जी हां दोस्तो फर्जी प्रमाणपत्रों का रक्तबीज, प्रशासन में कैसे फल-फूल रहा है ये वो सवाल है जिकसा जवाब सरकार को खोजे नहीं मिल रहा है। अभी आपको मेने एक खबर दिखाई थी कि कैसे चमोली में एक मुस्लिम शिक्षक पर नाबालिक से यौनशोषण के आरोप लगे, लेकिन अब शिक्षक युनुस अंसारी मामले में नया खुलासा हुआ है ये औऱ चोकाने वाला है कैसे इस विवादित शिक्षक ने खेल किया है, वो बताने के लिए आया हूं, साथ एक सवाल भी क्या अपने उत्तराखंड का प्रशासनिक तंत्र इतना कमजोर है कि कोई कुछ भी सरकारी कागज आसानी बना लेता है। चोमोली में नाबिलिक का यौनशोषण करने वाले गेस्ट टीचर युनुस अंसारी की गिरफ्तारी क्या हुई। एक नया खुलासा होगा गया, खबर को थोड़ा समझियेगा। उत्तराखंड के चमोली जिले से उठी एक खबर जिसने प्रशासनिक तंत्र की नींव हिला दी। युनुस अंसारी नामक शिक्षक के मामले ने सिर्फ एक आपराधिक प्रकरण नहीं, बल्कि फर्जी निवास और जाति प्रमाणपत्रों का खेल उजागर किया है। ये मामला दिखाता है कि कैसे कुछ फर्जी दस्तावेज—जिन्हें ‘रक्तबीज’ कहा जा रहा है—प्रशासन में लगातार फल-फूल रहे हैं, क्या ये सिर्फ शिक्षक की व्यक्तिगत गलती है या कहीं तंत्र की मिलीभगत और लापरवाही इसमें शामिल है? दोस्तो चमोली जिले में नाबालिग छात्रा के यौन शोषण के आरोपित गेस्ट टीचर युनुस अंसारी का मामला सिर्फ एक आपराधिक प्रकरण नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक तंत्र के भीतर जड़ें जमा चुकी फर्जीवाड़े की गहरी समस्या को उजागर करता है। ये खुलासा कि युनुस अंसारी मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जलालाबाद का निवासी है, फिर भी उसने चमोली का स्थायी निवास व ओबीसी प्रमाण पत्र हासिल कर शिक्षक नियुक्ति जैसी सरकारी प्रक्रिया में जगह बना ली, शासन-प्रशासन दोनों के लिए गंभीर चेतावनी का संकेत है।
दोस्तो प्रमाण पत्र बनाना एक बहुस्तरीय प्रशासनिक प्रक्रिया है, जिसमें ग्राम स्तर पर पटवारी, उसके बाद तहसीलदार और फिर एसडीएम की अनुमति आवश्यक होती है। ऐसे में ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि किस स्तर पर और किसकी मिलीभगत से युनुस अंसारी को चमोली निवासी और ओबीसी वर्ग का दर्जा दे दिया गया। क्या संबंधित पटवारी ने बिना सत्यापन के रिपोर्ट तैयार की, क्या तहसीलदार और एसडीएम ने जाँच पड़ताल किए बिना हस्ताक्षर कर दिए या फिर ये पूरा प्रकरण किसी साठगांठ का नतीजा है। अगर हां तो फिर ऐसी सांठगांठ का अंत कब और कैसे होगा, दोस्तो यहां मै आपको ये बता दूं कि प्रदेश के कई जिलों में फर्जी दस्तावेजों से स्थाई निवास समेत अन्य प्रमाण पत्र बनाने के मामले में सभी तहसीलों में पिछले पांच सालों में बने प्रमाण पत्रों की जांच की जा रही है। नैनीताल जिले की बात करूं तो अभी तक सभी तहसीलों में दो हजार प्रमाण पत्रों की स्कैनिंग की जा चुकी है। वहीं, अब प्रशासन ने राशन कार्ड को भी जांच के दायरे में लिया है। जिसके तहत 900 से ज्यादा राशन कार्डों की जांच की जाएगी। गौर करने की बात ये भी है कि कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत की जांच में हल्द्वानी तहसील में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर स्थाई निवास बनाने का खेल का भंडाफोड़ हुआ था. तहसीलदार की तहरीर पर कोतवाली पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। तब से लेकर तहसील में पिछले पांच सालों में बने प्रमाण पत्रों की जांच की जा रही है। ऐसा ही कुछ हरिद्वार में देखने को मिला है, लेकिन हल्द्वानी में फर्जी दस्तावेजों से स्थाई निवास बनाने का भंडाफोड़ होने के बाद जिलाधिकारी के निर्देश पर जिले के सभी तहसीलों में पिछले पांच सालों में बने प्रमाण पत्रों की जांच की जा रही है।
जिले की सभी तहसीलों में एसडीएम का एक्शन लगातार चल रहा है। करीब 2 हजार प्रमाण पत्रों को स्कैन किया जा रहा है। प्रमाण पत्रों के अलावा राशन कार्ड भी जांच के दायरे में लिए जा रहे हैं, लेकिन बात चमोली की करें तो चमोली में यौन शोषण के आरोपी अतिथि शिक्षक यूनुस अंसारी को माध्यमिक शिक्षा विभाग में 2015 में अतिथि शिक्षक की नौकरी मिली थी। यह नौकरी उसे चमोली जिले के स्थाई निवास प्रमाण पत्र के आधार पर मिली। अब यूनुस के नजीबाबाद का मूल निवासी होने की बात सामने आने पर जिलाधिकारी गौरव कुमार ने उसके चमोली गढ़वाल से जारी स्थाई निवास प्रमाण पत्र के जांच के आदेश दिए हैं। दोस्तो शिक्षा विभाग में अतिथि शिक्षक बनने के लिए यूनुस अंसारी ने अपने जो दस्तावेज दिए हैं, उसमें उसने चमोली गढ़वाल जिले का 2010 का बना स्थाई निवास प्रमाण पत्र लगाया है। इसकी पुष्टि दशोली विकास खंड के खंड शिक्षा अधिकारी पंकज उप्रेती ने की है, लेकिन यहां मै ये बता दूं कि माध्यमिक शिक्षा विभाग में अतिथि शिक्षकों की तैनाती स्थानीय स्तर पर की जाती है। यूनुस अंसारी को राजनीति विज्ञान विषय के अतिथि प्रवक्ता पद पर 2015 में दशोली विकास खंड के जिस इंटर कॉलेज में तैनाती मिली थी, उसमें वह 2018 तक तैनात रहा। इसके बाद फिर से 2022 में युनूस ने दूसरे इंटर कॉलेज में अतिथि प्रवक्ता पद पर नियुक्ति पा ली। इसी इंटर कॉलेज में वह छात्राओं के यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार हुआ है। दोस्तो ये अभी जांच का विषय है कि आरोपी नजीबाबाद का रहने वाला है या फिर चमोली गढ़वाल का।
सवाल उठ रहे हैं कि एक तो यहां का स्थायी निवासी बनकर स्थानीय युवाओं की नौकरी का हक छीना गया और उससे भी बड़ा अपराध शिक्षक जैसे पेशे में रहकर छात्र-छात्राओं की अस्मिता से खिलवाड़ किया गया। यहां दोस्तो मै आपको एक और जानकारी दे दूं। उत्तराखंड में सरकारी नौकरी में स्थायी निवास को लेकर काफी समय से सवाल उठ रहे हैं। नैनीताल और ऊधमसिंहनगर में ऐसे बेसिक शिक्षकों की जांच भी चल रही है जिन्होंने यूपी के साथ उत्तराखंड का स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनाकर नौकरी प्राप्त कर ली। इस मामले में उन्होंने डीएलएड यूपी से किया और डीएलएड के लिए यूपी के मूल निवास प्रमाण पत्र का सहारा लिया, लेकिन जब सरकारी नौकरी की बात आई तो उन्होंने उत्तराखंड का स्थायी निवास प्रमाण पत्र बना लिया और नौकरी हासिल कर ली। ऐसे में दोस्तो फर्जी प्रमाणपत्रों के कारण सबसे अधिक नुकसान स्थानीय प्रतिभाशाली युवाओं को होता है, जिन्हें सरकारी नौकरियों में अवसर मिलना कठिन हो जाता है। क्षेत्रीय आरक्षण नीति का उद्देश्य स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देना है, लेकिन जब बाहरी व्यक्ति जाली दस्तावेजों से ये लाभ हासिल कर लेते हैं, तो ये नीति एक मज़ाक बन जाती है। उत्तराखंड में ये समस्या नई नहीं है। फर्जी स्थायी निवास और जाति प्रमाणपत्रों के ज़रिए सरकारी नौकरियों से लेकर शैक्षणिक प्रवेश तक कई जगहों पर अनियमितताएँ सामने आती रही हैं। अधिकारियों के बीच जवाबदेही तय न होने से यह ‘रक्तबीज’ तंत्र लगातार फल-फूल रहा है। एक मामले में कार्रवाई न होने का अर्थ होता है, दस नए फर्जी प्रमाणपत्रों का जन्म। अब जरूरी है कि प्रशासन इस प्रकरण को ‘केवल एक केस’ के रूप में न देखे, बल्कि प्रणालीगत सुधार करे।संबंधित पटवारी, तहसीलदार और एसडीएम की जिम्मेदारी तय की जाए। पुराने बनाए गए प्रमाणपत्रों की विशेष जांच पड़ताल की जाए। यह मामला सिर्फ युनुस अंसारी का नहीं है, बल्कि एक ऐसे प्रशासनिक ढांचे का आईना है जो लापरवाही और भ्रष्टाचार के बीच सत्य व अधिकार की रक्षा करने में असफल दिखाई देता है। यदि अब भी कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो फर्जी प्रमाणपत्रों का यह खेल आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करता रहेगा।