्ट निकाल कर देंखेंगे तो आकंड़ा कुछ ऐसा निकलेगा जातिगत आकंड़ा
- 9 नवंबर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक — नित्यानंद स्वामी- ब्राह्मण
- 30 अक्टूबर 2001 से 1 मार्च 2002 तक — भगत सिंह कोश्यारी-ठाकुर
- 2 मार्च 2002 से 7 मार्च 2007 तक — एन.डी. तिवारी- ब्राह्मण
- 8 मार्च 2007 से 23 जून 2009 तक — बी.सी. खंडूरी- ब्राह्मण
- 24 जून 2009 से 10 मई 2012 तक — रमेश पोखरियाल निशंक- ब्राह्मण
- 13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014 तक — विजय बहुगुणा- ब्राह्मण
- 1 फरवरी 2014 से 17 मार्च 2017 तक — हरीश रावत-ठाकुर
- 18 मार्च 2017 से 9 मार्च 2021 तक — त्रिवेंद्र सिंह रावत-ठाकुर
- 10 मार्च 2021 से 4 जुलाई 2021 तक — तीरथ सिंह रावत-ठाकुर
- 4 जुलाई 2021 से अब तक —
पुष्कर सिंह धामी-ठाकुर दोस्तो इसको देख लगता है कि प्रदेश में ब्राह्मण वोट बैंक को साधना कितना जरूरी है। इसलिए शायद 2027 विधानसभा चुनाव से पहले एक मझे हुए राजनेता ने बाह्मण का जिक्र किया और बीजेपी उसी बयान को लेकर हरीश रावत को घेर रही है। रावत को ब्राह्मण विऱोधी बनताकर बीजेपी सियासी चाल अपनी तरफ करना चाहती है, हालांकि ये जनता तय करेगी 27 की शुरूआत में ही।