जी हां दोस्तो अपने उत्तराखंड में एक बड़े खुलासे से फिर मचा है हड़कंप, कैसे सिस्टम को चकमा देकर हो गया लाखों का घोटाला, जब जांच हुई तो सबसे होश उड़ गए। दोस्तो उत्तराखंड में बड़ा खुलासा और सिस्टम की सुरक्षा में लगी सेंध ने सबको हिला दिया। एक संविदा कंप्यूटर ऑपरेटर ने करोड़ों की चोरी कर पूरे विभाग को चौंका दिया। Contract computer operator embezzled lakhs कैसे हुआ ये घोटाला? और कौन-कौन प्रभावित हुआ? दोस्तो नैनीताल जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया, जहां पर वन निगम के लौंगिग प्रभाग मे तैनात एक कंप्यूटर ऑपरेटर ने बड़ा घोटाला कर डाला। इतना ही नहीं बल्कि कंप्यूटर ऑपरेटर पर लाखों रुपए की धोख़ाधडी करने का गंभीर आरोप लगा है। दोस्तो प्रदेश में इस तरह के कई सारे मामले सामने आ चुके हैं, जहां पर सरकारी सेवाओं में तैनात कई सारे अधिकारियों ने लाखों करोड़ों रुपए का घोटाला किया है। अब ये वाली जो खबर है, ये जो घोटाल है ये नैनीताल जिले के धारी ब्लॉक के धानाचूली से आया है यहां 26 साल के महेंद्र सिंह बिष्ट कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर कार्यरत था और महेंद्र सिंह बिष्ट वन निगम के लौंगिग प्रभाग पूर्वी हल्द्वानी में संविदा की 2 साल दो महीने की नौकरी में कंप्यूटर ऑपरेटर बन बड़ा घोटाला करता रहा। दोस्तो महेंद्र ने नौकरी लगते ही बड़े अधिकारियों से नजदीकी दिखाई और महकमे मे खुद का दबदबा कायम करने में जुटा रहा व अधिकारियों को अपने प्रभाव में लेकर डराने लगा। अब देखिए ये खेल क्या है और इसकी शुरूआत कैसे हुई। दरअसल दोस्तो महेंद्र ने उपस्थिति और अनुपस्थिति का खेल कंप्यूटर मे शुरू किया। जिसने 19,20,21 दिसंबर 2023 और 6 मार्च 2024 को बायोमेट्रिक मशीन के रिकॉर्ड में अनुपस्थित होने के बावजूद रजिस्टर में बैक डेट में हस्ताक्षर किए थे।
दोस्तो 26 माह में 76 बार महेंद्र ऑफिस के समय से पहले सुबह 8:00 से 9:00 बजे के बीच उपस्थिति दर्ज करवाता गया और फिर पूरे दिन गायब रहा। महेंद्र ने सात बार अवकाश के आवेदन की स्वीकृति ली और बायोमेट्रिक में उपस्थिति भी दर्ज करवाई। यहां तक की महेंद्र खुद जो डाक भेजता था उसे स्वयं की डिस्पैच रजिस्टर पर चढाता था। जांच में पता चला कि विभागीय कार्य के लिए उसे माउस और कीबोर्ड मिला था जिसे वह घर लेकर चला गया। दोस्तो आरटीआई ने जब कंप्यूटर की जानकारी मांगी तो इस पर आरटीआई से जुड़े लॉगिन का यूजर आईडी और पासवर्ड भी चेंज कर दिया गया। जिसका आरोप भी महेंद्र पर लगा है हालांकि किसी तरह से ये मुख्यालय से रिकवर किया गया। दोस्तो जांच पड़ताल में पता चला कि कंप्यूटर ऑपरेटर ने सहायक लेखाकार मोहन कुमार और राष्ट्रीयकृत बैंक के कुछ स्टाफ से मिलीभगत कर राजकीय खाते से आउटसोर्स कार्मिकों के मानदेय का 72,775 का भुगतान वन निगम के चेक की फोटो कॉपी से कराया। इसके बाद वन विभाग ने जब चेक भेजा तो दोबारा भुगतान हुआ। इसके बाद 72,775 रुपए वापस लेने में एक माह लग गया। 3 से 4 माह पहले डीएलएम पूर्वी हल्द्वानी का कार्यभार ग्रहण किया तब से कंप्यूटर ऑपरेटर महेंद्र सिंह बिष्ट के खिलाफ कई गंभीर शिकायत थी।
प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए जांच करवाई गई तो जांच रिपोर्ट में भ्रष्टाचार और अनियमितता से जुड़े कई मामले सामने आए। वही लाखों रुपए का घोटाला करने पर कंप्यूटर ऑपरेटर को बर्खास्त करते हुए उसे संपूर्ण वन विकास निगम से ब्लैक लिस्टेड किया गया है। दोस्तो, इस घोटाले ने साफ कर दिया कि कैसे सिस्टम में सेंध लगाकर लाखों का खेल खेला जा सकता है, कितने जुगाड़ किए जा सकते हैं, और कैसे चतुराई से नियमों को मात दी जा सकती है लेकिन सवाल ये भी है—क्या सिर्फ वन निगम में ही ऐसा हुआ, या कई अन्य विभागों में भी ऐसे ही मामलों की परतें छुपी हुई हैं?क्या ये घोटाला अकेला है, या इसके पीछे और भी जांच का रास्ता खुलेगा? एक बात तय है—इस कहानी से सिस्टम की कमजोरियों और चतुराइयों की पोल खुल चुकी है, और आने वाले समय में कई विभागों में जांच की लहर बढ़ने वाली है। तो दोस्तो, इस खेल की गहराई समझने के लिए नजर बनाए रखें, क्योंकि ये सिर्फ एक मामला नहीं, बल्कि चेतावनी है कि नियमों को चतुराई से कैसे बायपास किया जा सकता है।