हर फूलों के खिलने का समय होता है…हर फल के पकने का वक्त होता है..लेकिन जब समय आता है तो फूल भी खिलते हैं..और फल भी मिलते हैं…लेकिन उत्तराखंड में एक फूल की चर्चा खूब हो रही है…इस फूल की खासियत है कि…ये हर 12 साल बाद खिलता है..लेकिन ऐसा क्यों होता है…12 साल तक ये पौधा रहता है या नहीं…फूलों का गुलजार होना तो कुदरत का करिश्मा है…फिर इस फूल को इतना वक्त कुदरत ने क्यों दिया होगा…इस फूल के खिलने के बाद लोग क्यों जश्न मनाने लगाते हैं…खुशियां ऐसे मनाई जाती हैं जैसे किसी के घर में शादी हो…
अब जब इस फूल को लेकर इतनी खुशी लोगों के भीतर है ..और लोग इसके खिलने का इंतजार करते हैं…तो इसके पीछे कुछ न कुछ तो लॉजिक होगी..वैसे से उत्तराखंड मान्यताओं से भरा है…इसी मान्यताओं में ये फूल भी खास संदेश लेकर आता है…जिसके बाद लोग जश्न में डूब जाते हैं….आज हम अपनी रिपोर्ट में यही बताएंगे कि…इस फूल को 12 साल बाद खिलने के पीछे की वजह क्या हो सकती है..और इस फूल के खिलने का इंतजार लोग 12 साल तक क्यों करते हैं…इस फूल में ऐसा क्या है..जो पूरी दुनिया में नहीं है…सिर्फ उत्तराखंड में है…
हम बात कर रहे हैं..उत्तराखंड पिथौरागढ़ की…जहां के पहाड़ कंडाली, बिच्छू घास या सिंसौण के फूलों से सजे हुए हैं….यह फूल हर ओर बैंगनी रंगत बिखेर रहे हैं…..कंडाली से तो आप सब परिचित होंगे..लेकिन क्या आपने कभी कंडाली के फूल देखे हैं….इसके फूल 12 साल बाद खुशियां लेकर आते हैं…वो इसलिए क्योंकि कंडाली के फूल 12 साल में एक बार खिलते हैं...यही नहीं बिच्छू घास और कंडाली वनस्पति की अलग-अलग प्रजातियां हैं…बिच्छू घास का बॉटनिकल नाम उर्टीका डीओइका है जबकि कंडाली का बोटेनिकल नाम एचमनथेरा गॉसिपिना है… इस फूल को जोंटिला भी कहते हैं… पिथौरागढ़ में कंडाली का उत्सव भी होता है….जब घाटी में फूलों की बैंगनी चादर बिछती है तो चौदास वैली में कंडाली फेस्टिवल मनाया जाता है… पिथौरागढ़ के अलावा नैनीताल और चंपावत में भी इस बार कंडाली का फूल देखा गया है…
आपके मन में एक और सवाल जन्म ले रहा होगा कि..कंडाली फूल 12 साल बाद खिलता है…इसकी जानकारी कैसे आई…आज हम अपनी रिपोर्ट में यही बताएंगे कि..कैसे इस फूल की जानकारी सामने आई…इस फूल की तस्वीर पहली बार से लेकर अब तक की है….जाने-माने फोटोग्राफर पद्मश्री अनूप साह ने कंडाली के फूलों की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद किया है….अनूप साह कहते हैं कि…उन्होंने ये फूल पहली बार 1975 में और फिर 1987 में देखा….इसके बाद साल 1999 और फिर 2011 में इसे देखा गया….अब 12 साल बाद 2023 में यह फूल फिर खिला है….लैंडस्केप फोटोग्राफर सुधांशु कन्नौजिया ने लोहाघाट में खिले फूलों की तस्वीरें खींची हैं….अक्टूबर महीने के आखिर में चौदास वैली में कंडाली उत्सव मनाया जाता है…जो कि पूरे एक हफ्ते तक चलता है…इस अवसर पर घाटीवासी देवताओं से समृद्धि का निवेदन करते हैं…पूजा के अवसर पर पूरी बिरादरी को अन्नादि का भोजन भी कराया जाता है….देवभूमि तो वैसे भी मान्यताओं से घिरा है…यहां के हर शहर में मान्यताओं हैं..देवताओं में आस्था के प्रतीक इस राज्य में हमेशा से भक्तिमय की आंधी चलती रहती है…गाने बजाने के साथ कहीं लोग थिरकते हैं तो कहीं पूजा होती है…इस फूल के खिलने के बाद पिथौरागढ़ में भी जश्न मनाया जाता है…खास बात ये है कि..ये फिल बिच्छू जाति से थोड़ा अलग होता है..कंडाली फेस्टिवल इसीलिए मनाया जाता है…