जी हां उत्तराखंड की जनता के सड़क पर उतरने का मतलब क्या है, हाल में दिन के उजाले में जनता प्रदर्शन कर कई मुद्दों पर बात की तो अब राज के अंधेरे में क्यों सड़क पर उतरने को मजबूर हो गई पहाड़ की जनता क्या इसे सरकार के लिए चेतावनी समझा जाय या बड़ी चुनौती। Operation Health Movement Almora दोस्तो उत्तराखंड की रजत जयंती के मौके पर रात का अंधेरा भी जनता की आवाज़ को रोक नहीं सका। मशालें जलाकर सड़कों पर उतरकर लोगों ने सरकार को अपना संदेश दिया। आज मै आपको दिखाउंगा कि क्यों राज्य की राजधानी से लेकर छोटे गांवों तक लोग अपने अधिकार और विकास की मांग को लेकर सड़कों पर हैं। क्योंकि क्या अब ये सब करना पड़ेगा बल, तब ही होगा विकास या फिर अस्पताल स्कूल, रोजगार। दोस्तो एक तरफ विशेष सत्र में ये सब ही चलता रहा, कोई नहीं बता पाया कि इन बीते 25 सालों में क्या हो पाया बल और जो नहीं हो पाया वो थी मूल भूत सुविधाएं जिसके लिए लोग सड़क पर हैं। अभी कुछ दिन पहले अल्मोड़ा जिले की गेवाड़ घाटी में आपने वो जन सैलाब देखा तो दरअसल ये सवाल हैं 25 साल बाद भी जिसके जवाब आम जन से कोसों दूर हैं बल, उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की समस्या अब केवल शिकायत नहीं रही, बल्कि यह पूरे राज्य में जन आंदोलन का रूप ले चुकी है।
घनसाली में स्वास्थ्य व्यवस्था के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन ने चौथे दिन भी अपनी ताक़त दिखाई। अखोडी और आसपास के ग्यारह गांवों की जनता ने एक विशाल मशाल यात्रा निकाली। घनसाली स्वास्थ्य जन संघर्ष मोर्चा के बैनर तले हुए इस आंदोलन में लोगों ने न केवल बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की मांग उठाई, बल्कि न्याय, सम्मान और बुनियादी अधिकारों के लिए भी एकजुट होकर आवाज़ दी..दोस्तो जन आंदोलन में शामिल लोगों का कहना है कि प्रशासन की उपेक्षा और लापरवाही अब और सहन नहीं की जा सकती। अखोडी और आसपास के गांवों की जनता ने साफ संदेश दिया कि उनकी मांगें अनसुनी नहीं रहेंगी, अब या तो समाधान होगा या संघर्ष और तेज़ होगा, इस संदेश के साथ लोगों ने चेतावनी दी। दोस्तो वहीं दूसरी तरफ़, देहरादून में ऑपरेशन स्वास्थ्य पदयात्रा के आंदोलनकारियों को रोक दिया गया था। देहरादून की सीमा में जैसे ही पदयात्रा करने वाले लोग पहुंचे, पुलिस ने उन्हें बसों में भरकर गिरफ्तार कर लिया। ये घटनाक्रम यह दर्शाता है कि राज्य की राजधानी में भी स्वास्थ्य सुधार की आवाज़ दबाने के प्रयास किए गए और जब मुख्यमंत्री से बात हुई तो उसमें जो मांगा वो नहीं मिला बल, हालांकि दोस्तो घनसाली और अखोडी की जनता ने ये साबित कर दिया कि दबाव और रोकथाम से उनकी आवाज़ कम नहीं होगी। ओड़ाधार मुख्य बाजार में मशाल रैली निकाली गई। लोगों ने स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के खिलाफ नारेबाज़ी की और प्रशासन को चेतावनी दी कि उनकी मांगें जल्द पूरी की जाएँ और हां दोस्तो आंदोलन अब केवल घनसाली तक सीमित नहीं रहा।
टिहरी ज़िले के चंबा में भी स्वास्थ्य सेवा की बदहाली के खिलाफ जन स्वास्थ्य सत्याग्रह का आठवां दिन लगातार जारी है। स्थानीय लोग और ग्रामीण चंबा बाजार में मशाल जुलूस निकाल कर शासन-प्रशासन की लापरवाही के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं। दस सूत्रीय मांगों के साथ शुरू हुआ यह आंदोलन अब पूरे इलाके की आवाज़ बन चुका है। उत्तराखंड में यह आंदोलन दर्शाता है कि जनता अब सिर्फ़ मांगों तक सीमित नहीं है। वह अपने हक़ और अधिकार के लिए संगठित होकर आगे आ रही है। चाहे घनसाली हो, चंबा या अखोडी — मशालें, नारे और सड़क पर उतरना अब जन आंदोलन की पहचान बन गया है। जानकार लोग कहते हैं कि अगर राज्य प्रशासन जल्द ही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं करता, तो आंदोलन और तेज़ होने की संभावना है। अब जनता की मांग सिर्फ़ बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की नहीं बल्कि न्यायपूर्ण, पारदर्शी और जवाबदेह शासन की भी है। इस आंदोलन की सबसे बड़ी बात यह है कि यह सभी उम्र और वर्ग के लोगों को जोड़ रहा है। महिलाएँ, बुजुर्ग और युवा, सभी एकजुट होकर यह संदेश दे रहे हैं कि उत्तराखंड की जनता अब अपने अधिकारों के लिए पीछे नहीं हटेगी। राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग के लिए यह आंदोलन चेतावनी है कि केवल आंकड़ों और कागज़ों पर स्वास्थ्य सेवाओं का प्रचार करना पर्याप्त नहीं है। जनता अब सड़कों पर है और उसकी आवाज़ को नजरअंदाज करना किसी भी स्तर पर सुरक्षित नहीं रहेगा। उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की यह समस्या, जो अब जन आंदोलन का रूप ले चुकी है, पूरे राज्य के लिए चेतावनी भी है और एक अवसर भी। यह सरकार के लिए संदेश है कि सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएँ, ताकि जनता की उम्मीदें टूटें नहीं और आंदोलन का संघर्ष समाप्त हो सके।