देहरादून: विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी (वैली ऑफ फ्लावर्स) में घूमने के लिए पर्यटकों का इंतजार खत्म होने जा रहा है। एक जून आत्मिक शांति का अनुभव कराने वाली फूलों की घाटी को पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा। इस बार पर्यटकों को लगभग तीन किमी का ट्रैक बर्फीले गलियारे से तय करना होगा। हिमालय की गोद में बसी फूलों की घाटी नंदा देवी नेशनल पार्क एक भारतीय राष्ट्रीय उद्यान है, जो उत्तराखंड के चमोली में स्थित है। यह स्थानिक अल्पाइन फूलों और वनस्पतियों की विविधता के लिए जाना जाता है। फूलों की घाटी एक समृद्ध विविधता वाला क्षेत्र, दुर्लभ और लुप्तप्राय जानवरों का घर भी है। यहां एशियाई काले भालू, हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, भूरे भालू, लाल लोमड़ी और नीली भेड़ रहते हैं।
इस बार पर्यटकों को करीब 3 किमी लंबे ट्रैक पर घांघरिया से बामणधौड़ तक दो जगह पर हिमखंड करीब 200 मीटर तक बर्फ की गलियों के बीच से होकर गुजरना होगा। समुद्र तल से 12995 फीट की ऊंचाई पर फूलों की घाटी है। यह जैव विविधता का खजाना है। 87.5 वर्ग किलोमीटर में फैली फूलों की घाटी को प्राकृतिक खूबसूरती और जैविक विविधता के कारण 2005 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया। यहां 500 से अधिक प्रजाति के रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। जुलाई से सितंबर तक यहां पोटेंटिला, प्राइमुला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पाॅपी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्मकमल, फैन कमल जैसे कई फूल खिले रहते हैं।
घाटी की खूबसूरती को करीब से देखने के लिए प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक यहां पहुंचते हैं। फूलों की घाटी में आसपास कहीं रुकने का साधन नहीं हेै। ऐसे में सुबह छह बजे पर्यटक बेस कैंप घांघरिया से घाटी के लिए रवाना होते हैं और दो बजे बाद यहां से वापस घांघरिया लौट जाते हैं। फूलों की घाटी चमोली जिले में है। यहां पहुंचने के लिए बदरीनाथ हाईवे से होते हुए गोविंदघाट और फिर यहां से पुलना गांव तक वाहन के जरिये जाना होता है। पुलना से करीब 9 किमी पैदल चलकर बेस कैंप घांघरिया पहुंचना होता है। यहां से करीब 3 किमी लंबा पैदल रास्ता फूलों की घाटी के लिए जाता है।