जी हां दोस्तो उत्तराखंड में आज एक पुरानी याद ताजा हो गई, यकीन मानिये आप भी कहेंगे कि कितना कुछ बदल गया बीते 25 साल में लेकिन नहीं बदली एक ऐसी कड़वी सच्चई, जो देहरादून में देखने को मिली। Chaukhutia Health Movement वो भी रात के अंधेरे में जहां पुरुषों को घसीटा गया, महिलाओं को खींचा गया और ये सब हुआ क्यों, बताउंगा आपको पूरी खबर। दोस्तो 25 साल पहले जैसी परिस्थितियों की याद दिलाती हुई एक घटना सामने आई, जहाँ लगा कि हां जब अपने राज्य की अलग मांग को लेकर आंदोलन हुआ हुआ होगा तो कैसे माहौल रहा होगा। कैसे एक तरफ आंदोलनकारी दूसरी तरफ पुलिस वो लाठियां, चीख, चीतकार फिर पुलिस की चौलियां ये सब 25 साल पहले हुआ। लेकिन क्या आप कहेंगे कि आज जब उत्तराखंड रजत जयंती बना रहा है, तब सब कुछ बदल गया है, हां शायद बहुत कुछ बदल गया होगा लेकिन जो नहीं बदली वो है वो तस्वीर आंदोनकारियों के साथ बर्बरता वाला सलूक अब इस सत्वीर को देखिए फिर आगे की खबर और बात बताउंगा। दोस्तो ये तस्वीर दिखाती है मांग कोई भी हो मांग करने वालों का अंजाम एक जैसा ही होता है। आज जैसे स्वास्थ्य आंदोलन कर रहे ये चौखुटिया गेवाड़ घाटी के लोगों के साथ जैसा सलूक अपनी चमकती अस्थाई राजधानी में किया गया। वो ऐसा लगा कि जैसे इन लोगों ने जाने क्या कर दिया हो और न जाने कौन सी मांग लोकर ये यहां पर पहुंचे हों।
दोस्तो चौखुटिया स्वास्थ्य आंदोलन के पदयात्रियों को रोकने के लिए पुलिस ने कड़ी कार्रवाई की। आंदोलनकारियों पर ये बर्बरता सिर्फ उनके संघर्ष को दबाने का प्रयास नहीं, बल्कि सवाल उठाती है कि क्या अब भी राज्य की बुनियादी जरूरतों की आवाज़ को सुना ही नहीं जाएगा? दोस्तो ऑपरेशन स्वास्थ्य भुवन कठायत का अनशन, उत्तराखंड की कागज़ी विकास और हकीकत की खाई उजागर करने वाली ये कहानी ये खबर है जो पहले गांव से चिल्ला रही थी..गेवाड़ घाटी चीख रही थी। जब देहरादून वालों ने सुना नहीं तो ये लोग पैदल यहां तक चलकर पहुंचे तो उनके स्वागत के लिए पुलिस खड़ी थी। दोस्तो इस संघर्ष ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर कमी और प्रशासनिक नाकामी को फिर से उजागर कर दिया। ये सिर्फ एक स्थानीय घटना नहीं है, बल्कि पूरे उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की हकीकत और कागज़ी दावों के बीच की खाई को दर्शाती है। दोस्तो 25 साल पहले राज्य के गठन के समय जनता ने अपने हक़ और बेहतर जीवन की उम्मीदों के लिए आंदोलन किया था, आज वही उम्मीदें और मांगें, चाहे वह स्वास्थ्य सेवा हो या बुनियादी सुविधाओं का अधिकार, अब भी उत्तराखंड के दूर-दराज़ के गांवों में अधूरी हैं। चौखुटिया की स्वास्थ्य पदयात्रा यही दिखाती है कि सालों बाद भी लोगों को अपने ही राज्य में इलाज के लिए लंबी यात्राएँ करनी पड़ती हैं, जहां क्या पुरुष क्या महिला सब को रात के अंधेरे में सड़क पर घसीटा जात है।
ऑपरेशन स्वास्थ्य के नाम से किए जा रहे इस आंदोलन में पूर्व सैनिक भुवन कठायत ने गांधी जयंती के दिन रामगंगा आरती घाट पर आमरण अनशन शुरू किया। उनका ये संघर्ष केवल उनका व्यक्तिगत फैसला नहीं है, बल्कि उन परिवारों की सामूहिक पुकार है जिन्हें अब भी अपने ही राज्य में इलाज के लिए भटकना पड़ता है। हां 25 साल बाद में आपको वो ही बात बता रहा हूं, जो 25 साल पहले कोई और पत्रकार बताता होगा। दोस्तो जब पदयात्रा देहरादून पहुंची, तो शहर की सीमा में माहौल अचानक तनावपूर्ण हो गया। पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोक लिया और बसों में भरकर गिरफ्तार कर लिया, ये कार्रवाई राज्य की उस व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करती है जो लोगों की आवाज़ सुनना नहीं चाहती। दोस्तो उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी लगातार चिंता का विषय रही है। डॉक्टरों की कमी, दवाइयों की कमी, और अस्पतालों के ढांचागत संकट ने ग्रामीण जनता को थका दिया है। छोटे-मोटे इलाज के लिए भी लोग लंबी दूरी तय करते हैं, यही वजह है कि चौखुटिया का आंदोलन केवल एक स्थानीय संघर्ष नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की गहरी समस्या के तौर पर देखा जाने लगा।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने विधानसभा में भी इस मुद्दे को उठाया। उनका कहना है कि यह केवल चौखुटिया का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था का मुद्दा है। “रेफर-रेफर” अब इलाज का पर्याय बन चुका है, और इस पर गंभीर विचार करने की जरूरत है। दोस्तो यहां एक तरफ ये हंगामा और पुलिस की बर्बरता थी वहीं प्रदेश के विधानसभा विशेष सत्र में भी ये मामला उठा। अब दोस्तो इसे कैसे समझे क्या बदला पर प्रदेश में बीते 25 सालों में जब जब सड़क से लेकर सदन तक में वो पूराने वाले सवाल ही गूंज रहे हैं, और कुछ नहीं। दोस्तो उत्तराखंड की दो तस्वीरें आज सामने आती हैं। एक तस्वीर योजनाओं और बड़े दावों की है, जो कागज़ों और प्रचार में दिखती है। दूसरी तस्वीर गांव की पगडंडियों और ग्रामीणों की है, जहाँ स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवा बदहाल पड़ी है। भुवन कठायत का अनशन, गेवाड़घाटी के लोगों का पदयात्रा का देहरादून पहुंचना इसी खाई को उजागर करता है। आज उत्तराखंड की राजनीति, प्रशासन और जनता के बीच यह संघर्ष और सवाल खड़ा करता है कि क्या राज्य अपने नागरिकों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। 25 साल पहले जैसी मांगें आज भी उठ रही हैं, और यह स्पष्ट कर रही हैं कि जनता के हक़ के लिए संघर्ष कभी पुराना नहीं होता, चौखुटिया स्वास्थ्य आंदोलन केवल एक अनशन या पदयात्रा नहीं है, बल्कि उन पीड़ाओं की आवाज़ है जिन्हें ग्रामीण सालों से झेल रहे हैं, लेकिन आंदोलन करने वालों के साथ क्या होता है वो आपने देख लिया।