उत्तराखंड फिर डूबा तबाही के सैलाब में रात में मच गयी चीख-पुकार घरों घुस गया पहाड़.. फिर दिखा धराली जैसा मंचर जिसने अंदर तक हिया दिया। बताउंगा आपको पूरी खबर, और दिखाउंगा एक धराली की तबाही की तस्वीर, आप बस अंत तक जुड़ें रहे मेरे साथ। दगड़ियो उत्तराखंड में बारिश का कहर: थराली में तबाही की तस्वीरें, डर और दर्द की दास्तान बया कर रही है। हमारा पहाड़ हमेशा से अपनी खूबसूरती और शांति के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस बार उत्तराखंड के चमोली जिले के थराली क्षेत्र में बारिश ने उस शांति को तोड़ दिया है। पहले उत्तरकासी का धराली और अब चमोली का थराली। थरथरा देने वाला डर, दोस्तो ये बारिश सिर्फ़ पानी की बूंदें नहीं, बल्कि पहाड़ों के दर्द की अनकही चीख है। यहां के लोग हर बार इस मानसून में प्रकृति की सैलाब से घिर जाते हैं, जहां नदियां उफान पर होती हैं, मलबा सड़कों को निगल जाता है और जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। इस बार बार ये तस्वीरे चमोली के थराली से आई .. थरथऱदेने वाली तस्वीर हैं दगड़ियों 22 अगस्त की देर रात बादल फटने से थराली के कोटड़ीप, राड़ीबगड़, अपर बाजार, कुलसारी, चेपड़ो और सगवाड़ा जैसे इलाकों में तबाही ने सब को डरा दिया। मकान मलबे में दबे, दुकानें बह गईं, वाहन मलबे की चपेट में आए, और कई लोग अब तक लापता हैं। यह सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि पहाड़ों की दुर्दशा की तस्वीर है। बारिश तो हर साल आती है, मगर इस बार वो सिर्फ़ मौसम नहीं थी — ये प्रकृति का गुस्सा था।
ऐसा लगा मानो पहाड़ अपने भीतर की पीड़ा को बरसात में बहा देना चाहता हो। चेपड़ो में बारिश की मार ऐसी थी कि एक बुजुर्ग के लापता होने की ख़बर से इलाके में कोहराम मच गया। वहीं सगवाड़ा गांव में 20 वर्षीय एक युवती मलबे में दब गई। ये महज़ आंकड़े नहीं हैं, ये वो ज़िंदगियां हैं जिनका हर पल एक संघर्ष बन गया। बारिश का बहाव इतना तेज़ था कि मकानों में घुसा मलबा पूरे कमरों को निगल गया। दुकानों में रखे सामान बह गए, मकानों की दीवारें चटक गईं, और लोगों की आंखों से चैन छिन गया। दगड़ियों इस थराली बाजार में 108 एंबुलेंस समेत पांच गाड़ियां मलबे में दब गईं। सड़कों का तो नामो-निशान मिट चुका है। कई संपर्क मार्ग ऐसे हैं जहाँ पैदल चलना भी जान जोखिम में डालने जैसा है। राड़ीबगड़ में एसडीएम आवास और नगर पंचायत अध्यक्ष का घर भी मलबे से अछूता नहीं रहा। दोस्तो कुलसारी और कोटड़ीप में स्थानीय लोगों की बाइकें, चारपहिया वाहन तक मलबे में समा गए। यह सिर्फ़ संपत्ति का नुकसान नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी की रीढ़ का टूटना है। स्थानीय लोग बताते हैं कि बारिश की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि लग रहा था जैसे आसमान नीचे आ रहा हो। घर के अंदर पानी और मलबा घुस आया, बच्चे डर से चीखने लगे। हमने जैसे-तैसे उन्हें लेकर ऊंचाई की ओर भाग कर अपनी जान बचाई। ऐसी तस्वीरें केवल फिल्मों में ही नहीं होती दगड़ियों ये थराली के लोग असल में जी रहे हैं। जिलाधिकारी डॉ. संदीप तिवारी खुद मौके पर पहुंचे। उन्होंने स्थिति का जायजा लिया और प्रभावितों को तुरंत राहत केंद्रों में शिफ्ट करने का निर्देश दिया। SDRF, NDRF और स्थानीय पुलिस की टीमें युद्ध स्तर पर काम कर रही हैं।
इधर बारिश का खौफ अब ऐसा है कि प्रशासन ने एहतियातन थराली क्षेत्र के सभी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों को 23 अगस्त को बंद रखने का आदेश दिया.इलाके की संचार व्यवस्था बुरी तरह बाधित है। मोबाइल नेटवर्क कमजोर है, इंटरनेट नहीं चल रहा। कई इलाकों में बिजली आपूर्ति भी ठप हो चुकी है। लोगों ने अपने बच्चों और बुजुर्गों को लेकर ऊंचाई पर बने सामुदायिक भवनों में शरण ली है। इधर दोस्तो मौसम की बात करूं तो मौसम विभाग ने 22 से 25 अगस्त तक उत्तराखंड में भारी से बहुत भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है। 23 अगस्त यानी आज के लिए कुछ जिलों में रेड और कुछ में येलो अलर्ट है। पिथौरागढ़ और बागेश्वर जैसे सीमांत जिलों में स्कूलों की छुट्टी घोषित कर दी गई है। बारिश से नदी-नाले उफान पर हैं। भूस्खलन के खतरे अभी टले नहीं हैं, पहाड़ों में कहीं भी रहना इस समय जोखिम से खाली नहीं। दगड़ियो उत्तराखंड हर साल मानसून के नाम पर आँसू बहाता है। क्या ये सिर्फ़ प्राकृतिक आपदा है या हमारी लापरवाही की कीमत? पर्वतीय क्षेत्र में बेतरतीब निर्माण, जल निकासी की गलत व्यवस्था, और वनों की अंधाधुंध कटाई — ये सब मिलकर जब बारिश से मिलते हैं तो विनाश को बुलावा दे देते हैं। थराली की ये घटना न सिर्फ़ एक जिला या राज्य की पीड़ा है, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है — “अगर हमने अब भी प्रकृति की भाषा नहीं समझी, तो वो हर साल और ज़्यादा ज़ोर से बोलेगी। आज जरूरत सिर्फ राहत और बचाव की नहीं, स्थायी समाधान की है। जब तक हम पहाड़ों को समझकर, उनके अनुकूल योजनाएं नहीं बनाएंगे — तबाही हर साल लौटेगी, शायद और ज़्यादा भयानक रूप में… दगड़ियो थराली की इस रात ने जो उजाला छीना है, वह प्रशासनिक व्यवस्था, समाज और नीतियों की एक गहरी परीक्षा है।