उत्तराखंड की बदकिस्मती है कि यहां की धरती कांपती है और तबाही लिख जाती है, जैसा आपने केदारनाथ में देखा था, जैसा अपने धराली में देखा हैऔर बीच बीच में कई आपदा आईं उनको भी आप नहीं भूले होंगे। लेकिन वो कौन से इलाके हैं जहां प्रकृति कभी भी बिगाड़ सकती है रूप, जहां ऐसा लगता है दोस्तो कि यहां ज़िंदगी और मौत के बीच बस एक बारिश का फासला। Uttarakhand is the most dangerous zone उत्तराखंड के ‘साइलेंट ज़ोन’ जो किसी भी वक्त बन सकते हैं ‘डेथ ज़ोन के बारे में आगे सिलसिलेवार तरीके से बताने जा रहा हूं यकिन मानये रिपोर्ट देखेगें तो हिल जाएंगे आप। सोचेंगे कि क्या ऐसा भी हो सकता है। इसलिए गुजारिश ये आप से कि आप अंत तक मेरे साथ जरूर बने रहें। दोस्तो उत्तराखंड, अपनी देवभूमि जहां बादल फटना, भूस्खलन और भूकंप कोई नई बात नही। चुनौतियां कई हैं। दगड़ियों चारधाम की धरती और प्रकृति का स्वर्ग देवभूमि उत्तराखंड अब प्राकृतिक आपदाओं का केंद्र बनता जा रहा है. यहां पहाड़ियां लगातार दरक रही हैं। नदियां बेकाबू हो रही हैं और आसमान से बादल मौत बनकर बरस रहे हैं। उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने से जो तबाही मची, उसने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हिमालय की गोद में बसे ये क्षेत्र अब सुरक्षित रह गए हैं? IIT रुड़की और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) जैसी संस्थाओं की रिसर्च बताती है कि उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं की फ्रीक्वेंसी लगातार बढ़ रही है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि राज्य का एक बड़ा हिस्सा अब डिजास्टर प्रोन क्षेत्र में बदल चुका है। दोस्तो मै अपनी इस रिपो्रट के जरिए इस संवेदशील मुद्दे पर बात कर रहा हूं और आगे कुमाऊं से लेकर गढ़वाल के उन जिलों के बारे में आपको बताने जा रहू हूं। जहां खतरा सर पर है पहले बात करता हूं उत्तरकाशी की यहां जमीन लगातार दरक रही है।
यहां भूस्खलन, बादल फटना जैसी घटनाएं दिख रही हैं। साल 2012, 2013, 2019 और 2024 और अब धराली में बादल फटना जैसी बड़ी घटनाएं यहां पर हुई हैं, जिनमें जानमाल का बड़ा नुकसान हुआ है। बड़ा खतरा यमुनोत्री और गंगोत्री के रूट पर है, जहां ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। दोस्तो हालांकि उत्तरकाशी में अब तक ग्लेशियर झील विस्फोट की कोई घटना रिकॉर्ड नहीं हुई है, लेकिन उत्तरकाशी जैसे ऊंचाई वाले हिमालयी जिलों में GLOF का भौगोलिक खतरा हमेशा बना रहता है, क्योंकि यहां कई छोटे-बड़े ग्लेशियर मौजूद हैं। अगला नाम आता है चमोली का, जहां लगातार पहाड़ धंस रहे हैं। उदाहरण जोशीमठ के रूप में सबके सामने है, जहां घर धंस रहे हैं। ये जगह भी फ्लैश फ्लड और भूस्खलन के लिहाज से बेहद सेंसेटिव है। फरवरी 2021 में रैणी गांव में ग्लेशियर टूटने से NTPC परियोजना को भारी नुकसान हुआ। 7 फरवरी 2021 को रैणी गांव में एक ग्लेशियर टूटने से यहां भीषण तबाही हुई थी। इस बड़ी आपदा में 200 से ज्यादा लोग मारे गए और कई तो लापता हुए। यहां सबसे बड़ी चिंता जोशीमठ भू-धंसाव है, जिसको लेकर सरकार भी चिंतित है। वहीं, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और धारचूला क्षेत्र की बात करें तो यह राज्य के सबसे संवेदनशील और आपदा प्रवण यानि आपाद के लिहाज से सेंसेटिव इलाकों में गिना जाता है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले का नाम लेते ही श्रद्धा और विनाश दोनों बातें साथ उभरती हैं। यहां एक ओर केदारनाथ धाम जैसी दिव्य आस्था का केंद्र है तो दूसरी ओर 2013 की भीषण त्रासदी की कड़वी यादें भी मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों के संगम पर बसा यह जिला उत्तराखंड के सबसे संवेदनशील आपदा क्षेत्रों में से एक है।
रुद्रप्रयाग का भौगोलिक स्थान इसे विशेष रूप से संवेदनशील बनाता है। यहां दोनों नदियों का जलस्तर बारिश के दौरान अचानक बढ़ जाता है। बरसात के दिनों में नदी अपना रुख बदल लेती है, जिससे तटवर्ती इलाके बर्बाद हो जाते हैं। भूस्खलन और चट्टानों का खिसकना भी यहां सबसे बड़ी चुनौती होती है। टिहरी और पौड़ी गढ़वाल जिले, कभी स्थिर और मजबूत माने जाने वाले ये पहाड़ी इलाके अब भूस्खलन, जमीन दरकने और दरारों के लिए जाने जाते हैं। खासतौर पर टिहरी झील के आसपास के गांवों में हर मानसून के साथ डर में रहते हैं। इन दोनों जिलों में बीते दो दशकों में तेज गति से सड़क चौड़ीकरण, सुरंग निर्माण और जल विद्युत परियोजनाएं शुरू हुई। विशेषज्ञों के अनुसार, ये पहाड़ों की भू-संरचना को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। टिहरी झील के किनारे बसे डोबरा, प्रतापनगर, गजा, घनसाली जैसे गांव हर साल बारिश में खतरे की जद में आ जाते हैं। वहीं दोस्तो हिमालय की तलहटी में बसे कुमाऊं क्षेत्र खासकर नैनीताल को भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहते हैं, क्योंकि यहां की हरियाली, झीलें और शांत वातावरण देश-विदेश के पर्यटकों को लुभाते हैं। लेकिन इस सुंदरता के नीचे छिपा है एक गहरा और चुपचाप बढ़ता संकट यह हर साल भूस्खलन, जल रिसाव और जमीन धंसने के रूप में बारिश के साथ बाहर आता है। नैनीताल शहर और आसपास का कुमाऊं क्षेत्र खासकर भीमताल, भवाली, रामगढ़ और मुक्तेश्वर अब हर मानसून सीजन में भूस्खलन और सड़क धंसने की घटनाओं का गवाह बन रहा है तो क्या अभी खतरा और भी है। अभी सावधान रहने के साथ-साथ विकास से विनाश तक को समझना होगा। आगे किसी और वीडियो में एक नई स्टोरी में आपके लिए लेकर आउंगा और कमेंट कर बता सकते हैं।