उत्तराखंड में जनता के सड़क पर उतरने पर High Court की सख्ती | Uttarakhand News | Dehradun News

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जी हां दोस्तो अपने उत्तराखंड में बीते कुछ वक्त में जनता के सड़क पर उतरने कई तस्वीरें हमने देखी, दिन में जहां सड़क पर जनता का सैलाब और रात के अंधेरे में मशाल जुलूस निकले या फिर अभी भी निकल रहे हैं, लेकिन जहां एक तरफ सिस्टम ने इन सारी तस्वीरों को नजर अंदाज कर दिया गया, तो वहीं नैनीताल हाई कोर्ट इन स्वीरों को दूरवीन लगा कर देख रहा था और दोस्तो जो अब हाइकोर्ट एक्शन लिया है वो बताने के लिए आया हूं। दोस्तो उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और जनता का उबलता गुस्सा ये खूब देखा जा रहा है। जी हाँ, लाख कोशिशों और दावों के बाद भी हालात नहीं सुधरे तो अब खुद हाईकोर्ट मैदान में उतर आया है। जनता के सड़क पर आने की नौबत क्या थी? अस्पतालों की जमीनी हकीकत आखिर कितनी खराब है? और कोर्ट इतनी नाराज़ क्यों हो गया कि सीधे DG और सचिव को नोटिस थमा दिया, तलब कर लिया? इस वीडियो के जरिए पूरी खबर बताउंगा आपको आप बस अंत तक साथ जरूर दीजिएगा…हाइकोर्ट को क्यों सख्ती दिखानी पड़ी बल। दोस्तो अपनी बात को जिम्मेदारों तक अपनी आवाज को पहुंचाने का तरीका मात्र आप इन तस्वीरों को मान सकते हैं, लेकिन जब दिन के उजाले में सुनवाई नहीं होती है तो रात को लोगों को मशालें जलानी पड़ती हैं। दोस्तो कुमाउं के चौघुटिया में स्वस्थ्य आंदोलन की चिंगारी को आपने देखा होगा, उससे लगता इलाका भिकियासैंण, यहां भी लोग राज में मशालों की लौ जला रहे हैं। दोस्तो पिछले कुछ हफ्तों से हमने चौखुटिया, पिलखी, घनसाली, चंबा और कई अन्य जगहों की तस्वीरें देखी हैं। मैने आपको खूब दिखाई, जहां लोग सड़क पर उतरकर बस एक ही चीज़ मांग रहे थे, अपने लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं। वही आग, वही उम्मीद, वही गुस्सा भिकियासैंण, अल्मोड़ा की सड़कों पर भी दिखा है।

दोस्तो सैकड़ों लोग हाथों में मशाल लिए सड़क पर उतरे नारे वही थे, दर्द वही था और मांग भी वही हम अपना स्वास्थ्य अधिकार मांगते हैं किसी से भीख नहीं मांगते। चौखुटिया से उठी यह आवाज़ अब पूरे प्रदेश में फैल रही है क्यों की समस्या हर जिले की है और अब लोग चुप रहने को तैयार नहीं। भिकियासैंण की मशालें बता रही हैं कि यह सिर्फ आंदोलन नहीं, यह पूरे उत्तराखंड की चेतना है जो जाग रही है। अब बात कोर्ट की नाराजगी की। वैसे तो दोस्तो उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों की बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं किसी से छिपी नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि प्रदेश में ऐसे कई सारे अस्पताल मौजूद हैं, जहां पर ना तो उचित स्वास्थ्य सुविधाएं हैं और ना ही डॉक्टर उपलब्ध है। अस्पताल में उपकरण और डॉक्टरों की कमी के कारण आए दिन लोगों को अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ते हैं, जिसके कारण काफी बार उनकी जिंदगी तक चली जाती है। प्रदेशभर में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पत्र पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशालय समेत हेल्थ सचिव को कोर्ट में पेश होने को कहा है। दोस्तो जानकारी के अनुसार नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सुनवाई की। जिसके बाद मामले की सुनवाई होने पर हाई कोर्ट ने राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशालय समेत हेल्थ सचिव को कोर्ट में पेश होने के निर्देश दिए हैं। वही मामले की अगली सुनवाई अब 17 नवंबर को होनी है।

दोस्तो इस पूरे मामले में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने बताया कि प्रदेशभर के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को मूलभूत सुविधा नहीं मिल पा रही है, और सभी जिला अस्पताल मरीजों को इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर कर रहे हैं। इसके अलावा एक डिलीवरी करने के लिए गर्भवती महिलाओं को दून अस्पताल या हल्द्वानी महिला हॉस्पिटल रेफर किया जाता है। हैरानी की बात तो यह है कि वहां पर ना तो डॉक्टर समय पर आते हैं और ना ही निर्धारित समय पर ड्यूटी पर स्टाफ तैनात रहता है। इस मामले को कोर्ट ने खुद संज्ञान में लेकर कहा कि राज्य का उच्च न्यायालय होने के नाते जब यहां पर कोई स्वास्थ्य की सुविधा नहीं है तो प्रदेश के अन्य जिलों के क्या हाल होंगे ये सोचनीय विषय है। मामले के अनुसार उच्च न्यायालय में स्थित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को एक व्यक्ति द्वारा राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं के मामले पर शिकायत दर्ज कराई गई ,जिस पर मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की पीठ ने निदेशक स्वास्थ्य से 21 नवंबर को कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने को कहा गया है। शिकायत में कहा गया है कि जिला अस्पताल सिर्फ सेंटर रेफर बनकर रह गए हैं। इसके अलावा याचिका में यह बात भी कही गई है कि अस्पताल में इंडियन हेल्थ स्टैंडर्ड के मानको की कमी है। उच्च न्यायालय से सरकारी अस्पतालों में बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने की बात कही गई है ताकि मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का लाभ मिल सके । दोस्तो—अब बात सिर्फ कागज़ों की नही, जवाबदेही की है। हाईकोर्ट ने साफ संकेत दे दिए हैं कि स्वास्थ्य व्यवस्था में ढिलाई बर्दाश्त नहीं होगी। सवाल बड़ा है—क्या अब बदलाव की आंधी आएगी, या फिर सिस्टम फिर किसी बहाने में छिप जाएगा?