विशेष सत्र में जनमुद्दों की गर्मी !| Uttarakhand News | Uttarakhand Vidhan Sabha Session

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जी हां दोस्तो उत्तराखंड के विशेष सत्र में विधायक ने क्यों कह दिया कि धर्मशाला बना दिया और पहाड़ी मुंह ताकता रह जाता है। कैसे रजत जयंती के मौके पर विशेष सत्र में जनमुद्दों की गर्मी देखने को मिली। Uttarakhand Assembly Session दोस्तो खबर अहम है, और अपने हर एक उस उत्तराखंडी से जुड़ी है। पहाड़ी इलाकों के विकास, जनता की समस्याओं और प्रशासनिक प्राथमिकताओं को लेकर सदन में कड़ी बहस देखने को मिली। विपक्ष ने सरकार पर कटाक्ष भी किए, और सदन में ये चर्चा इतनी गर्म हुई कि एक विधायक ने कहा – पहाड़ी मुंह ताकता रह जाता है। वैसे ये बात सच भी लगती है राज्य गठन के रजत जयंती साल में उत्तराखण्ड विधानसभा के विशेष सत्र में कई बुनियादी व राज्य हित से जुड़े मुद्दों पर विधायकों ने बेबाकी से अपने मन की कही और उठा शोर पल भर में चोटियों और घाटियों तक पहुंच गया बल। सदन में विकास के रोडमैप, भ्र्ष्टाचार, मूल निवास, भू कानून, पलायन, स्थायी राजधानी गैरसैंण, परिसीमन, अतिक्रमण, स्वास्थ्य,शिक्षा व अधिकारियों की मनमानी समेत कई अन्य सवालों की गूंज रही। बीते सालों में जमीनों की खरीद फरोख्त का मुद्दा भी खूब गरमाय। सत्र के पहले दिन जहां नेता विपक्ष यशपाल आर्य ने अधिकारियों के निरकुंश रवैये और पलायन पर सदन का ध्यान खींचा तो उप नेता भुवन कापड़ी ने विधायक निधि पर 15 प्रतिशत लिए जाने पर अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया।

दोस्तो राज्य गठन में कांग्रेस और बीजेपी ने क्रमशः सोनिया गांधी, नारायण दत्त तिवारी और अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका का बारम्बार जिक्र होता रहा। सदन में कई बार तीखी नोक झींक भी देखने को मिली तो कई बार हंसी के फव्वारे भी छूटे, लेकिन उधर एक नजारा ऐसा भी देखने को मिला। जब बीजपी विधायक व आंदोलनकारी विनोद चमोली ने मूल निवास के मुद्दे को उठाते हुए सदन ही नहीं पूरे प्रदेश को गर्मा दिया। इस मुद्दे पर उत्तराखंडी व पहाड़ बनाम मैदान की हवा घुलते ही हरिद्वार जिले से जुड़े कांग्रेसी विधायक भी अपनी सीट से उठ खड़े हुए। दोस्तो चमोली ने कहा कि उत्तराखंड को धर्मशाला बना दिया गया है। दस-पन्द्रह साल पहले आये लोग उत्तराखण्ड में पैसे कमा रहे हैं और यहां का पहाड़ी मुंह ताकता रह जाता है। इतना बोलते ही सदन में कई सवाल जवाब हुए, लेकिन बीजेपी विधायक ने आगे कहा कि राज्य की लड़ाइयां लड़ने के बाद, आज उन्हें सुनना पड़ रहा है कि आखिर मूल निवास की अवधि क्यों तय नहीं हुई। क्या यह पहली निर्वाचित कांग्रेस सरकार को तय नहीं करना चाहिए था। असली दोषी कौन है?इस दौरान विनोद चमोली जहां कांग्रेस की सरकार पर निशाना साध रहे थे, तो वहीं बीजेपी की सरकारों को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। अब दोस्तो ये तो साफ है कि यदि बाहर के लोगों को सहजता से राज्य की भूमि-संपदा, रोजगार आदि में पहुँच प्राप्त हो जाए, तो मूल निवासियों का हित प्रभावित होगा। इतना ही नहीं बीजेपी के विधायक ने आगे कहता कि आज लोग सड़कों पर चिल्ला रहे हैं। साथ ही यह भी कहा कि जिन लोगों ने उत्तराखंड का नाश मारा। और चौराहे पर खड़ा किया। आज उनको भी मजबूरी में सुनना पड़ रहा है।

दोस्तो बीते 25 साल में भले कई उत्तराखंड के मुद्दों पर उतनी गंभीरता से काम नहीं हुआ हो लेकिन बाते खूब हुई। बीजेपी विधायक ने सदन में “मूल निवास प्रमाणपत्र” और उसके मानदंडों पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य में मूल निवास का स्पष्ट कानून हो, “कट-ऑफ डेट” तय हो। हर राज्य में मूल निवास की स्पष्ट नियमावली है। लेकिन उत्तराखण्ड में मूल निवासी किसे माना जाय,इस पर असमंजस बना हुआ है। दोस्तो मूल निवास प्रमाणपत्र के अलावा ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में मिनी सचिवालय स्थापित नहीं होने पर भी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि गैरसैंण में अपर मुख्य सचिव स्तर का अधिकारी क्यों नहीं तैनात किया गया। अब ये विनोद चमोली जी क्या अपनी ही सरकार पर सवाल दाग रहे थे क्योंकि बीजेपी 9 सालों से लगाता र बीजेपी की ही सरकार प्रदेश में है, हालाकि दोस्तो जब बीजेपी विधायक मूल निवास पर बात कर रहे थे। तब एक महत्वपूर्ण सवाल खानपुर से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने भी कर डाला मूल निवास पर बात तो की जा रही है, लेकिन गैरसैंण आत तक गैर क्यों है ये कोई क्यों नहीं बाता रहा है। इस पर खूब हंगामा होता दिखाई दिया, जहां मूल निवास पर विनोद चमोली जी जोर से बात कर रहे थे। गैरसैंण वाले मामले बोल दिया कि उत्तराखंड के चौधरी बात में बनना।

दोस्तो वैसे राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड में “मूल निवास / स्थायी निवास” का प्रश्न वर्षों से गरमाया हुआ है। किसे राज्य का मूल निवासी माना जाए, भूमि-खरीद पर बाहर वालों की सक्रियता, रोजगार-प्राथमिकता आदि मुद्दे लगातार उठते रहे हैं। क्या है “मूल निवास” का मुद्दा? ये भी समझ लीजिए, मूल निवास का मतलब है कि राज्य-निर्माण के समय या उससे पहले उस राज्य के भू-क्षेत्र में किसे रहने का अधिकार था, किसे उस राज्य का मूल निवासी माना जाए। दोस्तो अपने उत्तराखण्ड में ये सवाल इसलिए जटिल हुआ क्योंकि राज्य बनने से पहले बाहर से लोगों का प्रवाह, भूमि-खरीद और व्यवसाय गतिविधियों का विस्तार हुआ था। लोगों का दावा रहा कि उन्हें भी मूल निवासी माना जाए। दोस्तो हाईकोर्ट ने 2012 में कहा कि “9 नवंबर 2000 यानी राज्य गठन के दिन जो व्यक्ति राज्य की सीमा में था, उसे मूल निवासी माना जाए” – यह कट-ऑफ डेट सरकार द्वारा अपनाई गई थी। इसलिए दोस्तो इस मुद्दे में तीन बातें जुड़ी हुई हैं: कानून एवं नियमावली, भूमि-खरीद / भू-उपयोग नीति, रोजगार व संसाधन-प्राथमिकता। दोस्तो भूमि-खरीद, भू-उपयोग, उद्योग एवं पर्यटन विकास और मूल निवासी-सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना चुनौती रहेगा।यदि इस विषय को समय रहते हल नहीं किया गया, तो सामाजिक असंतोष, आंदोलन और राजनीतिक लाभ-हानि की संभावनाएँ उजागर हो सकती हैं।